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‘नवसंजीवनी’ साबित हो रही जैविक खेती, अब प्रदूषण भी घटाएगा CNG ट्रैक्टर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। केंचुए और गोबर के खाद का विस्तार हुआ है। जैविक खेती के कारण सूक्ष्म जीवशास्त्र, मृदा शास्त्र, जैव विविधता, विज्ञान और जीव रसायन की जानकारी किसानों को मिल रही है। यह बदलाव प्रगतिशील किसानों के लिए नव संजीवनी साबित हो रहा है। शनिवार को 10वें एग्रोविजन राष्ट्रीय कृषि प्रदर्शनी में आयोजित ‘जैविक खेती : तंत्रज्ञान, प्रमाणीकरण और यशोगाधा’ कार्यशाला में कृषि विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में युवा किसान उपस्थित थे। कृषि के बदलते स्वरूप पर विशेषज्ञ डॉ.एस.वी. बाविसकर, प्रशांत नाइकवाडी, विश्वासराव पाटील, राजेश बाहेती ने उपस्थित किसानों का मार्गदर्शन किया।
डॉ.एस.वी. बाविसकर ने कहा कि स्थानीक स्तर पर जैविक माल को अपेक्षाकृत मुआवजा मिले तो किसानों को लाभ मिलेगा। सरकारी योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती में सूक्ष्म जीवशास्त्र, मृदा शास्त्र, जैव विविधता, विज्ञान और जीव रसायन शास्त्र की जानकारी किसानों तक पहुंच रही है। समय के अनुसार किसानों ने अगर जैविक खेती की राह चुनी, तो उनकी प्रगति अासानी से होगी। जैविक खेती फायदेमंद है, ऐसे अनेक उदाहरण जगह-जगह के किसानों ने प्रस्तुत किए हैं। रासायनिक खाद के अतिरिक्त उपयोग से जमीन के लवण कम हुए हैं। कितना भी खाद डालने पर फसल पर उसका सकारात्मक परिणाम नजर नहीं आता। बीज उत्तम दर्ज के हो तो भी उन्हें उगने के लिए जमीन की जरूरत होती है, ऐसे में मिट्टी बीजों के अनुरूप बनाने के लिए जैविक खाद को प्राथमिकता दी जाती है।
अधिक उत्पादन लेने के लिए जैविक खेती का कोई विकल्प नहीं है। जैविक खेती के कारण जमीन का पानी पकड़ कर रखने की क्षमता बढ़ती है। यांत्रिकीकरण के काल में हर साल पशुधन कम हो रहा है। गांव-गांव में अब गाय, बैलों की संख्या से ज्यादा मोटरसाइकिल, कार, ट्रैक्टर की संख्या बढ़ गई है। किसान सोचने लगे हैं कि गाय, बैल संभालने से ज्यादा आसान यंत्रों से कृषि करना अधिक सस्ता है। ऐसे में गोबर की खाद का उपयोग कम हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार जमीन पर झड़े हुए पत्तों का उपयोग जैविक खेती के लिए किया जा सकता है, इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
प्रदूषण घटाएगा CNG से चलने वाला ट्रैक्टर
परंपरागत खेती की तुलना में आधुनिक तरीके अपनाकर किसान न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि इसकी जानकारी दूसरों को देकर उनका आर्थिक स्तर उठाने के लिए दिशा भी दे सकते हैं। नागपुर के रेशमबाग मैदान में आयोेजित एग्रोविजन प्रदर्शनी में देश भर से आए वैज्ञानिक और नवोन्वेषी विशेषज्ञ राज्य के किसानों को विपरीत हालात में भी खेती के उन्नत तरीकों की जानकारी दे रहे हैं। यहां CNG से चलने वाला ट्रैक्टर देखने को मिल रहा है तो बंगलुरु के वातावरण में उगने वाले चंदन को महाराष्ट्र में उगाने का तरीका भी बताया जा रहा है। कम पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्र में किस फसल को लगाकर ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है, इसकी जानकारी लेने के लिए राज्य भर के किसान तो यहां पहुंच ही रहे हैं, किसानों द्वारा तैयार गृहोपयोगी और सजावटी सामान खरीदने के लिए भी खासी भीड़ जुट रही है।
वडोदरा गुजरात के लय पांड्या ने ट्रैक्टर को बायो CNG से चलाने की तकनीक विकसित की है। अपने आविष्कार को उन्होंने एग्रोविजन प्रदर्शनी में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 16 वर्ष पुराने ट्रैक्टर में किट लगाकर प्रदर्शित किया है। खास बात यह है कि इसमें ईंधन के रूप में बायो CNG पराली और अन्य एग्रो वेस्ट का इस्तेमाल किया जाएगा। लय पांड्या ने बताया कि इस किट को तैयार करने में 1.5 लाख रुपए का खर्च आता है। लेकिन इससे प्रदूषणकारी तत्वों का उत्सर्जन कम तो होता ही है, साथ ही डीजल के मुकाबले खर्च भी आधा हो जाता है। उन्होंने बताया कि ईंधन बनाने के लिए पराली को बारीक काटकर पानी में डाला जाता है।
इस पराली को निचोड़ने के बाद डाइजेस्टर में डाला जाता है। इससे बायोगैस बनती है। जिसमें से कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड को हटा दिया जाता है, जिसके बाद केवल मीथेन गैस बचती है। इसी से वाहन चलाया जाता है। इसके वेस्ट को खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पंजाब यूनिवर्सिटी के एक शोध ने इसकी पुष्टि की है। शनिवार को एग्रोिवजन आए सड़क, जहाजरानी व गंगा संरक्षण मंत्री नितीन गडकरी ने भी इस प्रोजेक्ट में विशेष रुचि दिखाई है। गडकरी ने कहा कि इस तकनीक का इस्तेमाल करके विदर्भ के किसानों के ट्रैक्टर को डीजलमुक्त बनाया जाएगा।
Created On :   25 Nov 2018 7:03 PM IST