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शत्रु को अपनी ताकत दिखाने शक्ति और शस्त्र संपन्न होना जरूरी- भागवत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि शत्रु को अपनी ताकत दिखाने के लिए हिंदुओं को शक्ति और शस्त्र संपन्न होना जरूरी है। यह संदेश वीर सावरकर ने दिया था। यह संदेश समझने के लिए 7 दशक बीत गए। यदि उसी समय देश की सरकार समझ जाती तो आज अलग परिस्थिति रहती। पुलवामा के 40 शहीदों की तेरहवीं के दिन भारत ने शत्रु राष्ट्र का बदला लेकर उन्हें श्राद्धार्पण किया। सावरकर ने अपने-आप को देश के लिए समर्पित किया। उनके समर्पण का स्वर्ण दिवस जल्द से जल्द देश भर मनाने का अवसर मिले। यह कहते हुए उन्होंने संकेतों में पाक के खिलाफ बड़ा कदम उठाने की मंशा व्यक्त की।
शिक्षक सहकारी बैंक सभागृह में वीर सावरकर स्मारक गौरव पुरस्कार समारोह में डॉ. भागवत बोल रहे थे। परम् महासंगणक के जनक डॉ. विजय भटकर का उनके हाथों सम्मान किया गया। इस अवसर पर स्मारक समिति के कार्याध्यक्ष शिरीष दामले, महासचिव डॉ. अजय कुलकर्णी मंच पर विराजमान थे। डॉ. भागवत ने कहा कि सावरकर समान प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व कभी-कभार पैदा होता है। उन्होंने जो किया, देश के लिए किया। उनके कार्यों के पीछे त्याग रहा। जब अंग्रेजों ने उन्हें एक साथ दो उम्रकैद की सजा सुनाई थी, उसी समय सजा पूरी होने तक भारत पर तुम्हारा राज रहेगा क्या, यह प्रतिप्रश्न पूछने का अदम्य साहस दिखाया। इस तरह का साहस दिखाने वाले वे एकमेव भारतीय क्रांतिकारी हैं। शत्रु को अपनी ताकत दिखाने के लिए हिंदुओं को शक्ति और शस्त्र संपन्न होना चाहिए। हिंदू धर्म कर्मकांड से बंधा नहीं है। जो भेद है, वह पारंपरिक है। उसे भुलाकर एकसंघ होना जरूरी है। भारत हिंदु राष्ट्र है, इस बात पर उनका पूरा विश्वास था। उन्होंने तर्क अौर अनुभव से जो सत्य समझा उस रास्ते पर चले।
सावरकर के बताए मार्ग पर चलना चाहिए
एक भव्य लक्ष्य लेकर आगे बढ़ते रहे, यही सच्ची शक्ति है। डॉ. भागवत ने कहा कि भारत शक्ति संपन्न हिंदू राष्ट्र है। सावरकर भी यही कह गए। हमें उनके बताए हुए रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए। जिस दिन सावरकर से शक्ति निष्ठा लेकर हम सभी एक समाज के लिए जीने का संकल्प लेंगे, उसी दिन सावरकर के देशभर में प्रतिमा बनाकर उनके आत्मसर्पण का उत्सव बनाने का हमें सही मायने में अधिकार होगा।
सत्कारमूर्ति डॉ. विजय भटकर ने कहा कि जब तक आत्मज्ञान आत्मसात नहीं होगा, तब तक विज्ञान अधूरा है। विज्ञान और आत्मज्ञान एक साथ सीखने की व्यवस्था होनी चाहिए। बिना आत्मज्ञान के विज्ञान का सही उपयोग नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने अनेक विषयों पर तेजस्वी प्रकाश डाला। हिंदू, हिंदुत्व, विज्ञाननिष्ठ विचारों पर उनका प्रगाढ़ विश्वास था। उन्हाेंने कहा कि भारतीय संस्कृति विज्ञाननिष्ठ है। इसलिए देश की अन्य संस्कृति में सर्वश्रेष्ठ है। विश्व की अन्य संस्कृति समय के साथ काल के गाल में समा गई। भारतीय संस्कृति विज्ञाननिष्ठ रहने से आज भी जीवित है। संस्कृत को संगणक की भाषा बनाने पर उन्होंने जोर दिया। उन्होंने कहा कि जिस भाषा को तकनीकी का साथ नहीं मिलता, उसका अस्तित्व नष्ट हो जाता है। संस्कृति को बचाने के लिए उन्होंने इस दिशा में पहल की अपेक्षा व्यक्त की।
Created On :   27 Feb 2019 10:21 AM IST