वन्यजीवों की रक्षा करने वाले ही निकले ‘शिकारी’

Only those who protect wildlife turned out to be hunters
वन्यजीवों की रक्षा करने वाले ही निकले ‘शिकारी’
रक्षक बने भक्षक वन्यजीवों की रक्षा करने वाले ही निकले ‘शिकारी’

डिजिटल डेस्क, नागपुर। वन विभाग की ओर से जंगल व वन के संरक्षण के लिए ग्राम निवासियों के साथ मिलकर विभिन्न टीमें बनाई जाती हैं। इसके लिए वन विभाग की ओर से लाखों रुपए खर्च भी किए जाते हैं, लेकिन इन दिनों बाघ तस्करी में पकड़े जाने वाले आरोपियों में कई आरोपी वन संरक्षण के लिए बनाई समिति, टीम में शामिल होने का खुलासा हो रहा है। ऐसे में जंगल के रक्षक ही भक्षक बनते दिख रहे हैं।  

विभिन्न टीमें बनाई जाती हैं जंगल की रक्षा के लिए  
वन विभाग का दायरा बहुत बड़ा होता है। ऐसे में वन्यजीव जंगल की रक्षा के लिए कई ग्राम निवासियों की मदद ली जाती है, ताकि किसी भी आपातकालीन स्थिति में वन विभाग का कर्मचारी भले ही तुरंत न पहुंच सके, लेकिन उनका नेतृत्व करने के लिए ग्राम का ही कोई व्यक्ति वहां मौजूद रहे। इसके लिए वन विभाग की ओर से उन्हें प्रशिक्षण देकर विभिन्न योजना के माध्यम से मानधन भी दिया जाता है। इसमें फायर वॉचर, प्रोटेक्शन हट में रहने वाले वन मजदूर, पीआरटी टीम आदि शामिल हैं।

वनहक्क समिति के पदाधिकारी की करतूत
 बाघ के नाखून, दांत और खाल बेच रहे थे : अक्टूबर महीने में वन विभाग द्वारा तस्करों के खिलाफ कार्रवाई की गई, जिसमें बाघ के नाखून, दांत और खाल के तस्करी करने वाले 4 आरोपियों को पकड़ा गया था। इन आरोपियों में महादे‌व टेकाम (63) निवासी पांचगांव व गोकुडदास दिगांबर पवार (38) निवासी पांचगांव और 2 आरोपी थी। यह आरोपी वनहक्क समिति के पदाधिकारी थे। यह समिति वन विभाग से कुछ जमीन लेकर उसका संगोपन कर अपने गांव का विकास करती है। लेकिन पदाधिकारियों की ओर से संरक्षण के लिए ली गई जमीन पर ही बाघ को मारने से रक्षक ही भक्षक बनने की स्थिति सामने आई है। इनके द्वारा ढाई साल पहले चंद्रपुर के पांचगांव के जंगल में बाघ का शिकार कर उसे दफन कर दिया था। कुछ साल बाद बाघ के अंग निकाल उसकी तस्करी की फिराक में थे।

संयुक्त वन व्यवस्थापन समिति का अध्यक्ष निकला आरोपी
उमरेड बस स्टैंड पर हुई कार्रवाई में आरोपियों को बाघ के नाखून व दांत के साथ पकड़ा गया। आरोपियों में राजू कुडमेथे संयुक्त वन व्यवस्थापन समिति के अध्यक्ष हैं। इस समिति के लिए एक ग्राम से 13 सदस्यों की नियुक्ति की जाती है, जिन्हें वन विभाग आस-पास के जंगल का जिम्मा सौंपा जाता है। इनका काम होता है जंगल व वन्यजीवों के संरक्षण करना, जबकि आरोपी ताराचंद नेवारे खुद प्राइमरी रेस्क्यू टीम के सदस्य थे। यह टीम गांव में इसलिए बनाई जाती है, ताकि किसी भी आपातकालीन समय में इस टीम के सदस्य वन्यजीवों का संरक्षण कर सके।

यह मामला गंभीर है
हमारी ओर से कुछ योजनाओं के माध्यम से ही वन संरक्षण व जंगल संरक्षण के लिए ग्राम निवासियों को नियुक्त किया जाता है, लेकिन समितियां राज्य सरकार की ओर से ही बनाई जाती हैं। उपरोक्त मामले सामने आना गंभीर विषय है। इस संबंध में वरिष्ठों को जानकारी दी जाएगी, ताकि चुनाव प्रक्रिया में ज्यादा एहतियात बरती जा सके।   -डॉ. भारत सिंह हाडा, उपवनसंरक्षक (प्रादेशिक), वन विभाग नागपुर  

 

Created On :   26 Nov 2021 10:00 AM IST

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