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औषधियों में भांग के उपयोग हेतु नए लाइसेंस नियम बने

डिजिटल डेस्क, भोपाल। राज्य सरकार ने ऐसी आयुर्वेदिक औषधियां जिनमें भांग का उपयोग होता है, के लिए नए लाइसेंस नियम बनाकर प्रभावशील किए हैं। प्रदेश में भांग का उपयोग कर आयुर्वेदिक औषधियां बनाने वाली फैक्ट्रियों को अब अब इन नए नियमों के तहत लाइसेंस लेना होगा। ज्ञातव्य है कि जीएसटी कानून लागू होने के बाद मेडिसिनल एण्ड टायलेट प्रिपरेशन एक्ट 1955 खत्म हो गया है। इसी एक्ट के तहत प्रदेश में भांग के उपयोग से बनाये जाने वाली औषधियों के लाइसेंस लेने होते थे। चूंकि अब यह एक्ट निरसित हो गया है और औषधी निर्माण करने वालों को निश्चित मात्रा में भांग रखने का अधिकार हो इसलिए अब वर्ष 1960 में बने भांग नियमों में संशोधन कर उन्हें लाइसेंस देने के नए प्रावधान किए गए हैं।
प्रदेश में भेषज रत्नावली, आयुर्वेद सार संग्रह, रसतंत्र सार संग्रह, भाव प्रकाश निघन्टु एवं स्वानुभूत योग औषधियों में भापंग का उपयोग होता है। नए प्रावधान के तहत अब प्रदेश के जिस जिले में भांग के उपयोग वाली औषधियां बनाने का कारखाना स्थित है या स्थापित किया जाना प्रस्तावित है, उस जिले के सहायक आबकारी आयुक्त या जिला आबकारी अधिकारी को लाइसेंस प्राप्त करने हेतु आवेदन करना होगा। सहायक आबकारी आयुक्त या जिला आबकारी अधिकारी दस हजार रूपए फीस लेकर और संचालक स्वास्थ्य सेवाएं या संचालक उद्योग से परामर्श कर यह लाइसेंस प्रदान करेगा। भांग के उपयोग वाली औषधी बनाने वाले कारखाने का सहायक आबकारी आयुक्त या जिला आबकारी अधिकारी के पक्ष में 25 हजार रूपए की बैंक गारंटी भी लाइसेंस हेतु देना होगा।
इनका कहना है
‘जीएसटी कानून आने के बाद मेडिसिनल एण्ड टायलेट प्रिपरेशन एक्ट 1955 निरसित हो गया है। भांग का उपयोग कर आयुर्वेदिक औषधियां बनाने वाले कारखानों को अपने परिसर में भांग रखने का अधिकार मिले इसके लिए भांग नियमों में संशोधन कर नवीन लाइसेंस प्रक्रिया स्थापित की गई है। इन कारखानों को नीलामी वाली भांग-घोटा दुकानों से ही भांग खरीदना होगा। प्रदेश में भांग की न ही खेती होती है और न ही उसका उत्पादन। इसे पंजाब, उत्तरखण्ड राज्यों से आयात कर ही मंगाना होता है।’
(वीके सक्सेना आबकारी उपायुक्त भोपाल)
Created On :   2 May 2018 3:54 PM IST