देखिए वेबिनार - मानवाधिकार सिर्फ कानून के आधार पर नहीं हो सकता सफल

देखिए वेबिनार - मानवाधिकार सिर्फ कानून के आधार पर नहीं हो सकता सफल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मानवाधिकार सिर्फ कानून के आधार पर सफल नहीं हो सकते हैं, उसके लिए नैतिकता भी जरूरी है। एक मामला बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने आया था। किसी कैदी का चश्मा टूट गया। पढ़ने में परेशानी होने लगी तो घर वालों ने उसके लिए नया चश्मा भेजा, किन्तु प्रशासन ने वह चश्मा कैदी को नहीं दिया। कैदी को चश्मा दिलवाने के लिए परिजनों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। इस तरह के केस सामने आने पर पीड़ा होती है।  यह बात इंडियन सोसायटी ऑफ क्रिमिनोलॉजी के अध्यक्ष डॉ.बलराज चौहान ने कही।

जमानत मिलने के बाद भी जेल में
डॉ. चौहान ने बताया कि जेल में कैदियों के स्वास्थ्य सुविधा की परेशानी आती है। न्यायालय से जमानत मिलने के बाद भी कैदियों को जेल में रहना पड़ता है, क्योंकि वह सुरक्षा राशि जमा नहीं कर पाते हैं। लोक अदालत में एक मामले की सुनवाई के दौरान एक व्यक्ति से कहा गया कि यदि वह अपनी गलती स्वीकार ले तो उसे छोड़ दिया जाएगा। जबकि उसका कहना था कि उसने गलती नहीं की तो वह क्यों स्वीकार करे। ऐसे मामलों में बांड न भर पाने की स्थिति में खासी परेशानी उठानी पड़ती है। उन्होंने बताया कि मानव और अधिकार वैसे तो सिर्फ दो शब्द हैं, लेकिन जब साथ रखे जाते है तो हमारे अस्तित्व को बताते हैं। 1835 में लॉर्ड मैकाले ने रिपोर्ट दी थी, जिसमें डरावनी स्थिति बताई गई थी। इसके बाद सुधार के लिए कई समितियां बनीं। संविधान की धारा 21 बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह जीवन सुरक्षा एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता देती है।   

वेबिनार में शामिल हुए
डॉ. चौहान गुरुवार 10 दिसंबर को दैनिक भास्कर द्वारा आयोजित वेबिनार में बोल रहे थे। इसका विषय था ‘विचाराधीन कैदियों की स्थिति एवं सार्वजनिक हित के लिए आंदोलन करने वालों के अपराध पर वैकल्पिक विचार’। इस अवसर पर 2 सत्रों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में वक्ता के रूप में डॉ. हरि सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर के अपराधशास्त्र विभाग की प्रमुख डॉ. ममता पटेल, फिल्म अभिनेता वीरा साथीदार शामिल हुए। वहीं महाराष्ट्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक डॉ.भूषण कुमार उपाध्याय ने वीडियो क्लिप के माध्यम से  अपने विचार रखे। कार्यक्रम में विशेष रूप से दैनिक भास्कर के समूह संपादक प्रकाश दुबे उपस्थित थे।

आंदोलन करने वाले अपराधी नहीं
 डॉ. पटेल ने कहा कि जेल मे विचाराधीन कैदियों की संख्या 70 फीसदी है। जेल में रहना भी एक सजा ही है। इस दौरान आप एक व्यक्ति को घर, परिवार और समाज से दूर कर देते हैं। देश-विदेश में आंदोलन का स्वरूप भी बदलना चाहिए। अापका प्रदर्शन भी होता रहे और समस्याएं भी खड़ी न हाें। उदाहरण के िलए एक फैक्टरी में प्रदर्शन के कारण सिर्फ एक पैर के ही जूते बनाए गए। इससे उनका विरोध भी दर्ज हुआ और उत्पादन भी होता रहा। जब एक मुद्दे को लोगों का बड़ा समूह बोल रहा है तो सरकार को उस पर विचार कर निदान करना चाहिए। आंदोलन करने वाले अपराधी नहीं है, यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए। कई बार ऐसा देखा गया है कि मासूम और गरीब लोग फंस जाते हैं, जिनकी कोई सुनने को तैयार नहीं होता है।

मानवाधिकार का हनन न हो
फिल्म अभिनेता वीरा साथीदार ने कहा कि हमेशा बेगुनाह को जमानत के लिए नकार दिया जाता है। बेगुनाह को जेल में रखना मानवाधिकार का हनन है। मुंबई बम ब्लास्ट के मामले में एक व्यक्ति को 23 साल जेल में गुजारने पड़े। अब कोरोना के समय उसकी क्या स्थिति है, आप समझ सकते हैं। जो अपराधी माना गया है, उसका बैकग्राउंड भी पता करना चाहिए, जिससे उसकी वास्तविकता पता चलेगी। जेल मैन्युअल का पालन होना चाहिए, जिससे उसका हनन न हो सके। सबके साथ समान बर्ताव हो, इस पर ध्यान होना चाहिए।

विचाराधीन कैदियों की संख्या कम हो 
डॉ. भूषणकुमार उपाध्याय ने कहा कि मानवाधिकार मानव का मूलभूत अधिकार है, जिसे वंचित नहीं किया जा सकता है। यह हमें प्रकृति ने दिया है। भारतीय संविधान में इसके संरक्षण के िलए कई प्रावधान है। कानून की दृष्टि से सब एक हैं। उच्चतम न्यायालय ने अरनेश कुमार जजमेंट में स्पष्ट किया कि 7 साल तक की सजा के मामले में यदि आपराधी को जेल न भेजो तो अच्छा है।  सीआरपीसी में इसको लेकर सुधार किया गया। यदि वह आदतन अपराधी है तो, जेल भेज सकते हैं, लेकिन सामान्य को नहीं भेजना चाहिए। जेल में विचाराधीन कैदियों की संख्या कम होनी चाहिए।

सम्मान का भी ध्यान रखा जाए
समूह संपादक श्री दुबे ने कार्यक्रम को एकसूत्र में पिरोने की भूमिका निभाते हुए कहा कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने विभिन्न राज्यों में जेल में बंद पत्रकारों के विषय में संज्ञान लिया। एक पत्रकार पर मुकदमा चलाकर उसे दिल्ली से रायपुर तक सड़क मार्ग से लाया गया। ऐसे में उनके सम्मान के विषय को भी ध्यान में रखा जाए। इसके पूर्व उन्होंने प्रख्यात लेखक एवं कवि मंगलेश डबराल के निधन पर शोक व्यक्त किया। अतिथियों का परिचय इंडियन सोसायटी ऑफ क्रिमिनोलॉजी की नागपुर शाखा के संयोजक डॉ.नंदकिशोर भगत ने किया। आभार प्रदर्शन दैनिक भास्कर के संपादक मणिकांत सोनी ने किया।

Created On :   11 Dec 2020 5:03 PM IST

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