‘मराठी महाराष्ट्र की मातृ भाषा, इस भाषा में बोर्ड लगाने का फैसला सही’

Marathi is the mother tongue of Maharashtra, the decision to put a board in this language is right
‘मराठी महाराष्ट्र की मातृ भाषा, इस भाषा में बोर्ड लगाने का फैसला सही’
हाईकोर्ट ने खारिज की होटल फेडरेशऩ की याचिका  ‘मराठी महाराष्ट्र की मातृ भाषा, इस भाषा में बोर्ड लगाने का फैसला सही’

डिजिटल डेस्क, मुंबई। दुकानों और प्रतिष्ठानों में मराठी भाषा (देवनागरी लिपि) में बोर्ड लगाने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को बांबे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा है। फेडेरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स की ओर से दाखिल याचिका खारिज करते हुए बांबे हाईकोर्ट ने कहा कि मराठी महाराष्ट्र की मातृभाषा है इसलिए राज्य की हर दुकान या संस्थान के बाहर मराठी में बोर्ड लगाने के आदेश को भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि आदेश संविधान की धारा 14 का उल्लंघन नहीं करता। अदालत ने इस मामले में याचिकाकर्ता पर 25 हजार का जुर्माना भी लगाया है और यह राशि एक सप्ताह में मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा कराने के निर्देश दिए हैं। न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि आदेश में किसी और भाषा के इस्तेमाल पर रोक नहीं है सिर्फ दुकान या संस्थान का नाम दूसरी भाषा के मुकाबले मराठी भाषा में ज्यादा बड़े अक्षरों में लिखे होने की शर्त है।

याचिकाकर्ता के वकील मयूर खांडेपेरकर ने कहा कि राज्य सरकार खुद मराठी का इस्तेमाल आधिकारिक भाषा के रुप में कर सकती है लेकिन वह नागरिकों के लिए इसे अनिवार्य नहीं बना सकती।  इस पर न्यायमूर्ति पटेल ने कहा कि अगर आदेश में कहा गया होता कि सिर्फ मराठी भाषा का इस्तेमाल किया जाए तो इस पर बहस हो सकती थी लेकिन साथ में दूसरी भाषा के इस्तेमाल पर कोई पाबंदी नहीं है। न्यायमूर्ति जामदार ने कहा कि इस नियम से राज्य के लोगों को सहूलियत होगी क्योंकि ज्यादातर लोगों की मातृभाषा मराठी है। याचिकाकर्ता को समझना होगा कि यह नियम दुकानदारों के लिए नहीं लोगों के लिए है जो बोर्ड पढ़कर खरीदारी के लिए आएंगे। उनके लिए मराठी समझना ज्यादा आसान होगा। मराठी राज्य सरकार के लिए आधिकारिक भाषा तो है ही राज्य की भी बोलचाल की भाषा और मातृभाषा है। खंडपीठ ने 2018 में किए गए बदलाव को लेकर 2022 में याचिका दाखिल करने पर भी सवाल उठाए। न्यायमूर्ति पटेल ने कहा कि नियम 2018 से पहले से था बस इस पर अमल नहीं हो रहा था। खंडपीठ ने कहा कि भेदभाव का दावा सही नहीं है क्योंकि राज्य की सभी दुकानों पर यह समान रूप से लागू होता है। अदालत ने यह भी कहा कि कई राज्य ऐसे भी हैं जहां स्थानीय भाषा और लिपी का इस्तेमाल अनिवार्य है लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा नहीं है। 

Created On :   23 Feb 2022 1:24 PM GMT

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