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घरेलू हिंसा गर्भपात की अनुमति देने का वैध आधार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। घरेलू हिंसा गर्भपात की अनुमति देने का वैध आधार हो सकता है। क्योंकि ऐसी हिंसा माहिला के मानसिक सेहत को प्रभावित करती है। बांबे हाईकोर्ट ने यह बात कहते हुए एक महिला को 23 सप्ताह के अपने सामान्य भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दे दी है। न्यायमूर्ति उज्जल भुयान व न्यायमूर्ति माधव जमादार की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। घरेलू हिंसा से पीड़ित 22 वर्षीय महीला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गर्भपात की अनुमति मांगी थी। महिला ने याचिका में दावा किया था कि वह व उसके पति एक दूसरे से तलाक ले रहे हैं। इसलिए वह अपने गर्भ में बच्चे को नहीं रखना चाहती है। इसके साथ ही महिला ने खुद को घरेलू हिंसा का शिकार बताया था। वहीं जेजे अस्पताल के विशेषज्ञों डाक्टरों के पैनल ने महिला की जांच करने के बाद पाया था कि महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण की स्थिति सामान्य है। लेकिन महिला काफी मानसिक यातना झेल चुकी है।
ऐसे में यदि महिला को गर्भपात की अनुमति नहीं दी जाती है तो इससे उसकी मानसिक पीड़ा और बढेगी। नियमानुसार 20 सप्ताह से अधिक समय के भ्रूण का गर्भपात कोर्ट की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता। इसलिए महिला ने 23 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति दिए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा ने महिला की मानसिक सेहत पर असर डाला है। ऐसे में यदि महिला बच्चे को जन्म देती है तो उसके भविष्य पर इसका विकट असर पड़ेगा।
महिला का अपने शरीर पर अधिकार
इस दौरान खंडपीठ ने विश्व स्वास्थय संगठन द्वारा महिलाओं के अधिकार को लेकर कही गई बातों का जिक्र करते हुए कहा कि महिला का अपने शरीर पर अधिकार है। दुष्कर्म महिला के खिलाफ जघन्य अपराध है। घरेलू हिंसा भी गंभीर अपराध है। इस मामले में महिला ने कहा है कि बच्चे की जन्म की स्थिति में उसे अपने पति से कोई वित्तीय व भावनात्मक सहयोग नहीं मिलेगा। ऐसे में महिला को गर्भपात की अनुमति न देना महिला को गर्भ में भ्रूण को पालने के लिए जबरजस्ती करने जैसा होगा। यह उसकी मानसिक सेहत को भी चोट पहुंचाएगा।
Created On :   18 Aug 2021 6:51 PM IST