सतना और रीवा के लिए 'नर्मदा का जल' बस एक सपना !

District Mineral Fund is not being used in Gadchiroli!
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सतना और रीवा के लिए 'नर्मदा का जल' बस एक सपना !

डिजिटल डेस्क, सतना। जिले की लाखों हेक्टेयर जमीन तक पानी पहुंचाने की बात करके बरगी प्रोजेक्टर को मंजूरी दी गई थी। बरगी की दायीं तटीय नहर की मंजूरी इस शर्त पर दी गई थी कि वर्ष 2028 तक सतना-रीवा जिलों को जितने भी पानी की आश्यकता हो अथवा वह उपयोग कर सके उतना पानी ले सकते हैं। किन्तु इसके बाद इन जिलों को इस तरह से पानी नहीं मिलेगा।

अनुबंध की शर्तों में यह बात जुड़ी होने के साथ ही यह भी उल्लेख है कि 2028 के बाद गुजरात को नर्मदा का पानी देना पड़ेगा। लिहाजा सतना और रीवा जिलों को नर्मदा का पानी सपना होकर रह जाएगा। जिस रफ्तार से टनल का काम चल रहा है, उसे देखकर फिलहाल यह लगता नहीं कि बाकी बचे सालों में इसका काम पूरा हो सकेगा।

पहाड़ के इस पार पानी कैसे आएगा

जानकारी के अनुसार जब पहाड़ के नीचे से बनाई जा रही टनल ही बन कर तैयार नहीं होगी, तो फिर पहाड़ के इस पार पानी कैसे आएगा। जिले में बरगी के पानी को लेकर नेता, मंत्री भाषण अवश्य देते हैं लेकिन गंभीरता के साथ आज तक किसी ने पहल नहीं की। बरगी प्रोजेक्ट के अधिकारी जो भी पाठ पढ़ा देते हैं वही रट कर बोलने लगते हैं। और तो और किसी ने मौके पर जाकर देखने तक की हिम्मत नहीं की।

क्यों फेल हुआ 700 करोड़ का प्रोजेक्ट

स्लिमनाबाद के पास से कैमोर पहाड़ को काटकर 12 किलोमीटर लम्बी टनल बनाई जानी है। इसका काम वर्ष 2007 से प्रारंभ हुआ। दो सौ करोड़ की टीवीएम (टनल बोरिंग मशीन) अमेरिका से आयात की गई है। काम का ठेका हैदराबाद की एक कम्पनी को दिया गया है। अब तक इस कम्पनी ने मात्र साढ़े 5 किलोमीटर के करीब टनल बनाकर तैयार किया है। जब 10 वर्षों में 5 किलोमीटर टनल का काम हुआ, तो बाकी बचे 11 वर्षों में कितना काम हो पाएगा। यदि किसी तरह टनल का काम पूरा भी हो गया और नहरें भी बन गईं तो भी नर्मदा का पानी उपयोग करने की समय-सीमा ही समाप्त हो जाएगी।

कहां हुई चूक?

सवाल यह उठता है कि 700 करोड़ रूपए के टनल प्रोजेक्ट में आखिर चूक कहां हुई। जानकारों का कहना है कि कहां पर टनल बनाना है इसके सर्वे के लिए जर्मनी के एक इंजीनियर को सिंचाई विभाग द्वारा 1 करोड़ रूपए में हायर करके सर्वे कराया गया। जर्मनी से आया उक्त इंजीनियर यहां के कुछ लोगों के झांसे में आ गया और तत्कालीन अधिकारियों ने भी उसे गलत जानकारियां दी। सर्वे करने के बजाय उसने लोगों के फायदे के लिए उसी जगह का चयन किया, जहां वह चाहते थे। जबकि उस जगह पर हार्डरॉक की जगह पहाड़ में भुरभुरी चट्टानें मौजूद हैं, जिनके ढहने से टनल मशीन ही दब गई। यह भी लोग बताते हैं कि हार्डरॉक काटने के लिए तो मशीनें बनाई गई हैं किन्तु भुरभुरी चट्टानों के लिए कोई भी मशीन फिलहाल उपलब्ध नहीं है।

केन्द्र ने कहा अब न देंगे पैसा!

बरगी कैनाल के टनल निर्माण के लिए फास्ट ट्रैक योजना के तहत भारत सरकार द्वारा 700 करोड़ रूपए का बजट दिया गया था। जबकि नहरों के निर्माण के लिए एशियन डबलपमेंट बैंक द्वारा डेढ़ हजार करोड़ रूपए बतौर लोन दिए गए थे। यह दोनों राशियां लगभग खर्च हो चुकी हैं और काम अभी आधा भी नहीं हो पाया। बताया गया है कि केन्द्र सरकार द्वारा भी काम पूरा न होने पर नाराजगी जाहिर की गई है और अतिरिक्त फंड देने से मना कर दिया गया। इधर एशियन डबलपमेंट बैंक अतिरिक्त राशि देने के लिए राजी नहीं है। सवाल यह है कि राज्य सरकार द्वारा अपने संसाधनों से ही इन कार्यों के लिए पैसों का इंतजाम करना पड़ेगा।

Created On :   20 July 2017 3:48 PM IST

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