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पैरोल-फर्लो पर जेल अधिकारी अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर फैसला लें

डिजिटल डेस्क, नागपुर। सजायाफ्ता कैदियों की फर्लो या पैरोल अर्जी पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने जेल अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि, वे अपनी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करके अर्जियों पर फैसला लें, क्योंकि नियमों के विरुद्ध जाकर बगैर ठोस कारण के अर्जी खारिज करने से कैदियों को बार-बार कोर्ट की शरण लेनी पड़ती है। अमरावती मध्यवर्ती कारागृह में सजा काट रहे कैदी आशीष चौहान की अर्जी पर कोर्ट ने यह निरीक्षण दिया है।
यह है मामला : कोर्ट ने कहा है कि, कैदी अमरावती मध्यवर्ती कारागृह में सजा काट रहा है। 16 अक्टूबर 2019 को उसने जेल प्रशासन के पास 21 दिन फर्लो के लिए अर्जी दायर की। यवतमाल के पुलिस अधीक्षक ने स्थानीय पुलिस से कैदी की रिपोर्ट मंगवाई। स्थानीय पुलिस ने रिपोर्ट दी कि, कैदी के गांव के कुछ सम्माननीय नागरिकों की राय है कि, कैदी को फर्लो पर रिहा करने से गांव की शांति व्यवस्था बिगड़ेगी। साथ ही यह भी संभावना है कि, कैदी फर्लो खत्म होने के बाद समर्पण नहीं करेगा। इस राय के आधार पर पुलिस ने नकारात्मक रिपोर्ट तैयार की और अंतत: जेल डीआईजी ने कैदी की फर्लो अर्जी खारिज कर दी। इस पर कोर्ट ने कहा कि, पुलिस रिपोर्ट नकारात्मक हो फिर भी सक्षम जेल अधिकारी अपने विवेक का इस्तेमाल करके कैदी को पैरोल-फर्लो देने पर फैसला ले सकते हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले में जेल डीआईजी को कैदी की अर्जी पर पुनर्विचार करके फैसला देने के आदेश दिए हैं।
Created On :   24 March 2021 2:49 PM IST