46 हजार करोड़ से बनने वाले नागपुर-मुंबई एक्सप्रेस हाईवे को मिली हरी झंडी

Nagpur-Mumbai Express Highway gets green signal by maharashtra government
46 हजार करोड़ से बनने वाले नागपुर-मुंबई एक्सप्रेस हाईवे को मिली हरी झंडी
46 हजार करोड़ से बनने वाले नागपुर-मुंबई एक्सप्रेस हाईवे को मिली हरी झंडी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। 46,000 करोड़ की लागत वाले मुंबई-नागपुर सुपर कम्युनिकेशन  एक्सप्रेस-वे को मंजूरी मिल गई है। नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ ने इसे पास कर दिया है। ये एक्सप्रेस-वे 3 इको-सेंसिटिव जोन से गुजरेगा। इससे जानवरों को परेशानी होगी और करीब 526 हेक्टेयर जंगल की जमीन पर भी असर पड़ेगा। 

हालांकि, रास्ते पर मेलघाट टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर की सलाह पर अंडरपास बनेंगे। मेलघाट टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन के 29.15 किमी रास्ते की कीमत का 2% डिपॉजिट करना होगा। साथ ही वहां से निकलने वाली गाड़ियों के हॉर्न बजाने पर प्रतिबंध होगा। नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ ने 46,000 करोड़ की लागत वाले मुंबई-नागपुर सुपर कम्युनिकेशन  एक्सप्रेस-वे को मंजूरी दे दी है। गौर करने वाली बात यह है कि यह एक्सप्रेस-वे तीन वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के बीच से निकलेगा।

ये होंगे प्रभावित
701 किमी 8 लेन का  एक्सप्रेस-वे तांसा सैंक्चुअरी, काटेपुर्णा सैंक्चुअरी और करंजा सोहोल सैंक्चुअरी से होकर गुजरेगा जो इको-सेंसिटिव जोन हैं। इस प्रोजेक्ट के लिए करीब 526 हेक्टेयर जंगल काट दिया जाएगा। इसमें से अकेले ठाणे जिले में 220 हेक्टेयर जंगल मौजूद है। बोर्ड ने यह भी कहा है कि जो भी इस प्रोजेक्ट को करेगा वह मेलघाट टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन के तहत आने वाले 29.15 किलोमीटर रास्ते की कीमत का 2 प्रतिशत डिपॉजिट करेगा। 

केवल दो अहम शर्तें
वहां से निकलने वाली गाड़ियां हॉर्न नहीं बजाएंगी 
जानवर को आराम से घूमने के लिए अंडरपास बनाए जाएंगे 

54 प्रजातियां हैं 
तांसा में तांसा और मोदक सागर झीलें हैं, जो मुंबई को पानी सप्लाइ करती हैं। यहां स्तनधारी जीवों की 54 प्रजातियां और पक्षियों की 200 से भी अधिक प्रजातियां हैं। करंजा-सोहोल सैंक्चुरी काले हिरण के लिए मशहूर है, जबकि काटेपुर्णा में चार सींग वाले हिरण पाए जाते हैं। महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने देहरादून के वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) के साथ वाइल्डलाइफ की सुरक्षा के लिए कदम सुझाने के लिए एमआेयू पर साइन किया है। कमेटी की बैठक में यह तय किया गया कि अंडरपास मेलघाट टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर की सुझाई जगहों पर बनाए जाएंगे। 

पर्यावरण को बहुत नुकसान होगा
राज्य व केंद्र दोनों में एक ही गवर्नमेंट हैं, और नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ की उनको सुनना नहीं है। उनको िसर्फ अपना काम दिखाना है। जैसे इंसान का ध्यान रख रहे हैं वैसे ही इन्हें जानवरों का ध्यान रखना चाहिए। वहीं सेंचुरी एक-दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं यदि ऐसा होता है तो कनेक्टिविटी बंद हो जाएगी। इससे जानवर उसी जगह में पैदा होंगे और वहीं खत्म हो जाएंगे। ऐसा करने से पर्यावरण को बहुत नुकसान होगा। (कुंदन हाते, मानद वन्य जीव रक्षक)

जानवरों को सिग्नल नहीं समझते
अंडरपास कामयाब नहीं है क्योंकि जानवरों को सिग्नल नहीं समझते हैं। उसकी जगह बायपास या फ्लाइओवर का ऑप्शन हो सकता है। ज्यादा से ज्यादा कोशिश करनी चाहिए कि रास्ते को बाजू से ले जाया जाएं। जो जानवर आज तक उसी जगह से रोड क्रास कर रहा है वो नहीं समझ पाएगा कि उसे कहां से जाना है। वहीं हॉर्न न बजाने की बात है तो ऐसा हो नहीं सकता है, वो लोग हॉर्न बजाएंगे ही। (कौस्तुभ चैटर्जी, ग्रीन विजिल संस्था संस्थापक)

लांग टर्म के लिहाज से सही निर्णय नहीं
लांग टर्म के लिहाज से सही निर्णय नहीं है क्योंिक इससे एनिमल्स मूवमेंट डिस्टर्ब हो जाएगी। वे एक सेंचुरी से दूसरी सेंचुरी नहीं जा पाएंगे।पर्यावरण और जानवरांे का गंभीर खतरा पहुंचेगा। साथ ही जानवरों के रोड एक्सीडेंट बढ़ंगे। कुछ ही वर्षों में जानवर समाप्ति की कगार पर पंहुच जाएंगे। (डॉ. बहार बाविस्कर, वाइल्ड सीईआर संस्थापक) 

अब ऐसा निर्णय हुआ है तो सही है 
नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ ने निर्णय लिया है तो सही ही होगा। बोर्ड में महत्वपूर्ण लोगों ने निर्णय लिया है तो सही ही होगा, वे पर्यावरण के चिंतक हैं, हम इसमें कोई कमेंट नहीं कर सकते हैं। (राधेश्याम मोपलवार, एमएसआरडीसी अधिकारी)

Created On :   29 Sep 2018 10:21 AM GMT

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