मराठी न आने से गई सिविल जज की नौकरी, बॉम्बे हाईकोर्ट ने नियम को ठहराया सही

Marathi language is essential for states judicial service - HC
मराठी न आने से गई सिविल जज की नौकरी, बॉम्बे हाईकोर्ट ने नियम को ठहराया सही
मराठी न आने से गई सिविल जज की नौकरी, बॉम्बे हाईकोर्ट ने नियम को ठहराया सही

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य की न्यायिक सेवा में शामिल होने के लिए इच्छुक उम्मीदवार को मराठी बोलना, लिखना व पढना आना ही चाहिए। सिविल जज जूनियर डिविजन व न्यायिक मैजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) पर नियुक्ति के लिए बनाए गए इस नियम को बांबे हाईकोर्ट ने सही ठहराया है। न्यायमूर्ति आरएम सावंत व न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे की बेंच ने शोभित गौर की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। दिल्ली में वकालत करने वाले गौर ने पुणे से एलएलबी की पढाई पूरी थी। इस बीच उन्होंने महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग की ओर से सिविल जज जूनियर डिविजन व न्यायिक मैजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन देखा। इसके बाद उन्होंने इस पद के लिए आवेदन किया। पद के लिए जरुरी सभी परिक्षाओं, साक्षत्कार व मेडिकल टेस्ट होने के बाद चयनित उम्मीदवारों की सूची जारी की गई। इस सूची में गौर का नाम शामिल था।

कुछ दिनों बाद आयोग की ओर से उन्हें एक पत्र भेजा गया जिसमें उन्हें उपरोक्त पद के लिए अनुपयुक्त ठहराया गया था। इसकी वजह नियुक्ति को लेकर मराठी बोलने, लिखने व पढने आने की अनिवार्यता से जुड़ी शर्त बताई गई थी।  आयोग के ओर से जारी किए गए इस पत्र को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी। याचिका में दावा किया गया था कि नियुक्ति को लेकर बनाए गए नियम भेदभावपूर्ण हैं। उन्हें सिविल जज जूनियर डिविजन पद के लिए चयनित किया जा चुका है, इसके चलते उन्होंने अपनी वकालत से जुड़ा पंजीयन भी जमा कर दिया।

आयोग की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि नियुक्ति को लेकर दिए गए विज्ञापन में साफ किया गया था कि उम्मीदवार को मराठी लिखना, बोलना व पढना आना चाहिए। इसके लिए प्रधान जिला जस्टिस से प्रमाणपत्र लाना जरुरी है लेकिन याचिकाकर्ता ने इस संबंध में जिला सत्र जस्टिस का प्रमाणपत्र दिया है। उन्होंने इस दौरान विधि आयोग की 118 वी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि निचली अदालतों में नियुक्ति के समय स्थानीय भाषाओं व कानून की जानकारी को महत्व दिया जाना चाहिए। संविधान में भी इसका प्रावधान किया गया है।

महाराष्ट्र न्यायिक सेवा से जुड़े नियम भी मराठी बोलने, लिखने व पढने को आवश्यक बताते हैं। साथ ही चयनित होने का मतलब यह नहीं है कि उम्मीदवार को पूरी तरह से नियुक्ति का अधिकार मिल गया है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट की बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि हमे मराठी बोलने, लिखने व पढने की जानकारी होने से जुड़ी योग्यता में कोई खामी नजर नहीं आती है। राज्य न्यायिक सेवा से जुड़े नियम सही है। 

 

Created On :   27 Aug 2018 4:18 PM GMT

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