बैन होने के बावजूद भी बाजार में धड़ल्ले से बिक रही है प्लास्टिक

Plastic begs are banned, But it openly soled in market
बैन होने के बावजूद भी बाजार में धड़ल्ले से बिक रही है प्लास्टिक
बैन होने के बावजूद भी बाजार में धड़ल्ले से बिक रही है प्लास्टिक

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बैन होने के बावजूद बाजार में प्लास्टिक का उपयोग धड़ल्ले से जारी है, लेकिन प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2015 में अपनी सर्वे रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिवर्ष राज्य में 12 लाख टन प्लास्टिक उत्पाद का इस्तेमाल होता है। इसमें दस हजार 950 टन प्लास्टिक कचरा तैयार होता है। प्लास्टिक बोतल को नष्ट हाेने में 450 साल और प्लास्टिक कैरीबैग को नष्ट होने में 200 से एक हजार साल की कालावधि लगती है। इस लिहाज से तेजी से बढ़ता प्लास्टिक कचरा पर्यावरण को खतरा पैदा कर रहा है। इसके अलावा दूषित सेनिटरी नैपकीन, डायपर भी प्लास्टिक के साथ खतरनाक साबित हो रहे हैं।

राज्य सरकार ने 23 मार्च 2018 को राज्य भर में 50 माइक्राेन से कम मोटी प्लास्टिक और प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं पर पाबंदी लगाई है। इस पाबंदी के तहत राज्य भर में प्लास्टिक उत्पादन, इस्तेमाल, बिक्री, संकलन एवं परिवहन करने पर कार्रवाई का प्रावधान है। महाराष्ट्र नॉन बायोडिग्रेडेबल गार्बेज कंट्रोल एक्ट 2006 की धारा 4 (1) और (2) के तहत पूरी तरह से बंदी घोषित की गई है। हालांकि सरकार ने पाबंदी को चरणबद्ध रूप से लागू करने के लिए तीन माह की शिथिलता दी थी, लेकिन इस समयावधि के समाप्त होने के बाद कड़ी कार्रवाई की बात कही थी। हालांकि कड़ी कार्रवाई को अब तक शुरू नहीं किया जा सका है। वहीं दूसरी ओर बाजार में प्लास्टिक पाबंदी का विकल्प भी आ चुका है।

इस विकल्प में अब धड़ल्ले से 50 माइक्रोन की प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस बैग को केवल पैकेज्ड खाद्य सामग्री के लिए प्रयोग करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन छोटे दुकानदार, फल सब्जी विक्रेता और खोमचे वाले भी प्लास्टिक में सामग्री को वितरित कर रहे हैं। इन प्लास्टिक को खाद्य सामग्री की तरी, सांभर, पानीपुरी के पानी समेत अन्य तरल पदार्थों को देने के लिए हो रहा है। इतना ही नहीं कई बार हरी सब्जी, फलों को भी इन्हीं प्लास्टिक बैग में डालकर दिया जाता है। कुल मिलाकर प्लास्टिक पर पाबंदी केवल दिखावा बनकर रह गई है।

पुराने प्रतिबंध को बनाया आधार
प्लास्टिक से होने वाले दुष्परिणामों को रोकने के लिए राज्य सरकार ने 12 साल पहले भी पांबदी घोषित की थी। राज्य के पर्यावरण मंत्रालय ने प्लास्टिक कैरीबैग निर्माण एवं उपयोग नियमावली 2006 की घोषणा की थी। इस नियमावली के तहत 50 माइक्रोन से कम वाली कैरीबैग पर पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया था। तर्क दिया गया था कि 50 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक से सीवेज लाइनों में बाधा होती है। इसके साथ ही प्लास्टिक खाने से पशुओं और तत्काल विघटन नहीं होने से पर्यावरण को खतरा होता है। इस पांबदी के बाद 50 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक बाजार से निकल गई थी। हालांकि प्लास्टिक निर्माताओं ने 51 माइक्रोन का कैरीबैग बनाना शुरू भी कर दिया था, लेकिन इस साल मार्च में प्लास्टिक के निर्माण, इस्तेमाल और संकलन पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई। बावजूद इसके पुराने कानून का हवाला देकर छोटे दुकानदारों को प्रतिबंधित प्लास्टिक बेचा जा रहा है। हैरानी यह है कि नई पाबंदी में कार्रवाई का अधिकार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, मनपा के अलावा राजस्व विभाग और पुलिस को भी दिया गया है, लेकिन इनमें से कोई भी विभाग कार्रवाई करने की पहल नहीं कर रहा है।

बायबैक का भी पता नहीं
राज्य सरकार ने मार्च में प्लास्टिक पाबंदी की जद में बोतलबंद पानी को भी लिया था। हालांकि पानी की बोतलों के प्रसार को देखते हुए संशोधन किया गया। संशोधन के तहत 500 मिली की बोतलों को पूरी तरह से पाबंद किया गया है, जबकि 1 लीटर समेत अन्य बोतलों पर बायबैक डिपाजिटरी मैकेनिज्म नियम लागू किया गया है। इस नियम के तहत निर्माता कंपनी को बोतल पर 1 रुपए का अतिरिक्त शुल्क दर्ज करना होगा। इस शुल्क को दुकानदार अपने ग्राहक से तय कीमत के साथ वसूल करेगा। पानी के इस्तेमाल के बाद खाली बोतल को वापस करने पर ग्राहक को 1 रुपए की रकम वापस मिल जाएगी। हालांकि इस नियमावली के बाद भी इसका असर दिखाई नहीं दे रहा है। पानी की बोतलों पर निर्देश अब भी नहीं आ रहे हैं, वहीं छोटी बोतलों काे अब दुकानदार तरल सामग्री देने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

सीलबंद सामग्री के लिए प्रयोग पर छूट
राज्य सरकार ने बड़े मॉल्स को पैकेज्ड फूड आईटम्स को रखने के लिए प्लास्टिक पर छूट दे रखी है। इन खाद्य सामग्री की निर्माण प्रक्रिया में प्लास्टिक की अनिवार्यता को देखते हुए छूट दी गई है। इसी आधार पर किराना सामग्री वालों ने भी रियायत मांगी थी। किराना सामग्री, मसाले एवं कच्चे अनाज समेत अन्य खराब होने वाली सामग्री के लिए 51 माइक्रोन की प्लास्टिक के इस्तेमाल को भी छूट दी गई। किराना दुकानदार एसोसिएशन का तर्क था कि इस प्लास्टिक को कई बार प्रयोग किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर सीलबंद खाद्य वस्तुओं के प्लास्टिक कंटेनर और ट्रे पर पाबंदी के राज्य सरकार के निर्णय को हाइकोर्ट में चुनौती दी गई।

याचिका में बताया गया कि होटल में उपयोग होने वाले प्लास्टिक कंटेनर और ट्रे लगभग 100 माइक्राेन के होते हैं। इन कंटेनरों का कई बार बार उपयोग किया जा सकता है, जबकि 50 माइक्राेन से पतली प्लास्टिक का केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता है। सरकार की पाबंदी से होटल उद्योगों पर विपरीत परिणाम हो रहा है। याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश भूषण धर्माधिकारी और न्यायाधीश जका हक ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। नोटिस में होटल व्यवसायियों पर अगले आदेश तक बलपूर्वक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया गया है।
 

Created On :   18 Sep 2018 9:44 AM GMT

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