निचली अदालतों पर हाईकोर्ट की नजर, सत्र न्यायाधीशों की कार्यप्रणाली पर जताई नाराजगी

High courts eye on lower courts, resentment over the functioning of session judges
निचली अदालतों पर हाईकोर्ट की नजर, सत्र न्यायाधीशों की कार्यप्रणाली पर जताई नाराजगी
निचली अदालतों पर हाईकोर्ट की नजर, सत्र न्यायाधीशों की कार्यप्रणाली पर जताई नाराजगी

डिजिटल डेस्क, नागपुर ।  नागपुर समेत विदर्भ की निचली अदालतों के कामकाज पर हाईकोर्ट की पैनी नजर है। सत्र न्यायाधीशों पर अनियमितताओं के आरोप, मामलों को लंबित रखने की प्रवृत्ति और कानून का दायरा लांघ कर काम करने के मामलों को लेकर हाईकोर्ट ने सख्ती बरतनी शुरू कर दी है। नागपुर खंडपीठ के समक्ष  सत्र न्यायाधीशों द्वारा काम में लापरवाही का एक मामला सामने आया है। एक कैदी की सजा कम करने के प्रस्ताव पर बगैर ठोस कारण दिए नकारात्मक राय देने वाले चंद्रपुर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को न्या. सुनील शुक्रे व न्या.अविनाश घारोटे की खंडपीठ ने आड़े हाथ लेते हुए सभी सत्र न्यायाधीशों के लिए चेतावनी जारी की है। इस चेतावनी की कॉपी सभी जिला न्यायाधीशों और महाराष्ट्र जुडिशियल एकेडमी को भेजने के आदेश हाईकोर्ट रजिस्ट्री को दिए हैं। इसके पूर्व नागपुर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के खिलाफ अनियमितता के आरोप पर भी हाईकोर्ट ने सख्त तेवर दिखाए थे।

क्या है मामला
3 जून 2017 को प्रदेश के गृह विभाग ने जीआर जारी कर सजायाफ्ता कैदियों की सजा कम करने का निर्णय लिया था। जीआर में सजा कम करने के लिए पात्रता, नियम, कितनी सजा कम होगी, इसकी विस्तृत जानकारी दी गई थी। इसी जीआर में एक नियम यह भी जोड़ा गया था कि कैदी को जिस अदालत ने सजा सुनाई है, उसकी सजा कम करने से पूर्व एक बार उसी अदालत की राय भी ली जाए।  इसी जीआर के तहत नागपुर मध्यवर्ती कारागृह में उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी रामू मडकाम ने भी आवेदन किया, लेकिन चंद्रपुर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इस प्रस्ताव पर नकारात्मक रिपोर्ट दी, जिससे कैदी का प्रस्ताव खारिज हो गया। कैदी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। िफर हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनकर कहा कि संबंधित न्यायाधीश ने अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल नहीं किया। घिसे-पिटे तरीके से राय दे दी कि कैदी गंभीर अपराध में सजा प्राप्त है और जीआर की शर्तों के तहत वह सजा कम करने का पात्र नहीं है। सत्र न्यायाधीश की यह राय कानूनी दृष्टि से सही नहीं है। हाईकोर्ट ने रिपोर्ट रद्द करके उन्हें दोबारा मामले पर विचार कर तीन सप्ताह में फैसला देने को कहा है। याचिकाकर्ता की ओर से एड. तरुण परमार व सरकार की ओर से सरकारी वकील एच. एन. जयपुरकर ने पक्ष रखा। 
 

Created On :   20 Feb 2021 8:29 AM GMT

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