विधान परिषद उप सभापति चुनाव को लेकर दायर याचिका खारिज

Petition filed for election to the Deputy Chairman of the Legislative Council dismissed
विधान परिषद उप सभापति चुनाव को लेकर दायर याचिका खारिज
विधान परिषद उप सभापति चुनाव को लेकर दायर याचिका खारिज

डिजिटल डेस्क, मुंबई। विधान परिषद की उपसभापति नीलम गोर्हे के चुनाव में कुछ भी अवैध नजर नहीं आ रहा है। यह बात कहते हुए बांबे हाईकोर्ट ने गोर्हे के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका को गुरुवार को खारिज कर दिया है। यह याचिका भारतीय जनता पार्टी के नेता व विधानपरिषद सदस्य गोपीचंद पडालकर ने दायर की थी। न्यायमूर्ति नीतिन जामदार व न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने 31 पन्नों के अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि में संविधान के तहत विधानमंडल की कार्यवाही को लेकर अदालत के हस्तक्षेप का दायरा काफी सीमित है। क्योंकि विधानमंडल व न्यायपालिका दोनों स्वायत्त संस्थान हैं। ऐसे में यदि व्यापक रुप से कुछ अवैध होता है तो ही न्यायपालिका राज्य विधानमंडल के निर्णय की न्यायिक समीक्षा कर सकती है। लेकिन इस मामले में हमे कुछ भी अवैध नजर नहीं आ रहा है।  

खंडपीठ ने कहा कि विधानपरिषद के सदस्यों की स्वास्थ्य व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जो कोरोना संक्रमित नहीं थे उन्हें ही प्रवेश देने के संबंध में एक आम आदेश जारी किया गया था। यह आदेश कोराना के चलते पैदा हुई असमान्य परिस्थितियों के चलते जारी किया गया था।  याचिका में इस आदेश को चुनौती नहीं दी गई है। याचिका में गोर्हे के चुनाव को अवैध व मनमानीपूर्ण बताया गया था और उन्हें उपसभापति घोषित करनेवाली अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी।  इससे पहले राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि बहुमत के साथ विधानपरिषद के उपसभापति का चयन किया गया है। उन्होंने कहा कि चूंकि उपसभापति का चयन किया जाता है चुनाव नहीं होता है। इसलिए इस मामले में कोई अपने मताधिकार व चुनाव लड़ने के अधिकार होने का दावा नहीं कर सकता है।

उपसभापति पद के लिए कोई सदस्य स्वयं अपना नाम आगे नहीं कर सकता है। इसके लिए दूसरे सदस्य को प्रस्ताव देना पड़ता है। ऐसे में याचिकाकर्ता भले ही कोराना संक्रमित थे लेकिन उनके पार्टी के लोग याचिकाकर्ता का नाम दे सकते थे। विधानमंडल के पास नियमों के तहत अपना कामकाज करने का अधिकार है। इन्ही अधिकारों के तहत अप्रैल 2020 से रिक्त उपसभापति पद के लिए गोर्हे का चयन हुआ है। संविधान में  इस पद को शीघ्रता से भरने का प्रावधान किया गया है। उपसभापति का चयन नियमों के तहत किया गया है। जहां तक बात विधापरिषद में प्रवेश को लेकर जारी आदेश की है तो यह विधानपरिषद के सदस्यों के स्वास्थ्य व सुरक्षा को ध्यान में रखकर जारी किया गया था।  राज्य के महाधिवक्ता की इन दलीलों से सहमत खंडपीठ ने उपसभापति के चुनाव को चुनौती देनेवाली याचिका को खारिज कर दिया। 

Created On :   7 Jan 2021 7:32 PM IST

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