अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य, देनी ही होगी विस्तृत रिपोर्ट-हाईकोर्ट

अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य, देनी ही होगी विस्तृत रिपोर्ट-हाईकोर्ट
अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य, देनी ही होगी विस्तृत रिपोर्ट-हाईकोर्ट
अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य, देनी ही होगी विस्तृत रिपोर्ट-हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  प्रदेश में 9 सितंबर 2017 को लागू हुए महाराष्ट्र शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत अस्पतालों और डिस्पेंसरी को उनका विस्तृत लेखा-जोखा स्थानीय प्रशासन को देने प्रावधान किए गए हैं। इसे नागपुर के धंतोली निवासी चिकित्सक डॉ. प्रदीप अरोरा ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में चुनौती दी थी। प्रावधानों के अनुसार, यदि किसी अस्पताल, डिस्पेंसरी, क्लीनिक, पॉलिक्लीनिक या मेटर्नरी होम में 10 या 10 से अधिक कर्मचारी काम करें, तो उनके लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है। इसी तरह, यदि 10 से कम कर्मचारी हों तो भी  याचिकाकर्ता की दलील थी कि इससे भारतीय संविधान के आर्टिकल 19(1)(जी) का उल्लंघन हो रहा है, जिसके तहत नागरिकों को राज्य के अधिकार क्षेत्र के बाहर का व्यवसाय चुनने का अधिकार है। लेकिन हाईकोर्ट में उनकी ये दलीलें काम नहीं आई और सभी पक्षों को सुनकर कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। 

राज्य सरकार ने कहा-अस्पतालों का हो गया है व्यवसायीकरण
दरअसल, याचिका केे जवाब में राज्य सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया कि मौजूदा वक्त में प्रदेश में मेडिकल टुरिज्म की धारणा जोर पकड़ रही है, जिसके कारण मेडिकल क्षेत्र में व्यावसायिक पहलू भी उभर कर आया है। मल्टीस्पेशालिटी हॉस्पिटल, इंटर स्टेट, इंटर डिस्ट्रिक्ट अस्पतालों की श्रृंखलाएं बढ़ रही हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में विशाल मनुष्यबल कार्य कर रहा है। ऐसे में मेडिकल क्षेत्र से जुड़े कर्मचारियों के शोषण को रोकने के लिए उनके हित में इस प्रकार का अधिनियम जरूरी है और संविधान में दिया गया व्यवसाय का अधिकार किसी भी राज्य की सरकार को जनता के हित में जरूरी नियम कानून बनाने से प्रतिबंधित नहीं करता है। हाईकोर्ट ने अपने निरीक्षण मंे पाया कि सब सेक्शन 3 आॅफ सेक्शन 1, इस नए अधिनियम की ‘रीढ़’ है। इसी के कारण निजी व्यवसाय और एक संगठित व्यवसाय को विभाजित किया गया है। नए अधिनियम के कारण न केवल कार्यक्षेत्र से जुड़े नियम सुनिश्चित करता है, बल्कि कर्मियों को सामाजिक लाभ भी प्रदान करता है। मामले से जुड़े ऐसे ही सभी पहलुओं को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। मामले में महाराष्ट्र के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी को प्रतिवादी बनाया गया था। उन्हें सुनवाई में उपस्थित भी होना पड़ा था। वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील मनोहर को न्यायालय मित्र नियुक्त किया था। उन्हें एड.निखिल गायकवाड ने सहयोग किया। 

ले रहे हैं लीगल ओपिनियन
नए अधिनियम में  एसटेब्लिशमेंट शब्द का उल्लेख है। सरकार ओपीडी को भी एसटेब्लिशमंेट की श्रेणी में डाल रही है। ऐसा तो फिर सीए और वकीलों के मामले में भी होना चाहिए। इस अधिनियम से फायदा होगा या नुकसान इसका हम अध्ययन कर रहे हैं। हमारी लीगल कमेटी भी इस पर लगातार मंथन कर रही है। कोर्ट के दिवाली अवकाश समाप्त होने के बाद हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे।  - डॉ. आशीष दिसावल, अध्यक्ष इंडियन मेडिकल एसोसिएशन

Created On :   12 Nov 2018 10:43 AM IST

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