सरकारी विभाग में बोगस जाति प्रमाणपत्र से नौकरी पाने वालों की खैर नहीं

Nagpur bench of Bombay high court ordered to appoint eligible candidates
सरकारी विभाग में बोगस जाति प्रमाणपत्र से नौकरी पाने वालों की खैर नहीं
सरकारी विभाग में बोगस जाति प्रमाणपत्र से नौकरी पाने वालों की खैर नहीं

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वे अपने सभी सरकारी विभागों में फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर आरक्षित प्रवर्ग की सीट पर नौकरी पाने वाले अधिकारी-कर्मचारियों को निकाल कर उनकी जगह पात्र उम्मीदवारों की नियुक्तियां करें। इसमें उन कर्मचारियों को शामिल न करें, जिन्हें हाईकोर्ट या सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिली है। हाईकोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को हर हाल में यह काम समयबद्ध ढंग (दिसंबर 2019) से पूरा करने को कहा है। ऐसा नहीं करने पर मुख्य सचिव पर व्यक्तिगत रूप से कोर्ट की अवमानना का मामला चलाया जाएगा। कोर्ट के इस आदेश के बाद फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, वीजेएनटी और अन्य प्रवर्ग के लिए आरक्षित पदों पर नियुक्तियां पाने वाले कर्मचारियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। प्रदेश में आरक्षित प्रवर्ग की सीटों पर नौकरी कर रहे करीब 63 हजार सरकारी कर्मचारी हैं। इनमें से 13 हजार के दावों को जाति वैधता पड़ताल समिति ने खारिज कर दिया है। 

जीआर का किया था विरोध
बता दें कि ऑर्गनाइजेशन फॉर द राइट्स ऑफ ट्राइबल की याचिका पर बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय फर्जी तरीके से नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों को सेवा से निकाल देने का आदेश जारी किया था। इसके कार्यान्वयन के लिए  महाराष्ट्र सरकार ने 5 जून को जीआर निकाला, जिसमें उन्होंने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के दूरगामी परिणाम होंगे। ऐसे में विविध विभागों में नियुक्त आरक्षित प्रवर्ग के कर्मचारियों के दस्तावेजों की पड़ताल जरूरी है। सरकार ने आदिवासी विकास विभाग मंत्री की अध्यक्षता में एक उपसमिति भी गठित की। समिति को पड़ताल के लिए दो माह का समय दिया गया है। तब तक किसी कर्मचारी को नहीं निकालने का फैसला लिया गया है। साथ ही उन्हें खुले प्रवर्ग के तहत सेवा में कायम रहने का मौका दिया गया है। याचिकाकर्ता ने फिर एक बार हाईकोर्ट की शरण लेकर इस जीआर का विरोध किया था, जिस पर शुक्रवार को कोर्ट ने यह आदेश जारी किए हैं। 

वर्क लोड बढ़ेगा इसलिए फौरन नहीं निकाला
मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता श्रीरंग भंडारकर ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि सरकार का यह जीआर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करने वाला है। जवाब में सरकार की ओर से पैरवी कर रहे विशेष सरकारी वकील अनिल मार्डिकर ने कोर्ट में तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का यदि तत्काल पालन किया गया, तो प्रदेश में बड़ी संख्या में सरकारी विभाग खाली हो जाएंगे। प्रदेश में वर्क लोड बढ़ जाएगा। ऐेसे में राज्य सरकार ने जीआर जारी करके एक सिस्टम और प्रारूप के तहत उन्हें सेवा से बाहर करने का प्लान बनाया था। मामले में कोर्ट के आदेश पर मुख्य सचिव ने सहमति दी है कि वे हर हाल में यह कार्रवाई दिसंबर 2019 तक पूर्ण करेंगे। मामले में राष्ट्रीय हलबा जमात महामंडल की ओर से एड. शैलेश नारनवरे ने पक्ष रखा।  

 

Created On :   29 Sept 2018 2:13 PM IST

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