जेल से बरी होने के बाद सेवानिवृत्त शिक्षक ने मांगा वेतन

Retired teacher asked for salary after being released from jail
जेल से बरी होने के बाद सेवानिवृत्त शिक्षक ने मांगा वेतन
हाईकोर्ट ने कहा कि काम नहीं तो भुगतान नहीं जेल से बरी होने के बाद सेवानिवृत्त शिक्षक ने मांगा वेतन

डिजिटल डेस्क, मुंबई ।  बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि आपराधिक प्रकरण से कर्मचारी के बरी होने के मामले में “काम नहीं तो भुगतान नहीं” का सिद्धांत लागू होता है। मामला एक सेवानिवृत्त सहायक शिक्षक से जुड़ा है। शिक्षक ने दावा किया था कि उसे जिस आपराधिक मामले में  दोषी ठहराया गया था उस मामले में उसे हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। लिहाजा जितने समय वह अपनी नौकरी से सेवानिवृत्त होने तक जेल में रहा उस अवधि के वेतन का उसे भुगतान किया जाए।  शिक्षक गंगाधर पुकले की पत्नी की मौत के बाद उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302,498ए व 201 व 34 के तहत मामला दर्ज किया गया था। साल 2006 में शिक्षक को गिरफ्तार किया गया था।  सत्र न्यायालय ने आरोपी शिक्षक को साल 2008 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ शिक्षक ने हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद 31 जुलाई 2015 को शिक्षक को इस मामले से बरी कर दिया। लेकिन इस बीच आरोपी जुलाई 2013 में जब वह जेल में था तो वह सेवा निवृत्त हो गया। आपराधिक मामले से बरी होने के बाद सेवानिवृत्त शिक्षक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर जुलाई 2006 से जुलाई 2013 के बीच के वेतन भुगतान करने का निर्देश देने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की।  न्यायमूर्ति गंगापुरवाला व न्यायमूर्ति एसएम मोडक की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई।

सेवानिवृत्त शिक्षक की याचिका के मुताबिक 24 सितंबर 1979 सातार के रयत शिक्षण संस्थान में उसकी सहायक शिक्षक के रुप में नियुक्ति की गई थी। साल 2006 तक वह सहायक शिक्षक के रुप में कार्यरत था जुलाई 2006 में उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया। इसके बाद उसका निलंबन किया गया। लेकिन स्कूल प्रबंधन ने उसके खिलाफ विभागीय जांच नहीं की। अब वह मामले से बरी हो गया इसलिए वह जेल में बीताई अवधि का वेतन पाने का हकदार है। वहीं सरकारी वकील ने याचिका का विरोधल करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता साल 2013 में नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ है। जबकि जब जेल में था तब वह साल 2013 में सेवानिवृत्त हुआ है। इस लिहाजा से याचिकाकर्ता साल 2006 से साल 2013 के बीच ड्युटी में अनुपस्थित था। इसलिए इस मामले में कार्य नहीं तो भुगतान का सिद्धांत लागू होता है। खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता के मामले में भी कार्य नहीं तो भुगतान नहीं का सिद्धांत लागू होता है। इसलिए वह(याचिकाकर्ता) साल 2006 से साल 2013 के बीच वेतन पाने का हकदार नहीं है। क्योंकि वह सेवानिवृत्ती के दो साल बाद मामले से बरी हुआ है। लेकिन पेशन के लाभ के लिए शिक्षक की सेवा की निरंतरता का इस्तेमाल हो सकता है।

Created On :   20 Aug 2022 7:21 PM IST

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