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रक्तदान का शतक लगा चुके हैं रामचन्द्र, मुंबई तक गए लोगों की जान बचाने

डिजिटल डेस्क, सतना। इस वैज्ञानिक युग में भी बहुत सारे लोग रक्तदान के नाम पर घबराने लगते हैं। उनके मन में यह भ्रांति बैठी हुई है कि रक्तदान से शरीर कमजोर हो जाता है। ऐसे लोगों के लिए रामचन्द्र हासवानी एक उदाहरण की तरह हैं। 64 वर्षीय रामचन्द्र अब तक 103 बार ब्लड डोनेट कर चुके हैं। उन्होंने आखिरी बार बीते रविवार को एक पीडि़त की जान बचाने के लिए अपना खून दिया। 25 साल की उम्र से उन्होंने यह नेक कार्य प्रारंभ किया और अभी तक सिलसिला लगातार चल रहा है। सिन्धु विकास समिति से जुड़े श्री हासवानी को 40 साल हो गए और वह कभी भी हिचकिचाए नहीं। रेयर ब्लड गु्रप ओ-निगेटिव वाले किसी भी व्यक्ति की जीवन रक्षा के लिए जब भी जरूरत पड़ती है तो वह बिना झिझक पहुंच जाते हैं। एक बात और की वह कदापि नहीं चाहते कि उनके इस कार्य को प्रचारित किया जाए।
तब समझ में आई अहमियत
रामचन्द्र हासवानी बताते हैं कि जब उनकी उम्र 25 साल के आसपास थी, तब उनका भाई बीमार पड़ गया था और उसे खून की जरूरत आ पड़ी थी। उस समय हमें यह पता चला कि आखिर मौत से संघर्ष करने वाले किसी भी पीडि़त व्यक्ति के लिए खून की अहमियत कितनी होती है। जब आवश्यकता होने पर रक्त नहीं मिलता तो जिंदगी साथ छोड़ देती है। इसी घटना से प्रेरित होकर हमने आजीवन रक्तदान का संकल्प लिया, जो आज तक अनवरत चल रहा है।
डब्ल्यूएचओ का पैमाना
रक्तदान के संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन का पैमाना है कि कोई भी निरोगी और स्वस्थ्य काया वाला व्यक्ति 65 वर्ष तक रक्तदान कर सकता है। मानक यह भी है कि हर 3 महीने में एक बार रक्तदान किया जा सकता है, लेकिन रामचन्द्र हासवानी उन लोगों में हैं जिन्होंने कई बार जरूरत सामने आ जाने पर अपना रक्तदान 3 माह पूरे होने से पहले ही किया। इसके बावजूद उन्हें किसी तरह की समस्या नहीं हुई। पिता से प्रेरित होकर उनके युवा बेटे जयन्त हासवानी भी अभी से उनकी राह पर चल पड़े हैं। उन्होंने भी कई बार रक्तदान किया।
Created On :   3 Oct 2018 2:15 PM IST