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पीड़ित को यदि जांच करने वालों पर शक, तो बदल सकते हैं एजेंसी : कोर्ट

डिजिटल डेस्क, नागपुर। दुष्कर्म जैसे गंभीर आपराधिक मामलों में पीड़िता को यदि जांच अधिकारी की प्रामाणिकता पर संदेह हो, तो यह एक गंभीर मसला है। आपराधिक मामलों में न्यायदान प्रक्रिया का मूल उद्देश्य ही सच तक पहुंचना होता है। आदर्श सिद्धांत यही है कि कोई भी दोषी बच न निकले और किसी निर्दोष को सजा न हो। ऐसे में प्रकरण की निष्पक्ष जांच न्यायदान प्रक्रिया का सबसे जरूरी पहलू है। हालांकि सामान्य मामलों में कोर्ट जांच अधिकारी नहीं बदलेगा, लेकिन यदि ऐसी परिस्थिति हो कि पीड़िता के मन में जांच संस्था के प्रति आस्था और विश्वास जगाना जरूरी हो जाए, तो कोर्ट अपने विशेष अधिकारों का उपयोग करके जांच एजेंसी बदलने का आदेश जारी कर सकता है। इसी निरीक्षण के साथ न्या.वी.एम.देशपांडे और न्या.अमित बोरकर की खंडपीठ ने दुष्कर्म के एक मामले की जांच जरिपटका पुलिस से लेकर अपराध शाखा को सौंप दी है।
यह था मामला : 31 वर्षीय पीड़िता के अनुसार सितंबर 2019 में उसकी मोहम्मद इरशाद इकबाल मिर्जा से सोशल मीडिया पर दोस्ती हुई थी। युवक ने उसे झांसे में लेकर शारीरिक संबंध स्थापित किए। तस्वीरें निकाल कर ब्लैकमेल करने लगा। फिर नवंबर 2019 में जबरन उससे विवाह किया। इसके बाद उसे तलाक दे दिया। इसके बावजूद वह युवती से बलात्कार करता रहा। इस बीच युवती गर्भवती हो गई। आरोपी द्वारा शारीरिक और मानसिक शोषण से तंग आ कर उसने अप्रैल 2021 में जरीपटका पुलिस में शिकायत करने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने उसकी शिकायत नहीं ली। अंतत: युवती ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपनी व्यथा बताई और गर्भपात की भी अनुमति मांगी। हाईकोर्ट ने एक ओर जहां मेडिकल बोर्ड की सलाह पर युवती को गर्भपात की अनुमति दी। दूसरी ओर पुलिस को नोटिस जारी होने के बाद पुलिस विभाग ने भी आरोपी पर भादवि 376 (1), 376 (2) (एन), 504 व अन्य के तहत मामला दर्ज किया। अब पीड़िता ने कोर्ट में मुद्दा उठाया कि उसे जांच कर रहे पुलिस अधिकारी पर विश्वास नहीं है। उसका आरोप था कि पुलिस आरोपी के साथ मिल कर मामला कमजोर कर रही है। हाईकोर्ट ने मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद यह आदेश जारी किया है।
Created On :   12 Jun 2021 3:47 PM IST