ओबीसी आरक्षण पर फिर सियासी तकरार

Political wrangling again over OBC reservation from MP Panchayat elections
ओबीसी आरक्षण पर फिर सियासी तकरार
मप्र पंचायत चुनाव ओबीसी आरक्षण पर फिर सियासी तकरार

डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्य प्रदेश में हो रहे पंचायत चुनाव के बीच ओबीसी आरक्षण को लेकर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के आए फैसले ने नई सियासी तकरार को जन्म दे दिया है। भाजपा और कांग्रेस पार्टी जहां खुद को अन्य पिछड़ा वर्ग का समर्थक बता रही है, तो दोनों पार्टियों के नेता एक-दूसरे को इस वर्ग का विरोधी बताने में नहीं हिचक रहे।

राज्य में पंचायतों के तीन चरणों में चुनाव होने वाले हैं। पहले और दूसरे चरण के चुनाव के लिए नामांकन भी भरे जा रहे हैं, इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण में रोटेशन सहित अन्य याचिकाओं की सुनवाई करते हुए ओबीसी आरक्षण को रद्द करने के राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए थे।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित स्थानों पर चुनाव प्रक्रिया स्थगित कर दी गई है और अन्य स्थानों पर चुनाव यथावत और तय समय पर होने की बात कही गई है।

अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित स्थानों पर निर्वाचन प्रक्रिया स्थगित किए जाने के बाद भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी तकरार शुरू हो गई है। दोनों ही एक दूसरे को कटघरे में खड़ा करने में लगे हैं तो वही एक दूसरे को ओबीसी विरोधी ठहरा रहे है।

राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त बसंत प्रताप सिंह के मुताबिक, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के पालन में मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा त्रि-स्तरीय पंचायतों के आम निर्वाचन वर्ष 2021-22 के लिए जारी कार्यक्रम के अंतर्गत अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित पंच, सरपंच, जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत सदस्य के पदों की निर्वाचन प्रक्रिया स्थगित कर दी गई है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार अन्य पदों के लिए निर्वाचन की प्रक्रिया राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार जारी रहेगी।

उल्लेखनीय है कि प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जिला पंचायत सदस्य के 155, जनपद पंचायत सदस्य के 1273, सरपंच के 4058 और पंच के 64 हजार 353 पद आरक्षित हैं। राज्य में 27 प्रतिषत पद ओबीसी के लिए आरक्षित किए गए थे। इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी भी की थी।

भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने कहा है कि पंचायत चुनाव को लेकर कांग्रेस के नेताओं की नकारात्मक भूमिका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी योजनाबद्ध तरीके से पिछड़ा वर्ग समाज के विरुद्ध षड्यंत्र कर रही है।

पहले नौकरियों में आरक्षण को लेकर और अब पंचायत चुनाव के बहाने आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक पटल पर पिछड़ा वर्ग को नुकसान पहुंचाने का काम कांग्रेस ने किया है।

शर्मा ने कहा कि हाल ही में पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने जो व्यवधान डालने का प्रयास किया है, उसके दो स्पष्ट कारण हैं। पहला, यह कि कांग्रेस के नेता यह समझ गए थे कि उनके कार्यकर्ता जहां-जहां चुनाव लड़ेंगे, वहां उनकी पराजय सुनिश्चित है। दूसरा यह कि पिछड़े वर्ग को राजनीति की मुख्य धारा से हर कीमत पर अलग करने की योजना को सफल बनाना है।

स्पष्ट रूप से कांग्रेस की अडंगेबाजी का सर्वाधिक नुकसान पिछड़ा वर्ग को हुआ है। वर्षों से अनेक राज्यों में जिस पिछड़ा वर्ग को राजनीतिक प्रतिनिधित्व उपलब्ध था, उसमें कांग्रेस के कृत्य के कारण एक नए प्रकार का व्यवधान खड़ा हुआ है।

वहीं दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने भाजपा को आरक्षण विरोधी बताया है। उनका कहना है भाजपा एक बार फिर आरक्षण विरोधी चेहरा जनता के सामने बेनकाब हो गया है।

भाजपा हो अथवा आर एस एस, हमेशा ही दलित, आदिवासी और ओबीसी विरोधी रही है, चाहे वह मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की बात हो अथवा पंचायत चुनाव में आरक्षण केा समाप्त करने का मामला हो।

इसी तरह कांग्रेस के एआईसीसी सदस्य हरपाल ठाकुर ने पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण केा खत्म किए जाने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दोनों पिछड़ा वर्ग से आते है।

ओबीसी का आरक्षण वर्तमान की प्रदेश सरकार की लापरवाही से निरस्त हुआ है। उम्मीद है कि इस आरक्षण केा पुन: संवैधानिक रुप से लागू किए जाने के प्रयास होंगे।

 

(आईएएनएस)

Created On :   19 Dec 2021 9:00 AM GMT

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