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मेडिकल के कैंसर विभाग में मशीनों की कमी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नागपुर के शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) का कैंसर विभाग अत्याधुनिक मशीनों की कमी से जूझ रहा है। जो मशीनें हैं, वह पुरानी हो चुकी हैं। एक मशीन के लिए फंड है, तो उसे लगाने के लिए उचित जगह नहीं है। पिछले कई साल से इस विभाग को आधुनिक करने का प्रयास मेडिकल प्रशासन कर रहा है। ऐसे में मरीजों को पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण उपचार नहीं मिल पा रहा है।
लीनियर एक्सीलरेटर मशीन : मेडिकल को कैंसर के उपचार में कारगर लीनियर एक्सीलरेटर मशीन की जरूरत है। 2019 में इसके लिए प्रस्ताव भेजा गया और 2020 में मंजूरी मिली। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने 23.20 करोड़ रुपए की निधि दी है। मेडिकल प्रशासन ने हाफकिन कंपनी को मशीन के लिए ऑर्डर दिया, लेकिन यह मशीन अब तक नहीं मिली है। दूसरा कारण यह बताया जा रहा है कि मशीन को लगाने के लिए मेडिकल के पास जगह नहीं है। इसे कैंसर इंस्टीट्यूट में लगाने की योजना थी, लेकिन कागजी प्रक्रिया के पेंच में उलझने से इसका निर्माण शुरू नहीं हो पाया है।
मान्यता पर भी होगा असर
मेडिकल के कैंसर विभाग में स्नातकोत्तर विद्यार्थियों की सीटें हैं। यहां हर साल 5 विद्यार्थी रेडियो थेरेपी टेक्निशियन की शिक्षा प्राप्त करने आते हैं। बताया जाता है कि राज्य में यह कोर्स केवल मेडिकल में ही है। इस कोर्स के लिए एमसीआई से हर पांच साल में मान्यता लेनी पड़ती है। मान्यता देने से पहले टीम मूल्यांकन करने पहुंचती है। इस दौरान मशीनों की जानकारी व उनकी उपयोगिता देखी जाती है। जनवरी 2022 में यह टीम मेडिकल में पहुंचने की संभावना है। कैंसर विभागाें की मशीनों को देखने के बाद पूनर्मान्यता मिलेगी या नहीं, इस पर संदेह है।
कोबाल्ट थेरेपी मशीन
मेडिकल में कोबाल्ट थेरेपी मशीन है, जो 2006 में लगाई गई थी। इस मशीन के जिस पार्ट से रेडिएशन दिया जाता है, उसे सोर्स कहा जाता है। यह सोर्स हर पांच साल में बदलना पड़ता है। आखिरी बार 2015 में बदला गया था। 2020 में इसे बदलना था, लेकिन बदल नहीं पाया है। बताया जाता है कि भारतीय सोर्स की कीमत करीब 60 लाख रुपए तक है। फिलहाल कैंसर इंस्टीट्यूट के निर्माण का इंतजार किया जा रहा है। यह इमारत बन जाती है, तो कोबाल्ट मशीन के स्थान पर आधुनिक लीनियर एक्सीलरेटर मशीन लगेगी। तब सोर्स लगाने का कोई औचित्य नहीं रहेगा। मेडिकल में हर रोज 70 से 80 मरीजों को इस मशीन से थेरेपी दी जाती है।
ब्रेकी थेरेपी मशीन हो गई पुरानी
कैंसर के मरीज के शरीर पर विकिरण का दुष्प्रभाव कम करने और कैंसर के ट्यूमर को खत्म करने के लिए ब्रेकी थेरेपी मशीन का उपयोग किया जाता है। 2009 में मेडिकल को केंद्र सरकार ने इस मशीन के लिए निधि दी थी। तबसे यह मशीन काम कर रही थी। इसी अगस्त से यह मशीन बंद पड़ गई है। बताया जाता है कि यह मशीन अपनी समयावधि खत्म कर चुकी है। इसके स्थान पर नई मशीन की जरूरत है। जल्द ही इसका प्रस्ताव भेजा जानेवाला है। मेडिकल को अत्याधुनिक सीटी सिमुलेटर मशीन की भी जरूरत है। इससे रेडिएशन की डोज कम्प्यूटर से निर्धारित की जाती है। यह सुरक्षित उपचार पद्धति है। इससे कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है।
Created On :   18 Dec 2021 6:45 PM IST