बुराई के विरोध में निकाली जाती है काली मारबत , यह परंपरा खास पहचान है नागपुर की

Kali Marabut is brought out in protest against evil,  Nagpur
बुराई के विरोध में निकाली जाती है काली मारबत , यह परंपरा खास पहचान है नागपुर की
बुराई के विरोध में निकाली जाती है काली मारबत , यह परंपरा खास पहचान है नागपुर की

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  एक ऐसी अनूठी परंपरा जो अपने आप में बेहद अलग है। बुराई के विरोध में काली मारबत निकाली जाती है, जिसे देखने के लिए लोग उमड़ पड़ते हैं और 22 अगस्त को यही नजारा होगा। नेहरू चौक से काली मारबत निकलती है।

दंतकथा के अनुसार, काली मारबत का संदर्भ महाभारत समय की पुतना राक्षसी से जुड़ा है। भगवान कृष्ण को बाल्यावस्था अवस्था में ही मारने के लिए, कंस ने पुतना को भेजा था। स्तनपान से अमृत पिलाने के बहाने जहर देेकर कृष्ण का वह वध करना चाहती थी, लेकिन वह खुद मारी जाती है। गोकुलवासी गांव से बाहर ले जाकर उसे जला देते हैं। ठीक उसी प्रकार बुराइयों की प्रतीक काली मारबत को शहर भ्रमण के बाद जला दिया जाता है। हालांकि काली मारबत को लोग देवी का प्रतीक भी मानते हैं।

भोसलेकाल से चली आ रही परंपरा

तकरीबन 1881 ईसवी में नागपुर के भोसले राजवंश की बकाबाई ने विद्रोह कर अंग्रेजों का साथ दिया। उसके बाद भोसले राजघराने पर बुरे दिन आ गए। इसी विद्रोह के विरोध में काली मारबत के जुलूस की नींव पड़ी।

ऐसी होती है बनावट

काली मारबत आकार में बड़ी बनाई जाती है। रंग गाढ़ा काला होता है, जिसे बांस की कमचियां, बल्लियां, रंगीन कागज और सुतली की मदद से आकार दिया जाता है। करीब 15 से 17 फीट ऊंची मारबत की प्रतिमा का चेहरा असामान्य व क्रोधित देवी के रूप में गढ़ा जाता है।

बिना रोक-टोक प्रतिवर्ष आयोजन

काली मारबत उत्सव समिति के माध्यम से  प्रतिवर्ष काली मारबत निकाली जाती है। 1942 में मारबत जुलूस को लेकर दंगा हुआ था, जिसमें 5 लोगों की मौत हो गई थी।  इसके बावजूद मारबत जुलूस निकाला गया और परंपरा आज भी कायम है।

अंग्रेजी हुकूमत के विरोध का सशक्त माध्यम पीली मारबत

तर्हाने तेली समाज का आजादी की लड़ाई में अमूल्य योगदान रहा है। आजादी की लड़ाई और लोगों को जागरूक करने की दिशा में, पीली मारबत निकालने की परंपरा समाज आदिकाल से निभा रहा है। पोले पर मारबत की मूर्ति स्थापना और पलाश के पत्ते घर-घर दरवाजे पर रखकर पूजा की जाती है। मूर्ति को ले जाकर "रोगराई घेऊन जागे मारबत" नारों के साथ पीली मारबत मूर्ति दहन की कथा प्रचलित है, जो पिछले करीब 133 साल से चली आ रही है। अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने में समाज सक्रिय भूमिका निभा रहा था, लेकिन आजादी की राह इतनी आसान नहीं थी। इसे ध्यान में रखते हुए सभी समाज के लोगों को जागृत करने के लिए पोले के दिन 1885 में मारबत उत्सव शुरू किया गया। पीली मारबत को देवी का प्रतीक माना जाता है और जागनाथ बुधवारी परिसर में पीली मारबत मंदिर है। 

Created On :   15 Aug 2017 6:49 AM GMT

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