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किराए पर जगह देने का अर्थ मालिक का अपनी संपत्ति से नियंत्रण खोना नहीं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। लीव एंड लाइसेंस पर जगह देने का अर्थ यह नहीं है कि मालिक ने जगह का पूरा नियंत्रण सौप दिया है। बांबे हाईकोर्ट ने एक आरोपी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने से इंकार करते हुए उपरोक्त बात कही है। आरोपी ने अपनी जगह स्पा के लिए किराए पर दी थी किंतु जब पुलिस ने छापे मारी की तो पाया कि वहां पर वेश्वावृत्ती चलती है। चूंकी आरोपी जगह का मालिक था इसलिए पुलिस ने उसके खिलाफ भी भारतीय दंड संहिता की धारा 370(3) व 34 के अलावा मानव तस्करी प्रतिबंधक कानून की धारा 3, 4 व पांच के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया था। जिसे रद्द कराने की मांग को लेकर आरोपी ने अभय चिदरी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति नीतिन जामदार व न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल ने अपनी जगह किराए (लीव एंड लाइसेंस) पर दी थी। इसलिए उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि स्पा परिसर के अंदर क्या चल रहा है। कुछ समय बाद उन्होंने लीव एंड लाइसेंस को रद्द भी कर दिया था। इस मामले में उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि आरोपी जगह का मालिक था। आरोपी ने अपनी जगह किराए पर दे दी थी इसका मतलब यह नहीं है कि उसने जगह का पूरा नियंत्रण सौप दिया था। इसलिए बगैर सबूत व मुकदमा चलाए बिना यह नहीं माना जा सकता है कि आरोपी को स्पा परिसर में चल रही गतिविधियों की जानकारी नहीं थी। हम इस मामले में आरोपी को निर्दोष घोषित नहीं कर सकते हैं। यदि आरोपी को लगता है कि वह निर्दोष है तो निचली अदालत में खुद को आरोप मुक्त करने के लिए आवेदन करें और वहां आरोपी अपने बचाव में कह सकता है कि उसे स्पा परिसर में चलनेवाली गतिविधियों की जानकारी नहीं थी। इस तरह खंडपीठ ने आरोपी के आवेदन को खारिज कर दिया।
Created On :   3 Sept 2022 7:29 PM IST