पुरस्कारों को लेकर अलग विचार रखते हैं पद्म श्री डॉ. बंग दम्पति

Indian Medical Association and Chandrapur Bachao Sangharsh Samiti
पुरस्कारों को लेकर अलग विचार रखते हैं पद्म श्री डॉ. बंग दम्पति
पुरस्कारों को लेकर अलग विचार रखते हैं पद्म श्री डॉ. बंग दम्पति

डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। समाजसेवियों को प्राप्त होनेवाले पुरस्कारों की श्रृंखला उन्हें पथ से भ्रष्ट कर सकती है। कई बार उन पर सरकार का चहेता व्यक्ति होने का आरोप भी लग सकता है। इस कारण एक समाजसेवक को सरकारी पुरस्कार स्वीकार करना चाहिए या नहीं? यह एक गंभीर और नैतिक सवाल मेरे समक्ष पैदा हो गया है। हालांकि, सरकार ने मुझे सम्मानित किया है, ऐसी स्थिति में मैं सरकार की गलतियों पर सिर्फ टिप्पणी ही कर सकता हूं। यह विचार वरिष्ठ समाजसेवक पद्मश्री डा. अभय बंग ने व्यक्त किए।  इंडियन मेडिकल एसोसिएशन व चंद्रपुर बचाओ संघर्ष समिति की ओर से आईएमए सभागृह में आयोजित सत्कार समारोह में वे बोल रहे थे।

कई बार क
कार्यक्रम में अध्यक्षीय स्थान पर विदर्भ साहित्य संघ के गोंडवन शाखा के अध्यक्ष डा. शरदचंद्र सालफले तथा अतिथि के रूप में  आईएमए के अध्यक्ष डा. विजय करमरकर, डा. गोपाल मूंधड़ा आदि मंचासीन थे। इस वक्त महाराष्ट्र भूषण पद्मश्री डा. अभय व डा. रानी बंग का सत्कार किया गया। इस सत्कार के जवाब में डा.अभय बंग ने कहा कि जीवन में काफी संघर्ष कर यहां तक की यात्रा कर पाया हूं। सरकारी पुरस्कार मिलने पर समाज के गणमान्य पुरस्कार कैसे मिली, यह पूछते हैं। नहीं मिलने पर भी सवाल उठाए जाते हैं। ऐसे में समाजसेवियों को सरकारी पुरस्कार स्वीकार करना चाहिए या नहीं? यह प्रश्न डा. बंग ने उठाया। बंग ने बताया कि उन्होंने राज्य व केंद्र सरकार पर कई बार कड़ी टिपणी की है। कई स्कैंडल उजागर किए हैं। इतनी  आलोचना करने के बाद भी सरकार ने एक आलोचक दम्पति को पुरस्कार दिए हैं,  यह राज्य तथा केंद्र सरकार की सराहनीय बात है।  समय आने पर आलोचना से भी नहीं डरने की बात उन्होंने कही। उन्होंने कहा कि भविष्य में युवा एहसास, निर्माण, मुक्तिपथ, बालमृत्यु व स्वास्थ्य विषय पर काम शुरू होंगे। इससे सामाजिक कार्यकर्ता और सैनिक तैयार होंगे। पुरस्कार कितने भी मिलें, फिर भी चंद्रपुरवासियों का प्रेम सबसे बड़ा पुरस्कार होने की बात उन्होंने कही। सत्कार के साथ डा. बंग दम्पति को मानपत्र दिया गया। बंग दम्पति का परिचय डा. सुशील मूंदड़ा व डा. राजलक्ष्मी ने कराया। प्रस्तावना डा. गोपाल मूंदड़ा ने रखी। संचालन डा. मनीष मूंदड़ा ने किया। पसायदान डा. पद्मलेखा धनकर ने पेश कर समापन किया।

बढ़ती उम्र के साथ बढ़ रहा काम के प्रति उत्साह  
डा. रानी बंग ने चंद्रपुर में शिक्षा अर्जित करते वक्त हुए अपने अनुभव उपस्थितों के साथ साझा किए। उन्होंने कहा कि मां द्वारा पढ़ाया गया पराजय का पाठ जीवनभर काम आया। पराजय और विफलता से ही इंसान बड़ा होता है। बढ़ती उम्र के साथ काम के प्रति उत्साह बढऩे की बात उन्होंने कही। 

90 प्रतिशत डाक्टरों की गैरमौजूदगी आश्चर्यजनक
आईएमए की ओर से आयोजित सत्कार समारोह में 90 प्रतिशत डाक्टर नदारद है यह बात आश्चर्यजनक थी। इस तरह अपने ही संगठन के कार्यक्रम से कन्नी काटनेवाले डाक्टरों की संवेदनशीलता उजागर हुई। 

Created On :   20 Feb 2018 3:50 PM IST

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