- Home
- /
- क्या इस बार स्वच्छता के मामले में...
क्या इस बार स्वच्छता के मामले में इंदौर को पछाड़ पाएगा भोपाल ?

डिजिटल डेस्क, भोपाल। साल 2017, मौका था स्वच्छता के मामले में अपने आप को दूसरों से बेहतर दिखाने का। इसी स्वच्छता सर्वेक्षण 2017 के तहत मध्य प्रदेश के दो शहरों ने बाजी मारी। मिनी मुंबई कहे जाने वाले इंदौर ने जहां पहला स्थान हासिल किया तो वहीं मध्य प्रदेश की राजधानी और झीलों की नगरी कहे जाने वाले भोपाल शहर को दूसरे पायदान से संतोष करना पड़ा। अब एक बार फिर दोनों ही शहरों के बीच जंग शुरु हो गई है नंबर वन का ताज अपने सिर पर सजाने की। जहां भोपाल इंदौर को पछाड़ कर पहले स्थान पर आना चाहता है तो वहीं इंदौर के पास अपनी पहली पोजीशन को बरकरार रखने की चुनौती है।
गौरतलब है कि स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में अब सिर्फ कुछ ही वक्त बाकी है। फिर दोनों में नंबर एक आने की होड़ लग जाएगी, लेकिन जमीनी हकीकत देखी जाए तो इंदौर के मुकाबले भोपाल कमतर ही है। जहां 2017 के सर्वे के बाद इंदौर में सफाई को लेकर नए-नए एक्सपेरीमेंट किए तो वहीं भोपाल अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है। इंदौर शहर के वांशिदों ने ऐसे बुनियादी प्रयास भी किए, जो इंदौर को किसी प्रतियोगिता के लिए नहीं बल्कि स्थाई रूप से स्वच्छ शहर बनाए रखेंगे। तो वहीं भोपाल ने कोई खास कदम नहीं उठाए।
दावों में कितनी सच्चाई ?
1.डोर टू डोर कचरा कलेक्शन
इंदौर : इंदौर के सभी 85 वार्डों में 100 प्रतिशत डोर टू डोर कचरा कलेक्शन व्यवस्था है। सभी डंपिंग यार्डों पर कंटेनर की व्यवस्था खत्म कर 600 मैजिक वाहन कचरा इकट्ठा करने में लगाए गए है। हर वार्ड में 6 नियमित और 1 अतिरिक्त वाहन इस काम में लगा हुआ है।
भोपाल : बात करें भोपाल शहर की तो यहां 500 डंपिंग यार्ड है। मगर, डोर टू डोर कचरा कलेक्शन करने का प्रतिशत मात्र 50 फीसदी है। कचरा उठाने के लिए कोई विशेष कार्ययोजना नहीं बनाई गई है।
2.सफाई कर्मचारियों का योगदान
इंदौर : शहर 2017 में हुए सर्वे के दौरान 4500 नियमित सफाईकर्मी थे, लेकिन अब 1500 कर्मचारी बढ़ा दिए गए । जिसके बाद इनकी संख्या बढ़कर 6500 हो गई है। पिछले 7 माह से बायोमीट्रिक अटेंडेंस सिस्टम प्रणाली को प्रभाव में लाया गया है।
भोपाल : इंदौर के मामले में भोपाल में सफाईकर्मियों की संख्या थोड़ी ही कम है। पिछले साल के सर्वे के बाद भोपाल ने भी अपने सफाईकर्मियों की संख्या में 300 सफाईकर्मियों का इजाफा किया था। इंदौर की तरह बायोमीट्रिक अटेंडेंस सिस्टम प्रणाली यहां सिर्फ कागजों में ही दिखाई देती है, अभी भी ज्यादातर काम रजिस्टर के माध्यम से ही होता है।
3.जागरुकता के लिए मुहिम
इंदौर : सफाई को लेकर लोगों में जागरुकता लाने के लिए शहर में हर दो दिनों में एक बार टॉक शो का आयोजन किया जाता है। इस टॉक शो में महापौर और निगमायुक्त दोनों मौजूद रहते है। शो के दौरान लोगों से भी सुझाव लिए जाते हैं। ताकि सफाई व्यवस्था को और बेहतर किया जा सके।
भोपाल : इधर भोपाल में निगम की ओर से अलग-अलग प्रतिनिधि समूहों के साथ शहर के होटलों में वर्कशॉप और सेमिनार का आयोजन किया जाता है। थर्ड जेंडर को ब्रांड एंबेसेंडर बनाया गया है। जागरुकता कार्यक्रम एनजीओ के भरोसे है।
इंदौर महापौर का दावा, भोपाल निगम कमिश्नर का पक्ष
इंदौर महापौर मालिनी गौड का कहना कि जिस तरह 2017 में हम नंबर वन आए हैं। 2018 में नंबर वन आएगा, ऐसा हमको पूरा विश्वास है। क्योंकि हमारे यहां सब लोगों ने सहयोग किया है। जनता जागरूक हुई है। इसलिए हमें पूरा विश्वास है कि हम फिर नंबर वन आएंगे। वहीं भोपाल निगम कमिश्नर प्रियंका दास का कहना है कि स्वच्छता में नागरिकों की सहभागिता बढ़ाई जा रही है। उम्मीद है परिणाम बेहतर आएंगे। सर्वे में अभी वक्त है, तब तक जो भी कमियां हैं, उन्हें दूर किया जाएगा।
जमीनी हकीकत के बारे में पतासाजी करने से तो लगता है कि भोपाल दूसरे पायदान पर आने के बाद भी सफाई को लेकर अपने उसी पुराने ढर्रे पर कायम है। स्वच्छता को लेकर शहर की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है, लेकिन प्रशासन अपनी ही बनाई हुई नीतियों पर काम नहीं कर पा रहा है। वहीं पहला स्थान पाने के बाद इंदौर प्रशासन स्वच्छता को लेकर और सजग हो गया है। सफाई अभियान को लेकर शहर में बहुत सी योजनाओं को क्रियान्वित किया है। इस बार भी इंदौर प्रशासन की पूरी कोशिश है कि वो अपना पहला स्थान बरकरार रखे। इंदौर की सजगता और सफाई के लिए बनाई गई उसकी नीतियों को देखकर तो लगता है कि वो अपना पहला स्थान कायम रखेगा, लेकिन भोपाल प्रशासन के रवैये को देखकर लगता है कि वो सिर्फ खोखले दांवो की नींव पर ही काम करना चाहता है। अब देखना यह है कि क्या भोपाल अपने इसी मिजाज के साथ नंबर 1 के ताज तक पहुंच पाता है या नहीं।
Created On :   20 Dec 2017 3:01 PM IST