नियमों की अनदेखी कर भाड़े के शिकारियों से हो रहा शिकार

Ignoring the rules, hunting for mercenaries
नियमों की अनदेखी कर भाड़े के शिकारियों से हो रहा शिकार
नियमों की अनदेखी कर भाड़े के शिकारियों से हो रहा शिकार

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  वन विभाग नियमों की अनदेखी कर वन्यजीवों को गोली मार रहा है । पहले अवनि बाघिन और दिसंबर माह में सोलापुर में एक तेंदुए को गोली मारी गई। वन्यजीवों को गोली मारना नियमों के बाहर होने का दावा पशुप्रेमी कर रहे हैं। उनका आरोप है कि अगर कोई वन्यजीव घातक हो भी जाता है, तो उसे मारने के लिए बाहरी व्यक्ति का सहारा नहीं लिया जा सकता।

वन विभाग की ओर से लाए गए शिकारी ने 2018 में अवनि नामक बाघिन की गोली मारकर हत्या की थी। वन विभाग का दावा था कि अवनि बाघिन ने कई लोगों की जान ली थी। पशुप्रेमियों की मानें तो बाघिन केवल अपने बच्चों को बचाने के लिए आक्रामक हुई थी। उसे वन विभाग ने कई बार पकड़ने की कोशिश की थी। सफलता नहीं मिलने पर बाघिन को 3 नवंबर 2018 को गोली मार दी गई। जिस व्यक्ति ने बाघिन को गोली मारी थी, वह वन विभाग का कर्मचारी नहीं था। ऐसे में राज्य भर में पशुप्रेमियों ने वन विभाग के खिलाफ प्रदर्शन भी किया था।

राज्य में वन विभाग की ओर से एक बार फिर शार्प शूटर की मदद से हाल ही में एक तेंदुए की  गोली मारकर हत्या की गई। औरंगाबाद, बीड़, सोलापुर व नगर जिले में तेंदुए ने दहशत मचा रखी थी। आरोप है कि तेंदुए ने 12 लोगों की जान ली थी। उसे पकड़ने का ऑर्डर निकाला गया था, लेकिन कई बार प्रयास करने के बाद भी तेंदुए को पकड़ा नहीं जा सका। आखिरकार वन विभाग ने शूटर के माध्यम से उसे गोली मार दी। इसका विरोध भी पशुप्रेमियों द्वारा किया जा रहा है। 

क्या कहते हैं पशुप्रेमी
वन्यजीवों को गोली मारने का अधिकार किसी को नहीं है। यह पूरी तरह से बंद है। बावजूद इसके वन विभाग की ओर से निजी शूटर के माध्यम से वन्यजीवों को गोली मारने की घटना निंदनीय है। बाघिन अवनि को मारने के मामले में भी कई नियमों का उल्लंघन हुआ था। 
- संगीता डोबरा, संचालक, रेडलिंस कॉन्फेडरेशन, दिल्ली

-1983 से हंटिंग बैन है, ऐसे में कोई भी व्यक्ति वन्यजीव को गोली नहीं मार सकता। वन्यजीवों को गोली मारने का अधिकार केवल वन विभाग के कर्मचारियों को होता है। वह भी कुछ शर्तों पर ही ऐसा किया जा सकता है। 
-सेक्शन 38 (वी) के तहत राज्य सरकार को वाइल्ड कॉरिडोर का निर्माण करने के लिए कहा गया है, ताकि कोई भी वन्यजीव अपनी राह छोड़ इंसानी इलाकों में न आ सके। अभी तक वाइल्ड एनिमल कॉरिडोर का निर्माण नहीं हो सका है। 
-इंडियन वेटरनरी काउंसिल एक्ट 1983 सेक्शन 30 और 56 के तहत एक वेटरनरी ही किसी भी वन्यजीव को साइंटिफिक मैन हीटर डिक्लेयर कर सकता है। 
-यदि किसी इंसानी इलाके में वन्यजीव की मौजूदगी हो, तो नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ के 144 ( सीआरपीसी) के तहत पहले इस इलाके में कर्फ्यू लगाना पड़ता है, ताकि किसी भी तरह इंसानों को वन्यजीवों से व वन्यजीव को इंसानों से खतरा न हो। 
-आर्म रूल्स 20, 52 के तहत बंदूकधारी स्पोर्ट्स पर्सन भी वन्यजीव पर गोली नहीं चला सकता है।

वरिष्ठ अधिकारी देते हैं आदेश
कोई भी वन्यजीव इंसानों के लिए घातक साबित होता है, तो उसे मारने के आदेश नियमानुसार निकाला जाता है। एक विशेष प्रक्रिया के बाद वन्यजीवों को गोली मारी जाती है। लेकिन इस काम के लिए किसी बाहरी व्यक्ति का सहारा नहीं लेना चाहिए। यह काम करने के लिए खुद वन विभाग को सक्षम होना चाहिए। - किशोर रिठे, सदस्य, महाराष्ट्र राज्य वन्यजीव मंडल नागपुर

कम हो सकती है वन्यजीवों की संख्या
आंकड़ों की बात करें तो पूरे राज्य में वर्ष 2020 में 186 तेंदुओं की मौत हुई है, वहीं 17 बाघ की भी मृत्यु हुई है। तेंदुए व बाघांे का ज्यादातर अवैध शिकार किया गया है। वहीं वन विभाग के अनुसार कुछ की मौत बीमारी व अधिक उम्र के होने के कारण हुई है।

वनविभाग ने नहीं नियुक्त किए शिकारी : राठोड़
राज्य के वनमंत्री संजय राठोड़ ने बताया कि कोई भी वन्यप्राणी हिंसक हो जाता है या नरभक्षी बन जाता है तो भी उसे पकड़ने के लिए शिकारियों को नहीं बुलाया जाता। वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारी उसका बंदोबस्त करते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि जालना में एक तेंदुआ नरभक्षी हो गया था। कारण यह था कि दांत में दर्द होने के कारण वह प्राणियों का शिकार कर उनका मांस नहीं खा पा रहा था। इसीलिए मनुष्य का शिकार कर रहा था, क्योंकि प्राणियों से मनुष्य का मांस मुलायम होता है। शिकार करते ही लोग उसकी ओर दौड़ पड़ते थे। इसलिए वह शिकार किए गए व्यक्ति को मार नहीं पाता था। जब उसको पकड़ने के लिए जालना में जाल बिछाया गया तो वह औरंगाबाद भाग निकला। वहां से बीड और अंत में सोलापुर पहुंचा। सोलापुर में केले के बगीचे और गन्ने के खेतों में वह छुपा रहा, जिससे उसे पकड़ने में दिक्कत हुई। अंत में उसे मजबूरन मारना पड़ा। महाराष्ट्र में वन विभाग ने वेतन या मानधन पर कोई शिकारी नियुक्त नहीं किए हैं। सोलापुर के तेंदुआ या यवतमाल के अवनि जैसे मामले यदि भविष्य में आते हैं तो वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारी ही ऐसे मामलों से निपटेंगे।

विभाग को सक्षम बनाने की जरूरत
मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थितियों मे वन्यजीवों को बेहोश कर पकड़ने तथा उन्हें मारने की कार्यवाही पूरी करने हेतु किसी निजी व्यक्ति नियुक्त करने के बजाय विभाग स्वयं सक्षम बने, इसकी व्यवस्था बनाने की जरूरत है।-बंडू धोत्रे, अध्यक्ष इको-प्रो चंद्रपुर
 

Created On :   4 Jan 2021 4:49 PM IST

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