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रेड लाइट एरिया से पकड़ी लड़की की उम्र पर अटकी पुलिस, हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

डिजिटल डेस्क, नागपुर। शहर के रेड लाइट एरिया (गंगा-जमुना बस्ती ) में बेची गई एक लड़की की उम्र की सही जानकारी हाथ में न होने से पुलिस की कार्रवाई अटकी हुई है। मामले में बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने पुलिस को फटकार लगाई है। मानव तस्करी के जाल में फंसी किशोरी की उम्र की सही पड़ताल नहीं कर पाने वाली नागपुर पुलिस को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने कड़ी फटकार लगाई है। मूलत: राजस्थान के बूंदी की निवासी यह पीड़िता नागपुर के गंगा-जमुना क्षेत्र में बेची गई थी। वह बालिग है या नाबालिग, यह स्पष्ट नहीं होने से उसके पिता को उसकी कस्टडी नहीं दी जा रही। ऐसे में मंगलवार को हाईकोर्ट में जब यह मामला सुनवाई के लिए आया, तो कोर्ट ने इस प्रकरण में पुलिस की कार्यप्रणाली पर सख्त नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि पुलिस को जहां इस मामले की जांच करनी थी, नागपुर पुलिस ने केवल राजस्थान से पीड़िता के दस्तावेज लाकर हाथ झटक लिए। पुलिस ने जांच करने की जगह सिर्फ पोस्टमैन का काम किया है। पीड़िता की उम्र और उसकी पृष्ठभूमि की कोई छानबीन नहीं की। नाराज हाईकोर्ट ने नागपुर पुलिस को आदेश दिए हैं कि वे इस प्रकरण की जांच आईपीएस स्तर के अधिकारी से करवा कर गुरुवार तक हाईकोर्ट मंे अपना शपथपत्र प्रस्तुत करें।
यह है याचिका
हाईकोर्ट में फ्रीडम फर्म नामक सामाजिक संगठन ने यह याचिका दायर की है। याचिका मंे रेड लाइट क्षेत्र से बरामद पीड़िताओं के संरक्षण का मुद्दा उठाया गया है। याचिकाकर्ता के अनुसार पीड़िता नाबालिग है। उसके परिजन उसे बालिग साबित करके उसकी कस्टडी हासिल करने में लगे हैं। याचिकाकर्ता ने पीड़िता की कस्टडी उसके पिता को सौंपने का विरोध किया है। बता दें कि पीड़िता के पिता ने भी उसकी कस्टडी के लिए कोर्ट में याचिका दायर की है। निचली अदालत पहले ही पिता की विनती ठुकरा चुका है। अब इस प्रकरण में गुरुवार को सुनवाई होगी। मामले मंे याचिकाकर्ता की ओर से एड. निहाल सिंह राठौड ने पक्ष रखा।
ऐसी है पीड़िता की कहानी
पीड़िता को कई वर्षों पहले उसके परिजनों ने बेच दिया था। इसी मानव तस्करी के जाल में फंस कर वह नागपुर के गंगा-जमुना क्षेत्र में पहुंच गई। कुछ वर्षों पूर्व पुलिस और सामाजिक संस्था ने मिलकर यहां छापा मारा। छापे में अन्य लड़कियों के साथ पीड़िता भी पकड़ी गई। इसके बाद उसे अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया। पीड़िता की मां ने अदालत में उसे छोड़ने की अर्जी दी थी, जिसमें उसने कोर्ट को जन्म प्रमाण पत्र दिखाकर पीड़िता को 19 वर्ष की बालिग बताया। ऐसे में कोर्ट ने उसे छोड़ दिया। कुछ दिनों के बाद गंगा-जमुना क्षेत्र में दोबारा छापा मारा गया, तो पीड़िता फिर एक बार वहीं से पकड़ी गई। इस बार पीड़िता के पिता ने उसकी कस्टडी हासिल करने के लिए अर्जी दी और उसके 19 वर्ष की आयु के होने का जन्म प्रमाण पत्र जोड़ा, लेकिन इस बार चिकित्सा परीक्षण में चिकित्सकों ने रिपोर्ट दी कि पीड़िता किसी भी तरह 15-16 वर्ष से अधिक उम्र की नहीं हो सकती। ऐसे में अदालत ने यह मामला चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) को भेजा। अदालत से बच्ची की कस्टडी नहीं मिलने पर पिता ने हाईकोर्ट में उसे छुड़ाने के लिए याचिका दायर की।
Created On :   14 March 2018 2:47 PM IST