Rajasthan political Crisis: विधायकों की अयोग्यता को लेकर सुनवाई, सिंघवी बोले-मामला कोर्ट के आधिकार क्षेत्र में नहीं आता

Rajasthan political Crisis: विधायकों की अयोग्यता को लेकर सुनवाई, सिंघवी बोले-मामला कोर्ट के आधिकार क्षेत्र में नहीं आता
Rajasthan political Crisis: विधायकों की अयोग्यता को लेकर सुनवाई, सिंघवी बोले-मामला कोर्ट के आधिकार क्षेत्र में नहीं आता

डिजिटल डेस्क, जयपुर। राजस्थान में जारी सियासी संकट के बीच आज बागी विधायकों को जारी किए गए अयोग्यता नोटिस पर राजस्थान हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महंती और न्यायमूर्ति प्रकाश गुप्ता की पीठ इस मामले को सुन रही है। सुनवाई सुबह 10 बजे शुरू हुई। सबसे पहले राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी की दलील देते हुए कहा, ये मामला कोर्ट के आधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। 

सुनवाई के दौरान सिंघवी ने कहा कि कोर्ट का इस मामले में क्षेत्राधिकार नहीं बनता है। विधायकों की अयोग्यता को लेकर अभी कोर्ट सुनवाई नहीं कर सकता है। ये अधिकार सिर्फ स्पीकर के पास है। उन्होंने कहा कि विधानसभा की कारवाई में कोर्ट दखल नही दे सकता है। जब तक स्पीकर फैसला नहीं कर लेते तब तक कोर्ट दखल नहीं दे सकता है। सिंघवी ने उतरांचल विधानसभा में अमृता रावत और दिल्ली के आप विधायक देविंदर सहरावत केस का हवाला भी दिया। वहीं, उन्होंने झारखंड मामले का उदाहण दिया। यह केस ज्यूडिशियल रिव्यू के दायरे में नही आता है। 

सिंघवी ने कहा कि सचिन पायलट और अन्य 18 विधायकों ने जो संवैधानिक पहलू को लेकर सवाल उठाए है उसमें कुछ भी नया नहीं है। अभिषेक मनु सिंघनी ने कहा कि राजस्थान मामले में सभी 19 विधायकों के मामले अलग-अलग हैं। स्पीकर सभी केसों को अलग अलग देखेंगे। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 19 विधायकों का फैसला लेना बाकि है और कोर्ट द्वारा स्पीकर के अधिकार में दखल नहीं दिया जा सकता।अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि स्पीकर ने अभी तक फैसला नही लिया है और उनके द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस पर रोक नही लगाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि अभी भी 19 विधायकों के खिलाफ जारी हुआ नोटिस पर कोई फैसला नही हुआ है  लिहाजा कोर्ट अभी इस मामले में दखल नही दे सकता है।

सिंघवी ने कहा कि पार्टी की बैठक में गैर उपस्थित नहीं होना, पार्टी की सदस्यता छोड़ने के समान हो भी सकता है और नहीं भी। उन्होंने कहा कि यह तथ्यों पर निर्भर करता है स्पीकर को उस पर फैसला लेने का अवसर दिया जाना चाहिए या नहीं। विस अध्यक्ष का फैसला सही भी हो सकता है और गलत भी, लेकिन फैसला देने से पहले यह कहकर हस्तक्षेप करना कि स्पीकर गलत फैसला देगा, यह नहीं हो सकता है। सिंघवी अब याचिकाकर्ताओं की दलील को संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नियमों का उल्लंघन करते हुए जवाब देने के लिए केवल 2 दिन का समय दिया गया था, जबकि 7 दिनों के लिए अनिवार्य है।

सिंघवी ने कहा कि SC ने माना है कि प्राकृतिक न्याय प्रतिक्रिया के लिए दिए गए दिनों की संख्या पर निर्भर नहीं है। स्पीकर तेजी से हो रहे घटनाक्रम के लिए अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते हैं। अगर कोई नियमों का उल्लंघन है को तो भी स्पीकर के फैसले को रद्द नहीं किया जाएगा। SOG द्वारा भेजे गए नोटिस पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि मेरे सेक्रेटरी को SOG ने वॉइस सैंपल और स्टेटमेंट के लिए नोटिस भेजा है। उन्होंने कहा कि पहले ऑडियो क्लिप की जांच करें और इसके सोर्स के बारे में बताएं। उन्होंने पूछा कि इसकी सत्यता क्या है और इसे सरकार ने रिकॉर्ड कराया है या नहीं।  राजस्थान हाईकोर्ट में अभिषेक मनु सिंघवी की तरफ से दलीलें दी गईं। अब दो बजे के बाद शुरू होगी सुनवाई। 

गौरतलब है कि राजस्थान में डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट के बागी तेवर दिखाने के बाद सीएम गहलोत ने तत्तकाल प्रभाव से विधायक दल की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में पायलट समेत 19 विधायक नहीं पहुंचे थे। गहलोत सरकार द्वारा जारी व्हिप का उल्लंघन करने को लेकर सभी कार्रवाई हुई है। 

बता दें कि ये नोटिस राज्य विधानसभा अध्यक्ष ने बैठक में अनुपस्थित पायलट समेत 19 विधायकों को सदस्यता खत्म करने को लेकर नोटिस जारी किया था। इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट को पटखनी देने के लिए अगले कुछ दिनों में विधानसभा सत्र बुलाने की तैयारी में हैं। इसी कड़ी में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष डॉ। सीपी जोशी से बातचीत की है। सत्र बुलाकर वह अपना बहुमत साबित करेंगे।

गहलोत लगातार राज्यपाल से मुलाकात कर रहे हैं। बीते शनिवार रात भी गहलोत राज्यपाल कलराज मिश्र से मिलने पहुंचे थे। उन्हें 102 विधायकों की सूची भी सौंपी थी। इस दौरान उन्होंने बहुमत होने का दावा किया था। इसके बाद रविवार को राज्यपाल ने अपने स्तर पर कानून के जानकारों से परामर्श किया।

वहीं, मामले में विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस को पायलट गुट की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी। साल्वे ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा कि विधानसभा सत्र के दौरान ही व्हिप मान्य होता है। इस सत्र के अलावा व्हिप मान्य नहीं होता। ऐसे में नोटिस देना या सदस्यता रद्द करने की मांग करना गलत है।

साल्वे ने कहा कि सदन के बाहर हुई कार्यवाही के लिए स्पीकर द्वारा नोटिस जारी नहीं किया जा सकता। नोटिस की संवैधानिकता नहीं है। उन्होंने दो जजों की बेंच गठित करने की मांग की। इससे पहले मामले की सुनवाई जस्टिस सतीश कुमार शर्मा की बेंच में हुई। सुनवाई शुरू होते ही हरीश साल्वे ने संशोधित याचिका पेश करने का समय मांगा। इस पर कोर्ट ने उन्हें समय दिया।

Created On :   20 July 2020 9:32 AM IST

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