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चार साल की उम्र में डायबिटीज, नहीं बढ़ पाई हाइट

डिजिटल डेस्क, नागपुर। चार साल की उम्र में बच्चे अपनी धुन में होते हैं। उन्हें किसी भी बात की कोई चिंता नहीं रहती है। इसी चार साल की उम्र से मैं (मकरंद सातदेवे, वर्धा निवासी) दिन में दो बार इंसुलिन ले रहा हूं। 4 साल का था, जब एक दिन अचानक कोमा में चला गया। उपचार के लिए मुझे लेकर परिजन अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि टाइप वन डायबिटीज है। पहले अस्पताल के स्टॉफ ने इंसुलिन दिया और फिर मां को सिखाया। घर पर आने के बाद वही मुझे इंसुलिन देती रही। इसी बीच, पता नहीं कब इंसुलिन लगाना मैंने भी सीख लिया। आज 24 साल हो गए, लगातार इंसुलिन ले रहा हूं। मधुमेह का उचित उपचार न ले पाने के कारण खामियाजा भी भुगतना पड़ा। भूख न लगना, खान-पान बराबर न होने की समस्या भी बनी रहती है। ऊंचाई भी नहीं बढ़ी। मेरी हाईट 4.85 फीट ही है, जबकि घर में सभी की ऊंचाई अच्छी है। जांघ में मैं इंसुलिन लेता हूं। वहां सूजन पड़ गई है। आपको बता दें कि 14 नवंबर को बाल दिवस के साथ ही विश्व मधुमेह दिवस भी है।
कहते हैं वरिष्ठ मधुमेह चिकित्सक
वरिष्ठ मधुमेह चिकित्सक बताते हैं कि भारत में कुल मधुमेहियों में से 2 से 4 फीसदी बच्चों को टाइप वन मधुमेह होता है। टाइप वन मधुमेह की शुरुआत 5 से 15 साल की उम्र से होती है। हालांकि टाइप वन मधुमेह 6 और 9 माह के बच्चों में भी देखने को मिला है। टाइप वन मधुमेहियों को इंसुलिन इंजेक्शन के माध्यम से लेना पड़ता है। उचित उपचार न लेने से बच्चों का विकास सही नहीं होता है। टाइप वन मधुमेही को दिन में सुबह नाश्ते के पहले, दोपहर में खाने के पहले, रात को खाने के पहले और रात को सोने से पहले 4 समय इंसुलिन लेना चाहिए। इंसुलिन शरीर के वजन को देखते हुए प्रति किलोग्राम के हिसाब से यूनिट में दिया जाता है। सामान्यत: मरीज पेट और जांघ में इंसुलिन का इंजेक्शन लगाते हैं। अनियमित इंसुलिन आंखों और किडनी की बीमारी का कारण बनता है।
Created On :   14 Nov 2018 12:04 PM IST