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पैसे लेकर प्रैक्टिकल के नंबर बढ़ाने वाले शिक्षक को हाईकोर्ट ने राहत देने से किया इंकार

कृष्णा शुक्ला, मुंबई । बांबे हाईकोर्ट ने पैसे लेकर विद्यार्थियों के प्रैक्टिकल परीक्षा के अंक अनधिकृत रुप से बढ़ाने के आरोप में नौकरी से निकाले गए शिक्षक को राहत देने से इनकार कर दिया है।केंद्रीय विद्यालय पुणे में पीईटी के शिक्षक के रुप में कार्यरत भगवान स्वरुप पालीवाल को सीबीआई ने अक्टूबर 2002 में भौतकी व रसायन शास्त्र विषय की प्रैक्टिकल परीक्षा के अंक बढाने के एवज में एक छात्र से एक हजार रुपए लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार किया था। इस मामले में सीबीआई ने पालीवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इधर स्कूल प्रशासन की ओर से पालीवाल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की भी शुरुआत की गई थी। अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने सुनवाई पूरी होने के बाद 1 फरवरी 2008 को पालीवाल को नौकरी से निकाल दिया था। जिसके खिलाफ पालीवाल ने केंद्रीय प्रशासकीय प्राधिकरण(कैट)मुंबई में आवेदन दायर किया। कैट ने 2019 में पालीवाल के आवेदन को खारिज कर दिया। जिसे पालीवाल ने याचिका दायर कर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति अभय अहूजा की खंडपीठके सामने याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि सीबीआई ने जिस मामले को लेकर याचिकाककर्ता(पालीवाल)को गिरफ्तार किया था। उस मामले को लेकर सीबीआई ने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दायर कर दी है। इसके अलावा अनुशासनात्मक कार्यवाही के दौरान याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने का प्रभावी मौका नहीं मिला है। सेहत ठीक नहीं होने के कारण मेरे याचिकाकर्ता अनुशासनात्मक प्राधिकरण के सामने कुछ समय के लिए अनुपस्थित भीथे। याचिकाकर्ता अनुशासनात्मक प्राधिकरण के सामने अपनी पसंद के व्यक्ति को अपना पक्ष रखने के लिए बुला नहीं पाए थे। इसलिए मामले को लेकर कैट व अनुशासनात्मक प्राधिकरण की ओर से जारी किए गए आदेश को रद्द कर दिया जाए।
खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों व याचिकाककर्ता के वकील की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता को अनुशासनात्मक प्राधिकरण के सामने अपनी बात रखने का अवसर मिला है। चूंकी सीबीआई ने याचिकाकर्ता के मामले को लेकर कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दायर कर दी है सिर्फ इसलिए उसे अनुशासनात्मक कार्यवाही से छूट नहीं मिल जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि अनुशासनात्मक कार्यवाही का उद्देश्य वास्तव में दोषी को दंडित करना नहीं है बल्कि प्रशासनिक मशीनरी को दुरुस्त कर व्यवस्था से खराब तत्वो को दूर करना है। इस तरह खंडपीठ ने मामले से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को राहत देने से मना कर दिया।
Created On :   3 Dec 2022 7:03 PM IST