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बैगाओं के पास नहीं हैं मूलभूत सुविधाएं, फिर भी गुजार रहे बेफिक्र जिन्दगी - नहीं जानते क्या ह बैगा ओलंपिक

डिजिटल डेस्क परसवाड़ा, बालाघाट । बालाघाट जिले के दूरस्थ बैगा बाहुल्य गांवो के ग्रामीणजनों को सही मायने मेें योजनाओं का लाभ नही मिल पा रहा है। यहां परसवाड़ा वि.स.क्षेत्र अंतर्गत आने वाले वन बाहुल्य ढीपुर एवं कुकड़ा गांव के हालात बद्तर देखे जा रहे है। कहने को तो सरकार द्वारा बैगाओं के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है,लेकिन धरातल पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। बिजली, पानी एवं स्वास्थ्य सेवाओं से हर मोड़ पर वंचित बैगा सुविधा नही होने के बाद भी बेफिक्र जिन्दगी गुजारते देखे जा रहें है। यहां तहसील मुख्यालय परसवाड़ा से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर निवास करने वाले वन ग्राम कुकड़ा के बैगा जनजाति के लोगों को योजनाओं का लाभ नही मिल पा रहा है, कारण यह कि बैगाजन आज भी सरकार की योजनाओं से अनजान है। ग्राम झिरिया के ढीपुर एवं कुमन गांव के बैगाओं का कहना है कि आज भी उनका राशन कार्ड तथा आधार कार्ड नही बन सका है।
जनप्रतिनिधियों को नही है सुध
दूरस्थ वन क्षेत्रों मे रहने वाले बैगाओं का कहना है कि गांव के विकास को लेकर जनप्रतिनिधियों द्वारा अब तक कोई कारगर कदम नही उठाए गए है। अर्से से उनके गांव में जनप्रतिनिधि नही पहुंचे है। उनके क्षेत्र के नेता को वे नही पहचानते है। कभी-कभार उनके गांव के आसपास के लोग उनके बीच पहुंचते है तब उन्हें जानकारी मिलती है कि गांव में कोई नेता आया है,लेकिन उन्हे इन सब चीजो से कोई सरोकार नही होता है।
अंधेरे मे नारकीय जीवन गुजारने मजबूर
वन ग्राम ग्राम कुकड़ा में कुल 34 परिवार के बैगा जनजाति के लोग निवास करते हैं जिनके पास अब तक आधारकार्ड तो बहुत दूर की बात है उनका अब तक राशनकार्ड, श्रमिक कार्ड भी नहीं बन पाया है। इन बैगा जनजाति के लोगों का कहना है कि बिजली के लिए यहां खंबे तो लगाए गए हैं परंतु खंबे लगने के बाद यहां केवल एक या दो दिनों के लिए बिजली उपलब्ध हो पाई और बिजली का बिल प्रति महीने यहां पर बिजली कर्मचारी दूर से ही देकर चले जाते हैं यहां बांटने तक नहीं आते उनके समक्ष सबसे बड़ी समस्या बिजली की है और वह अंधेरे में अपना जीवन यापन करने में मजबूर हैं बारिश के महीनों में उनके साथ समस्या तो और विकट हो जाती है ै।
क्षतिग्रस्त है पानी की टंकी
यहां पर पानी की टंकी लगाई गई है परंतु वह भी क्षतिग्रस्त है जिसका नल में कोई कनेक्शन नहीं है ना ही यहां घरों मे नल लगाये गये हैं, जिसके चलते उन्हें ग्रीष्मकाल के मौजूदा इस दौर मे दो वक्त पानी के लिए परेशान होना पड़ता है तथा झिरिया आदि का पानी पीने मजबूर होना पड़ता है।
झोपड़ी में रहने की मजबूरी
सरकार की आवास योजना का लाभ बैगाओं को नही मिल पाया है। अधिकतर बैगाजन घासफूस की झोपड़ी में ही रहते है। यहां के लोग हाथों से लकडिय़ों के कारीगरी कर एवं बांस के टुकड़ों से सामान बनाकर उन्हें बेचकर ही अपना जीवन गुजर बसर कर रहे हैं।
नही है सड़क
जानकारी के अनुसार अब तक यहां पर आने जाने वाले लोगों के लिए सड़क की व्यवस्था नहीं है। मिट्टी की सङक बनाई गई है जो बारिश के दिनों में मुख्यालय से एकदम कट जाते हैं और उन दिनों स्वास्थ्य सुविधाएं भी इन तक नहीं पहुंच पाती है।
बैगा ऑलम्पिक की नही है जानकारी
बैहर में 6 अप्रैल से प्रारंभ होने वाले बैगा ओलंपिक के बारे में ग्राम कुकड़ा, ढीपुर, कुमनगांव के निवासरत बैगा जनजाति के लोगों से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि उन्हें बैगा ओलंपिक के बारे में किसी भी प्रकार की कोई जानकारी नहीं है।
पैसे के बारे अनभिज्ञ
ग्राम कुकड़ा के बैगा आदिवासियों से सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना जिनमें प्रत्येक बैगा परिवार को एक हजार मासिक दिया जाना है, पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि उन्हें अब तक इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है। ग्राम कुकड़ा के बैगा आदिवासियों ने सामूहिक रुप से अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने की अपील की है। इस दौरान ग्राम कुकड़ा के आदिवासी बैगा जनजातियों ने सामूहिक रुप से सम्मिलित होकर जल्द से जल्द समस्याओं का निपटारा करने की मांग की है।
इनका कहना है....
बैगा बाहुल्य अनुसूचित क्षेत्र में शासन की जो भी योजनाएंं हैं उनका क्रियान्वयन किया जा रहा है। समय-समय पर विशेष कैंप लगाकर बैगाओं को मूलभूत सुविधाएं दिलाने के लिए हम प्रयास कर रहे हैं, प्रशासनिक स्तर से बैगा ओलंपिक के संदर्भ में प्रचार प्रसार का कार्य किया जा रहा है विकास खंड से लगे गांवो में खेल प्रतियोगिताओं की सूचना पहुंचाई जा रही है।
गोंविद दुबे, एसडीएम बैहर



Created On :   29 March 2018 4:58 PM IST