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नाटककार डॉ. सुरेश शुक्ल 'चन्द्र' का निधन

डिजिटल डेस्क, भोपाल। रौबदार आवाज ही उनकी पहचान थी। किरदार में डूब जाना, उनकी कला थी और हर अभिनय को बखूबी निभाना उन्हें खूब आता था। रंगमंच की दुनिया के ऐसे फनकार डॉ. सुरेश शुक्ल "चंद्र" हमारे बीच नहीं रहे। साल 1936 में उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे डॉ. चन्द्र ने 21 नाटक, 5 एकांकी संग्रह, 2 काव्य संग्रह, 4 शोध एवं समीक्षा ग्रंथ, 3 बाल नाट्य संग्रह, एक उपन्यास और एक आत्म कथा की रचना की थी। वह बिलासपुर कालेज में हिंदी के प्राध्यापक थे। बता दें कि छत्तीसगढ़ से सेवानिवृत्ति के बाद मध्य प्रदेश उनकी कर्मभूमि रही। हिंदी के प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्ति के बाद वह भोपाल आ गये थे।
रंगमंच की दुनिया के लिए बड़ी क्षति
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के अनुरोध पर उन्होंने "महाकवि भूषण" और "तात्याटोपे" दो बडे़ नाटक लिखे थे। जिसके पन्ना, छतरपुर, दमोह और जबलपर में अनेक शो हुए थे। डॉ चन्द्र आधुनिक भाव बोध, राष्ट्रीय चेतना और मूल्यधर्मी नैतिकता के संश्लिष्ट नाटककार थे। निजी जीवन में शुचिता, यश निरपेक्षता और निष्काम भाव से साहित्य साधना उनके व्यक्तित्व की पहचान रही। छत्तीसगढ़ में उनके नाटकों के मंचन की धूम थी।
देश के 40 से अधिक शहरों में उनके नाटकों का मंचन हुआ। कई विश्वविद्यालयों ने उनके नाटक पाठ्यक्रम में शामिल किए गए हैं। उनके ऊपर 10 से अधिक समीक्षात्मक कृतियां सृजित की गई हैं। उनके मार्गदर्शन में 40 से अधिक शोधार्थियों ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। नाटक के प्रति समर्पित डॉ चन्द्र ने हिन्दी भवन के अंतर्गत रंगकर्मियों के प्रोत्साहन के लिए " डॉ सुरेश शुक्ल चंद्र नाट्य सम्मान " स्थापित किया है।
इन संस्थाओं ने दी श्रद्धांजलि
आपको बता दें कि डॉ चन्द्र को उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, दिल्ली और मध्य प्रदेश शासन द्वारा विभिन्न सम्मानों से पुरस्कृत किया गया था। उनके निधन से रंगकर्मियों में गहरा शोक है। स्वामी प्रणवानंद सरस्वती भारतीय साहित्य न्यास, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, संस्कार भारती, मध्यप्रदेश लेखक संघ, कला मंदिर, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, तुलसी साहित्य अकादमी आदि संस्थाओं की ओर से दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि दी गई।
Created On :   16 Dec 2021 7:03 PM IST