बेटी के हत्या के आरोपी पति के खिलाफ मां को मिला अपील का अधिकार

Mother gets right of appeal against husband accused of killing daughter
बेटी के हत्या के आरोपी पति के खिलाफ मां को मिला अपील का अधिकार
बेटी के हत्या के आरोपी पति के खिलाफ मां को मिला अपील का अधिकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बेटी के निधन से मां को भावनात्मक ठेस पहुंचती है। इसलिए मां भी पीड़ित की परिभाषा के दायरे में आती है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में यह बात स्पष्ट की है। इसके साथ हाईकोर्ट ने मां को बेटी की हत्या के मामले में बरी किए गए उसके पति के खिलाफ अपील की अनुमति भी प्रदान की है। चूंकि अपील दायर करने में 717 दिन का विलंब हो गया था। इसलिए मां ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया था। ताकि वह अपनी बेटी की हत्या के मामले से बरी किए गए उसके पति की रिहाई के आदेश को चुनौती दे सके। न्यामूर्ति एस एस शिंदे व न्यायमूर्ति वी जी बिष्ट की खंडपीठ के सामने इस आवेदन पर सुनवाई हुई। आवेदनकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव चव्हाण ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के तहत पीड़ित के लिए अपील के विषय में कोई समय सीमा नहीं है। मेरे मुवक्किल ने अपनी बेटी को खोया है। इसलिए वे इस मामले में पीड़ित हैं। इसके अलावा वह एक गृहणी व अशिक्षित हैं। इस मामले में समय सीमा की मर्यादा से जुड़ा कानून (लॉ ऑफ लिमिटेशन) लागू नहीं होगा। वही मामले से रिहा किए गए पति के वकील ने कहा कि अपील दायर करने में 712 दिन की देरी क्यों हुई। इसको लेकर कोई ठोस कारण नहीं दिया गया है। इसलिए इस देरी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस तरह से उन्होंने याचिका का विरोध किया। 

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि आवेदनकर्ता (मां) ने अपनी बेटी को खोया है जिससे उन्हें भावनात्मक ठेस पहुंची हैं। इसलिए वह पीड़ित की परिभाषा के दायरे में आती हैं। आमतौर पर ऐसा अनुभव किया गया है कि शिकायतकर्ता अक्सर अशिक्षित होती है और समाज के निचले तबके से आती हैं। जिसे कई बार अदालत की कार्रवाई के परिणाम की जानकारी ही नहीं हो पाती है। वैसे यह सरकारी वकील की जिम्मेदारी होती है कि वह शिकायतकर्ता को इस बारे में बताए। इसके अलावा रिहाई के आदेश के बाद उसकी प्रति डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेटके पास भेजी जाती हैं। जो आगे की प्रक्रिया तय करता है। इसलिए सभी अदालते जिला मैजिस्ट्रेट को कब फैसले की प्रति भेजती है। इसका एक रजिस्टर रखा जाए। जिसमें सारा रिकॉर्ड रखा जाए। इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि शिकायकर्ता को अपील के अधिकार की जानकारी दी जाए। हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले की प्रति उच्च न्यायालय के अधीनस्थ सभी अदालतों को भेजने का निर्देश दिया  है। कोर्ट ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को यह आश्वस्त करने को कहा है।

Created On :   18 July 2020 5:05 PM IST

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