विदर्भ में ओबीसी महामंडल प्रभारी के भरोसे

OBC Mahamandal in-charge in Vidarbha on the basis of
विदर्भ में ओबीसी महामंडल प्रभारी के भरोसे
नागपुर विदर्भ में ओबीसी महामंडल प्रभारी के भरोसे

डिजिटल डेस्क, नागपुर। सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (आेबीसी) के युवाआें के लिए महाराष्ट्र राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग वित्त व विकास महामंडल तो बनाया, लेकिन इस महामंडल का लाभ युवाआें को मिल नहीं रहा है। विदर्भ में महामंडल का काम प्रभारी के भरोसे चल रहा है। विदर्भ के 11 में से 10 जिलों में स्थायी अधिकारी ही नहीं हैं। उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस व केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी जिस नागपुर का प्रतिनिधित्व करते हैं, उस शहर में पिछले दो साल से स्थायी अधिकारी नहीं है। गोंदिया में पदस्थ अधिकारी को नागपुर व अमरावती की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। 

गोंदिया में ही स्थायी अधिकारी : सरकार ने आेबीसी समाज के युवाआें को रोजगार के प्रति प्रेरित करने के लिए महात्मा फुले आेबीसी वित्त व विकास महामंडल का गठन किया। 1998 में बने इस महामंडल का उद्देश्य आेबीसी समाज के युवाआें को वित्तीय मदद देकर समाज में खड़ा करना है। गोंदिया में जिला प्रबंधक चंद्रशेखर श्रीखंडे नागपुर व अमरावती का अतिरिक्त चार्ज देख रहे हैं। विदर्भ में केवल गोंदिया में ही स्थायी अधिकारी है। कोरोना के कारण महामंडल का काम दो साल ठप पड़ा था। पिछले साल जो केस मंजूर हुए, उस बेरोजगार को इस साल एक लाख का कर्ज दिया गया। इस साल अब तक केवल यही एक केस मंजूर हुआ है।  इस साल 2 केस मंजूरी के लिए नागपुर से मंुबई मुख्यालय भेजे गए हैं। कर्ज देने में महामंडल का ट्रेक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है।  महामंडल की मंजूरी पर बैंक से 10 लाख तक का कर्ज मिल सकता है। इस साल ऐसा एक भी केस मंजूर नहीं हुआ।

चार साल में भुगतान करने पर ब्याज नहीं : महामंडल एक लाख तक का कर्ज देता है। चार साल में कर्ज का भुगतान किया, तो ब्याज नहीं लगता। इसी तरह बैंक से जो 10 लाख तक का कर्ज दिया जाता है, उसका नियमित रूप से भुगतान किया, तो महामंडल अपनी तरफ से 12 फीसदी ब्याज का भुगतान करता है। यह ‘ब्याज परतावा’ योजना है। महामंडल की योजना तो अच्छी है, लेकिन कर्ज वितरण नहीं होने से युवाआें को लाभ नहीं मिल पा रहा है।   

पूरे राज्य का यही हाल है  : सूत्रों ने बताया कि, नागपुर समेत पूरे राज्य में महामंडल का बुराहाल है। राज्य के 70 फीसदी जिलों में स्थायी अधिकारी ही नहीं हैं। कोरोना के कारण दो साल कर्ज वितरण नहीं के बराबर हुआ। स्थायी अधिकारी नहीं होने से युवाआें को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है। स्थायी अधिकारी की नियुक्ति करना सरकार का अधिकार है। प्रशासन खुद होकर कुछ नहीं कर सकता। स्थायी अधिकारी के बगैर काम की गति बढ़ना मुश्किल है। अधिकारी बोलने को तैयार नहीं हैं। 


 

Created On :   21 Nov 2022 11:21 AM IST

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