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मध्य प्रदेश सरकार ने ईसबगोल पर मंडी फीस 75 प्रतिशत घटाई

- इस पर पहले प्रत्येक सौ रुपये पर दो रुपये मंडी फीस लगती थी जिसे घटा कर प्रत्येक सौ रुपये पर 50 पैसा कर दिया गया है।
- ईसबगोल की उपज लेने वाले किसानों को इसका सही दाम मिल सकेगा।
- मध्यप्रदेश सरकार ने कृषि औषधीय उपज ईसबगोल पर मंडी फीस 75 प्रतिशत घटा दी है।
- ईसबगोल एक एक झाड़ीनुमा पौधा है जिसके बीज का छिलका कब्ज
- अतिसार आदि अनेक प्रकार के रोगों की आयुर्वेदिक औषधि है।
- ईसबगोल का उपयोग रंग-रोगन
- आइस्क्रीम
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने कृषि औषधीय उपज ईसबगोल पर मंडी फीस 75 प्रतिशत घटा दी है। इस पर पहले प्रत्येक सौ रुपये पर दो रुपये मंडी फीस लगती थी जिसे घटा कर प्रत्येक सौ रुपये पर 50 पैसा कर दिया गया है। सरकार के इस फैसले के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि ईसबगोल की उपज लेने वाले किसानों को इसका सही दाम मिल सकेगा। पहले मंडी फीस लगने के कारण व्यापारी ये पैसा भी किसानों से ही वसूलने के चक्कर में होते थे और कम दामों पर उनकी उपज खरीदते थे।
किसानों को होगा फायदा
ईसबगोल मध्य प्रदेश में अधिसूचित उपज है तथा किसानों द्वारा कृषि उपज मंडियों में इसका विक्रय किया जाता है। कृषि मंडी में जब व्यापारी इसका किसानों से विक्रय करता है तथा मंडी से बाहर ले जाने लगता है तो उस पर ईसबगोल के कुल मूल्य पर प्रति सौ रुपये दो रुपया मंडी शुल्क लिया जाता था। इस मंडी शुल्क की राशि को व्यापारी किसानों की ईसबगोल उपज के मूल्य को कम कर वसूल लेते थे। ईसबगोल का उपयोग व्यापारी आयुर्वेदिक औषधि में करते हैं। इस पर मंडी फीस ज्यादा होने से यह प्रसंस्करण के बाद महंगी हो जाती थी तथा अन्य राज्यों के मुकाबले इसकी औषधि ज्यादा कीमत पर कीमत मिलती थी। अब सरकार ने इस पर मंडी फीस 75 प्रतिशत घटा दी गई है यानि अब इस पर मंडी फीस सौ रुपये पर मात्र 50 पैसे ही देने होंगे। इससे अब किसानों को ईसबगाल की उपज पर ज्यादा कीमत मिल सकेगी।
आयुर्वेदिक औषधि है ईसबगोल
ईसबगोल एक एक झाड़ीनुमा पौधा है जिसके बीज का छिलका कब्ज, अतिसार आदि अनेक प्रकार के रोगों की आयुर्वेदिक औषधि है। ईसबगोल का उपयोग रंग-रोगन, आइस्क्रीम और अन्य चिकने पदार्थों के निर्माण में भी किया जाता है। ईसबगोल नाम एक फारसी शब्द से निकला है जिसका अर्थ है ‘घोड़े का कान’, क्योंकि इसकी पत्तियाँ कुछ उसी आकृति की होती हैं इसलिए इसका नाम ईसबगोल रखा गया था।
सीएस वरिष्ठ अपर संचालक एमपी मंडी बोर्ड के मुताबिक मध्यप्रदेश में ईसबगोल की पैदावार मुख्यत: मंदसौर और नीमच जिलों में होती है और वहीं की मंडियों में यह विक्रय के लिये ज्यादा आती है। इस पर मंडी फीस इसलिये कम की गई है ताकि किसानों को उनकी उपज का अधिक मूल्य मिल सके और इसकी प्रतिस्पर्धात्मक दरें उपलब्ध हो सकें। मंडी फीस 50 पैसा होने से यह पूरी राशि संबंधित कृषि उपज मंडी के खाते में ही जायेगी तथा विपणन विकास निधि अर्थात किसान सड़ निधि एवं कृषि अनुसंधान तथा अधोसंरचना विकास निधि जो कि राज्य स्तर पर होती है, कोई राशि नहीं जायेगी। इससे पहले जब मंडी फीस दो रुपये थी तो 50 पैसे संबंधित कृषि मंडी, एक रुपये विपणन विकास निधि तथा 50 पैसा मंडी बोर्ड के खाते में जाती थी।
Created On :   17 Jun 2018 10:53 AM IST