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सरकारी अधिकारियों के फर्जी जाति प्रमाणपत्र मामले की हो जांच

डिजिटल डेस्क, मुंबई । बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को उस दावे की जांच करने को कहा है जिसके अंतर्गत दावा किया गया है कि फर्जी तरीके से अनुसूचित जाति (एससी) अथवा अनुसूचित जनजाति (एसटी) का प्रमाणपत्र हासिल कर हजारों सरकारी अधिकारी पदोन्नति का लाभ उठा रहे हैं। ऑल इंडिया आदिवासी एम्पालाई फेडरेशन ने हाईकोर्ट में यह दावा किया है।
न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने फेडरेशन की ओर से दायर की गई याचिका पर गौर करने के बाद कहा कि महाराष्ट्र जाति प्रमाण अधिनियम के तहत आरक्षित पदों पर सरकारी नौकरी हासिल करनेवाले उम्मीदवार को जाति व जाति वैधता प्रमाणपत्र पेश करना अनिवार्य किया गया है। आरक्षित वर्ग वाले पद पर नियुक्ति होने वाला कोई भी उम्मीदवार कानून की इस अनिवार्यता से नहीं बच सकता। यदि कोई उम्मीदवार नियुक्ति के बाद जाति वैधता प्रमाणपत्र नहीं पेश कर पाता है तो वह नौकरी पर कायम नहीं रह सकता है।
खंडपीठ ने कहा कि आरक्षित पद पर सही व्यक्ति को नौकरी मिले इसके लिए आरक्षित पद पर उम्मीदवार की नियुक्ति करने वाला सरकारी विभाग आदिवासी व सामाजिक न्याय विभाग के लगातार संपर्क में रहे ताकि समय पर आरक्षित कर्मचारी के जाति प्रमाणपत्र के दावे की वैधता का सत्यापन हो सके। सरकार को भी इसके लिए एक व्यवस्था बनानी चाहिए। ताकि उसे गलत जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी हासिल करनेवाले कर्मचारी को सेवा से जुड़े लाभ व पेंशन का भुगतान न करना पड़े।
फर्जी प्रमाणपत्र पर हजारों लोग कर रहे नौकरी
इस दौरान एसोसिएशन (याचिकाकर्ता) की ओर से हलफनामा दायर कर खंडपीठ के सामने दावा किया गया कि राज्य में हजारों की संख्या में ऐसे सरकारी अधिकारी हैं जिन्होंने फर्जी व अनुचित तरीके से एससी अथवा एसटी का जाति प्रमाणपत्र हासिल कर पदोन्नति का लाभ ले रहे हैं और सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। इस पर खंडपीठ ने सहायक सरकारी वकील को हलफनामे में किए गए दावे के पहलू की जांच करने को कहा। खंडपीठ ने अगली सुनवाई के दौरान सरकारी वकील को याचिका में उठाए गए मुद्दे को लेकर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई 2 मार्च को रखी गई है।
Created On :   8 Feb 2020 7:41 PM IST