- Home
- /
- संदेह नहीं कभी सबूत नहीं बना सकता...
संदेह नहीं कभी सबूत नहीं बना सकता - हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। संदेह कितना भी मजबूत क्यों न हो वह सबूत का स्थान नहीं ले सकता है और संदेह के आधार पर आरोपी के दोषी होने का निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के इस कथन का उल्लेख करते हुए सबूतों के अभाव में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे एक आरोपी को बरी कर दिया।
निचली अदालत ने साल 2015 में आरोपी रमेश नायकवडे को इस मामले में दोषी ठहराने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जबकि दो आरोपियों को बरी कर दिया था। निचली अदालत के आदेश के खिलाफ नाशिक जेल में बंद 32 वर्षीय नायकवडे ने हाईकोर्ट में अपील की थी। अपील में निचली अदालत के आदेश को त्रुटि पूर्ण बताया गया था। जबकि अभियोजन पक्ष ने आदेश को सही बताया था। न्यायमूर्ति एस एस शिंदे व न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की खंडपीठ के सामने अपील पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने पाया कि पुलिस ने साल 2013 में डगु निकम नामक शख्स की हत्या के मामले में नायकवडे को गिरफ्तार किया था। क्योंकि वह निकम के साथ मोटरसाइकिल पर देखा गया था। बाद में निकम की लाश मिली थी।नायकवडे से पूछताछ के बाद पुलिस ने निकम के खून के धब्बे लगे कपड़े बरामद किए थे।
खंडपीठ ने कहा कि इस मामले से जुड़े चश्मदीद की गवाही विश्वसनीय नहीं दिख रही है। सरकार ने मामले से बरी हुए अन्य दो आरोपियों की रिहाई को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी है। ऐसे में सिर्फ आरोपी से मिली जानकारी के बाद मृतक के खून के धब्बे लगे कपड़े मिलने के आधार पर उसकी सजा को कायम नहीं रखा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक फैसले में कहा है कि संदेह भले ही कितना मजबूत क्यो न हो किंतु वह सबूत का स्थान लेने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। इसके आधार पर आरोपी को दोषी होने का निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। लिहाजा नायकवडे को दोषी ठहराने व सजा सुनाने के आदेश को रद्द किया जाता हैं और उसे बरी किया जाता है।
Created On :   5 Sept 2020 5:21 PM IST