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कार्पोरेट ने बनवाए टॉयलेट, मनपा ने लगवाए ताले, गंदगीमुक्त अभियान को ठेंगा
डिजिटल डेस्क, नागपुर। शहर में जोर-शोर से शुरू किए गए कई टायलेट प्रशासनिक उदासीनता के चलते बंद हो गए हैं। इनमें शहर का पहला महिला टायलेट भी शामिल है जो बंद हो चुका है। वैसे तो शहर को स्वच्छ और गंदगीमुक्त बनाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें कई प्रयास कर रही हैं। टायलेट और पेयजल सुविधा जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए निधि की जरूरत होती है। इसके लिए सरकार ने औद्योगिक घरानों और कार्पोरेट कंपनियों की सीएसआर निधि को लेने का प्रावधान किया है। इसी योजना के तहत दो साल पहले बुटीबोरी की कैलीडरी रिफ्रेक्टरीज कंपनी ने 2 करोड़ रुपए की निधि आवंटित की। इस निधि से राज्य में पहली बार महिला टायलेट की संकल्पना को उपराजधानी में साकार किया जाना था। पहले चरण में 50 महिला टायलेट के लिए मंजूर किया।
पहले चरण में 15 टायलेट बनाने का निर्णय लिया गया। शहर के पहले महिला टायलेट का शुभारंभ 25 मई 2016 को किया गया। टायलेट के लिए नि:शुल्क जगह और विज्ञापन खर्च पर मनपा प्रशासन ने मंजूरी दी, लेकिन प्रत्येक टायलेट के रखरखाव, सफाई और देखभाल के 12,000 रुपए प्रतिमाह के खर्च को लेकर कोई योजना नहीं बनाई गई। मनपा की लापरवाही को देखते हुए कैलीडरी रिफ्रेक्टरीज कंपनी ने दो साल तक रखरखाव खर्च का भुगतान भी किया, लेकिन सितंबर माह में भुगतान करना बंद कर दिया। इसके बाद टायलेटों को ताला लगा दिया गया है। मनपा प्रशासन द्वारा टायलेटों के संचालन के लिए कोई विकल्प नहीं दिए जाने से तालाबंदी करनी पड़ी है। वहीं दूसरी ओर पहले चरण में ही विफलता मिलने पर अब 35 टायलेट के निर्माण पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है। रोटरी क्लब के मुताबिक प्रशासन से टायलेटों के संचालन खर्च की व्यवस्था नहीं होने से इन्हें बंद करना पड़ा है।
12 घंटे होता था संचालन
पहले चरण के लिए 2.50 लाख प्रति यूनिट और 1 साल की संचालन निधि समेत 3.75 लाख रुपए खर्च किए गए। पहले 5 टायलेटों में केवल महिलाओं के तीन यूरिनल और 1 टायलेट बनाया गया था, लेकिन मनपा आयुक्त हार्डीकर और महापौर प्रवीण दटके के अनुरोध पर इसमें बदलाव किया गया। नए बदलाव के साथ 4.50 लाख की लागत के बड़े यूनिट में तीन यूरिनल पुरुषों एवं महिलाओं के लिए 3 यूरिनल समेत 1 टायलेट की व्यवस्था की गई। टायलेटों के इस्तेमाल के लिए नाममात्र का शुल्क लिया जाता है। मनपा के साथ एमओयू के तहत प्रतिदिन 12 घंटे तक इसका संचालन किया जाना है। इसमें कर्मचारी के वेतन पर 9,000 रुपए, बिजली, पानी का बिल, सफाई समेत कुल 12000 रुपए प्रतिमाह खर्च होता है। पिछले दो सालों में 15 महिला कर्मचारी टायलेटों की देखभाल कर रही थीं। इस खर्च काे कंपनी ने अब तक वहन किया, लेकिन आमदनी के साधन नहीं होने से अब मामला खटाई में पड़ गया है।
सीएसआर निधि का सदुपयोग हो
साल 2015-16 में 15 टायलेट तैयार किये गये थे। बुटीबोरी की सीएसआर फंड में कैलीडरी रिट्रेक्टरीज कंपनी ने 2 करोड़ रुपए 50 टायलेटों के लिए आवंटित किए। पहले चरण में बने 15 टायलेटों के संचालन में मनपा ने कोताही बरती। इसके बाद अतिरिक्त निधि देकर दो सालों तक इन टायलेटों का संचालन किया गया लेकिन अब टायलेटों के संचालन के लिए मनपा की कार्ययोजना बेहद जरूरी हो चुकी है। प्रशासन की अनदेखी से 15 टायलेट बंद होने के साथ ही 35 नए टायलेटों का भी मामला अटक गया है। ऐसा ही हाल बना रहा तो शहर में नागरी सुविधाओं को तैयार नहीं किया जा सकेगा। इसके साथ ही कार्पोरेट कंपनियां और सेवाभावी संस्थाएं भी सामाजिक सरोकारों से दूरी बनाएंगी।
-राहुल लद्धड, व्यवसायी एवं सदस्य, रोटरी क्लब ईशान्य नागपुर
मामले की जानकारी लेता हूं
मैं इस मामले की जानकारी लेता हूं। इसके बाद आगे की कार्यवाही करेंगे।
-सुनील कांबले, स्वास्थ्य अधिकारी, मनपा
Created On :   23 Oct 2018 10:55 AM GMT