दिलीप कुमार को सुनने के लिए ही लोग कार्यक्रमों में आते थे

People used to come to programs only to listen to Dilip Kumar.
दिलीप कुमार को सुनने के लिए ही लोग कार्यक्रमों में आते थे
दिलीप कुमार को सुनने के लिए ही लोग कार्यक्रमों में आते थे

डिजिटल डेस्क, नागपुर। उर्दू, अंगरेजी, हिन्दी जैसी अनेक भाषाओं में धाराप्रवाह बोलने में माहिर दिलीप कुमार आवश्यकतानुसार किसी शायर के लिखे शेर या किसी कवि की लिखी कविता की पंक्ति को भी अपने भाषण का हिस्सा बना लिया करते थे। नागपुर से उनका काफी लगाव था। जिसका मुख्य कारण थे उनके परम प्रिय मित्र, एन. के. पी. सालवे। 

नागपुर में शाम को आयोजित एक कार्यक्रम में लोगों की भारी भीड़ दिलीप कुमार को देखने और सुनने के लिए उपस्थित थी। उस कार्यक्रम में लोगों की आतुरता को देखते हुए मैंने दिलीप कुमार से दो शब्द कहने का अनुरोध किया। दिलीप कुमार ने पंडित भीमसेन जोशी, पहले भजन की गायिका और वादकों की प्रशंसा की। फिर साईं बाबा के प्रति अपना आदर व्यक्त किया। उसके बाद वे बोले, “अब पहले आप सब, शास्त्रीय संगीत के महान कलाकार पंडित भीमसेन जोशी साहब को सुनिए। मैं भी यहीं आपके सामने बैठकर उनको सुनूंगा। उसके बाद आपसे लंबी बातचीत करूंगा”।

यह जानकर सारे लोग पंडित भीमसेन जोशी के गायन को सुनने के लिए बैठे रहे। दो घंटे के भक्ति संगीत गायन के बाद, दिलीप कुमार ने एक घंटे तक हिन्दी, उर्दू में सधे हुए शब्दों में अपना भाषण देकर लोगों को खुश कर दिया। तब यह समझ में आया कि अगर दिलीप कुमार शुरू में ही अपना भाषण दे देते, तो शायद अनेक लोग उसके बाद ही कार्यक्रम से चले गए होते। लोग अंत तक बैठे रहें, इसी उद्देश्य से शायद दिलीप कुमार ने अंत में भाषण देने का निर्णय लिया होगा। एक बार मुंबई में एक समारोह में वे फिल्म निर्माता, बाबू भाई पटेल को याद करके बहुत भावुक हो गए। बताने लगे कि शुरू के दिनों में वे बांद्रा में पब्लिक पार्क की बैंच पर सोया करते थे। सामने के बंगले में ही बाबू भाई पटेल रहते थे। एक दिन उन्होंने उस समय के यूसुफ को बुलाया और उनके बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि वे काम की तलाश में हैं। फिल्मों में कुछ काम करना चाहते हैं । बाबू भाई पटेल उस समय की मशहूर हस्तियों में से एक थे। उन्होंने ही यूसुफ खां पठान को देविका रानी के पास भेजा। देविका रानी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और दिलीप कुमार के नाम से फिल्म “ज्वार भाटा” में प्रस्तुत कर दिया। 

सितार सीखने रुकवा दी थी शूटिंग : उनकी यह भी विशेषता थी कि वे छोटी-छोटी बात पर बहुत ध्यान देते थे । एक छोटा सा उदाहरण-- फिल्म “कोहिनूर” के गाने “मधुबन में राधिका” की शूटिंग के दौरान जब उन्हें पता चला कि फिल्म में उन्हें सितार बजाते हुए दिखाया जाने वाला है तो उन्होंने शूटिंग रुकवा दी। लगभग एक महीने तक उस गीत में सितार बजाने वाले सितार वादक उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खां से सितार बजाने की शिक्षा लेते रहे।
 

Created On :   8 July 2021 2:58 PM IST

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