जो बर्फ आप खा रहे हैं कहीं वह इंडस्ट्रियल आइस तो नहीं! 

Is the ice you are eating industrial ice?
जो बर्फ आप खा रहे हैं कहीं वह इंडस्ट्रियल आइस तो नहीं! 
हो जाएं सावधान जो बर्फ आप खा रहे हैं कहीं वह इंडस्ट्रियल आइस तो नहीं! 

डिजिटल डेस्क, अमरावती ।  गर्मियों के दिन शुरू हैं। प्यास इन दिनों सिर चढ़ कर बोलती है। तपती गर्मी के बीच अगर आपको बर्फ मिला कोई शीतपेय मिल जाए, तो हलक तर होने के लिए बेचैन हो उठता है। लेकिन सावधान! यही वह पल है जब आपको बहुत ध्यान देने की जरूरत है। सड़क किनारे हो या किसी रेस्टॉरेंट की रसवंतियां, फलों व गन्ने के रस या फिर छांछ-लस्सी में इस्तेमाल किए जाने वाले बर्फ की गुणवत्ता संदेह के घेरे में है क्योंकि खाने और उद्योगों के इस्तेमाल में लाए जाने वाले बर्फ को लेकर सरकार ने बकायदा गाइडलाइन जारी की थी। आम नागरिक भी आसानी से इस फर्क को पहचान सकते हैं, और उसे संबंधित विभाग को रिपोर्ट भी कर सकते हैं। लेकिन कैसे ? यह हम आपको बताते हैं।

ये क्यों खतरनाक
जल जनित बीमारियां दूसरी किसी अन्य बीमारियों से ज्यादा तेजी के साथ होती हैं और ध्यान न देने पर घातक भी साबित होती है। इंडस्ट्रियल आइस तैयार करते समय जरूरी नहीं कि साफ पानी ही इस्तेमाल में लाया जा रहा हो। साथ ही इसके पानी की गुणवत्ता भी नहीं परखी जाती है। इंडस्ट्रियल यूज का होने से अन्न प्रशासन उस पर सीधे कार्रवाई नहीं करता है। लेकिन जानकारी के आभाव में ये सड़क किनारे रसवंतियों के माध्यम से आपके पेट तक पहुंच जाता है और बीमार करने की पूरी ताकत रखता है। 

हो क्या रहा  
स्टार रेटेड बड़े होटलों में वैसे तो इस्तेमाल की जानेवाली बर्फ को स्थानीय स्तर पर शुद्ध पानी से तैयार किया जाता है। लेकिन छोटे मोटे होटलों और सड़क किनारे लगने वाली रसवंतियों में यह सावधानियां देखने नहीं मिलती। अक्सर इंडस्ट्रियल यूजवाले बर्फ को ही इस्तेमाल में लाया जाता है। बर्फ की बड़ी लादियां सीधे रसवंतियों के दुकानों में धड़ल्ले से इस्तेमाल की जाती है।

क्या कहता है एफओबी
दरअसल भारत सरकार के एफएसएसएआई अर्थात भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण कार्यालय ने जून 2018 में एक आदेश जारी कर फूड बिजनेस ऑपरेटर्स (एफबीओ) तय किया था जिसमें कहा गया था कि औद्योगिक इस्तेमाल के बर्फ को तैयार करते समय उसमें नीले रंग को मिलाया जाए ताकि उसे खाने वाले बर्फ से अलग और आसानी से पहचाना जा सके। 

क्या कहती है वॉटर सैंपल की स्थिति
जिला स्वास्थ्य प्रयोगशाला से मिली जानकारी के मुताबिक जिले में पानी की गुणवत्ता की स्थिति, फरवरी माह में अकेले 982 सैंपल पानी के लाए गए इसमें से 9% यानी 86 सैंपल दूषित पाए गए। जनवरी माह में 969 सैंपल्स में से 63 यानी 7% पानी के सैंपल दूषित पाए गए। नगर पालिका सीमा की बात करें तो जनवरी माह में 313 में से 10 और फरवरी माह में 268 में से 14 वॉटर सैंपल लैब की टेस्ट में फेल हुए हैं। अधिकांश दूषित सैंपल में कोलिफॉर्म बैक्टेरिया पाया गया। जो जल जनित बीमारियों का सबसे बड़ा स्रोत है। इससे अतिसार, जॉइन्डिस, कॉलरा, उल्टियां और भी दूसरी बीमारियां होने की बड़ी आशंकाएं बनी रहती हैं।  
 

Created On :   7 April 2022 2:49 PM IST

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