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‘राजनीति की टोपी उतार कर निष्पक्ष ढंग से काम करें मंत्री’

डिजिटल डेस्क, मुंबई। एक मंत्री जब राज्य सरकार के अपीलेट अथॉरिटी के रुप में काम करता है तो यह जरुरी है कि वह अपने सिर से अपने राजनीतिक दल की टोपी को उतार दे। अपीलेट अथॉरिटी के रुप में मंत्री को पूरी तरह से निष्पक्ष होकर काम करना चाहिए। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में इस तरह की टिप्पणी की है। मामला मीरारोड महानगरपालिका के भाजपा गटनेता हसमुख गहलोत की ओर से जारी व्हीप की अवहेलना से जुड़ा है। इस मामले में कोकण विभागीय आयुक्त ने जबगहलोत के पक्ष में फैसला नहीं सुनाया तो उन्होंने संबंधीत मंत्री के पास अपील करने की बजाय हाईकोर्ट में याचिका दायर कर विभागीय आयुक्त के फैसले को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी ने मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद गहलोत की याचिका को समाप्त करते हुए स्पष्ट किया है कि जिलाधिकारी व आयुक्त के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार के पास अपील का प्रावधान किया गया है। सिर्फ पक्षपात की आशंका व अनुमान के आधार पर लोकतांत्रिक तरीके से कानून में संशोधन करके बनाए गए अपील के प्रावधान को अर्थहीन व व्यर्थ नहीं बनाया जा सकता है। लिहाजायाचिकाकर्ता वैधानिक अपीलेट अथारिटी(मंत्री) के पास विभागीय आयुक्त के फैसले के खिलाफ अपील करे और अपीलेट अथारिटी को अपील दायर होने के दो माह के भीतर उसका निपटारा करे।
भाजपा नगरसेवकों ने किया था व्हीप का उलंघन
दरअसलमीरा-भायंदर महानगरपालिका में भाजपा के गटनेता हसमुखगहलोतने महापौर व उपमहापौरचुनाव केलिए अपने पार्टी नगरसेवकों के लिए व्हीप जारी किया था। पार्टी के चार नगरसेवकों ने मतदान के दौरान पार्टी व्हीप का पालन नहीं किया। उसमे से एक नगरसेवक गीता जैन भी थी। जैन विधायक भी हैं। इसलिए गहलोत ने नगरसेवकों को आपात्र घोषित किए जाने को लेकर महाराष्ट्र लोकल अथारिटी मेंबर डिसक्वालिफिकेशन एक्ट 1986 के प्रावधानों के तहत कोकण के विभागीय आयुक्त के पास आवेदन किया था। विभागीय आयुक्त ने 29 अक्टूबर 2021 को इस आवेदन को खारिज कर दिया। जिसके खिलाफगहलोत ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति कुलकर्णी के सामने याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकारी वकील वीएस निंबालकर ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि जिलाधिकारी व आयुक्त के निर्णय के खिलाफ राज्य सरकार के पास अपील की जा सकती है। इस मामले में याचिकाकर्ता के पास सीधे कोर्ट आने की बजाय नगरविकास मंत्री के पास अपील करने का विकल्प है। चूंकि याचिकाकर्ता ने कानूनी रुप से उपलब्ध अपील के इस विकल्प का इस्तेमाल नहीं किया है। इसलिए यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। वहीं याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उन्हें आशंका है कि शिवसेना के मंत्री इस मामले की सुनवाई में पक्षपाती हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने मंत्री के सामने अपील करने के बजाय हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का विकल्प अपनाया है।
मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने,याचिका व मामले से जुड़े संबंधित कानून पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि एक मंत्री जब अपील पर सुनवाई करता है तो उसके सिर पर दो टोपिया होती हैं। एक अपीलेट अथॉरिटी की, जहां वह राज्य सरकार के रुप में काम करता है। दूसरे उसके राजनीतिक दल की जिससे वह जुड़ा होता है। ऐसे में मंत्री जब अपीलेट अथॉरिटी के रुप में काम करता है तो यह जरुरी है कि खुद के सिर से अपने राजनीतिक दल की टोपी को उतार दे। क्योंकि अपीलेट अथॉरिटी की टोपी अधिक सम्मानजनक व गरिमामय होती है। इसलिए मंत्री को अपीलेट अथॉरिटी के रुप में पूरी तरह से निष्पक्ष होकर काम करना चाहिए।
Created On :   11 Dec 2021 5:18 PM IST