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पोते को दादा-दादी से मिलने से रोकने पर हाईकोर्ट ने मां को लगाई फटकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने दादा-दादी को पोते से न मिलने देनेवाली बच्चे की मां को फटकार लगाई है। इसके साथ ही कहा है कि दादा-दादी अथवा नाना-नानी को पोते से न मिलने देना सही नहीं है। यह बात कहते हुए हाईकोर्ट ने महिला को हफ्ते में एक बार अपने पूर्व के सास-ससुर को पोते से मिलने देने का निर्देश दिया है। इससे पहले पारिवारिक न्यायालय ने बच्चे की मां को निर्देश दिया था कि वह अपने बच्चे से उसके दादा-दादी को मिलने दे। पारिवारिक अदालत ने साफ किया था कि जब भी बच्चे के दादा-दादी दिल्ली से मुंबई आए तो उन्हें सप्ताह में एक दिन अपने पोते से मिलने दिया जाए। यदि महिला इस आदेश का पालन नहीं करेगी तो उस पर पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाए जाए।
पारिवारिक अदालत के इस आदेश के खिलाफ महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में महिला ने दावा किया था कि साल 2009 में उसने एक बेटे को जन्म दिया। इसके बाद वर्ष 2010 में उसके पति का निधन हो गया था। पति के निधन के बाद वह अपने मायके आ गई थी। जन्म के बाद से मेरा बेटा कभी भी अपने दादा-दादी से नहीं मिला। अब उसने दोबारा विवाह भी कर लिया है। ऐसे में उसके पूर्व के सास-ससुर को उसके बेटे से मिलने की इजाजत न दी जाए। क्योंकि जब वह अपने ससुराल में थी तो उसके सास-ससुर ने उसे ठीक ढंग से नहीं रखा था। ससुराल में मेरे प्रति उनका (सास-ससुर) बर्ताव ठीक नहीं था।
न्यायमूर्ति एसजे काथावाला व न्यायमूर्ति बीपी कुलाबावाला की खंडपीठ के सामने महिला की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में उल्लेखित तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि यदि जन्म के बाद उसका बेटा अपने दादा-दादी से नहीं मिला है तो इसमे उसकी गलती नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि महिला के सास-ससुर का बर्ताव उसके प्रति ठीक नहीं था तो यह दादा-दादी को उसके पोते से न मिलने देने का आधार नहीं हो सकता है। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने महिला को निर्देश दिया कि जब भी बच्चे के दादा-दादी दिल्ली से मुंबई आए तो उन्हें सप्ताह में एक दिन कोर्ट परिसर में पोते से मिलने दिया जाए।
हाईकोर्ट का फर्जी आदेश तैयार करने वाले के खिलाफ दर्ज होगी एफआईआर
उधर बांबे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति गौतम पटेल के नाम से फर्जी आदेश तैयार करनेवालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश दिया गया है। इस फर्जी आदेश में 1 दिसंबर 2019 की तारीख थी। इस दिन रविवार था और न्यायमूर्ति कार्यरत भी नहीं थे। यह आदेश बैंक में जमा राशि के संबंध में व उत्तराधिकार को लेकर शुरु विवाद को लेकर जारी किया गया था। दो वकीलों ने न्यायमूर्ति को उनके इस फर्जी आदेश के बारे में जानकारी दी। इससे पहले यह आदेश न्यायमूर्ति पटेल के स्टाफ के सामने रखा गया।
न्यायमूर्ति पटेल के स्टाफ को आदेश के फार्मेट को देखकर संदेह हुआ। इसके अलावा आदेश के नीचे के हिस्से में न तो तारीख का उल्लेख था और न ही पेज क्रमांक लिखा था। आदेश में फांट का आकार और लाइनों के बीच का अंतर भी वैसा नहीं था जैसा आमतौर पर न्यायमूर्ति पटेल के आदेश में रहता है। इसके बाद अधिवक्ता उमेश मोहिते ने न्यायमूर्ति पटेल को इस फर्जी आदेश के बारे में जानकारी दी। पटेल ने इसे देखने के बाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को मामले को लेकर आपराधिक मामला दर्ज कराने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति पटेल ने कहा है कि इस फर्जी आदेश के जारी किए जाने से कई पहलू जुड़े हैं, लिहाजा इसकी विस्तार से जांच की जाए।
Created On :   20 Feb 2020 6:03 AM IST