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बंगलुरु से खून मंगाकर बचाई मरीज की जान

डिजिटल डेस्क,नागपुर। कोरोनाकाल के दौरान रक्तदाताओं की संख्या कम हो चुकी है। ऐसे में सामान्य रक्त समूह का रक्त भी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। सरकारी अस्पतालों के ब्लड बैंकों में तो आए दिन रक्त की किल्लत होती है। विषम परिस्थितियों में भी मरीजों की जान बचाने के लिए डॉक्टर्स कोई कसर नहीं छोड़ते। ऐसा ही एक उदाहरण इंदिरा गांधी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेयो) में देखने को मिला है। यहां के एक मरीज को एटूबी निगेटिव रक्त की आवश्यकता थी। यह रक्त आसानी से उपलब्ध नहीं हाे पाता है। नागपुर व आसपास में यह रक्त उपलब्ध नहीं होने से बंगलुरु से विमान द्वारा रक्त मंगाया गया। मरीज को रक्त मिलने से उसकी जान बच पाई है। यह अपने आप में अनोखा मामला है।
15 दिन से भर्ती : मेयो अस्पताल के वार्ड क्रमांक 24 में पंद्रह दिन पहले से चंद्रपुर निवासी उजेर सिंह नामक मरीज उपचारार्थ भर्ती है। उसकी शल्यक्रिया की जानी है। इसके लिए उसे उसे दुर्लभ एटूबी निगेटिव रक्त की 4 यूनिट की आवश्यकता थी। अस्पताल के डॉक्टरों, मरीज के परिजनों व अन्य परिचितों ने इस रक्त गट के दाता की खोज की, लेकिन नागपुर व आसपास में कहीं भी इस रक्त गट का रक्तदाता नहीं होने की जानकारी सामने आई। कुछ दिन यूं ही बीत गए। इसके बाद कुछ सूची की जांच करने व सोशल मीडिया पर खोजबीन करने पर इस रक्त गट का व्यक्ति बंगलुरु में होने की जानकारी मिली। बंगलुरु निवासी शंकर नारायण और मधु कालीराजन का रक्त दुर्लभ एटूबी निगेटिव होने का पता चला।
बंगलुरु में किया रक्तदान : रक्तदान मुहिम के रिंकू कुमरे, अमित जैन व सरस्वती सूद ने बंगलुरु से रक्त नागपुर में लाने के लिए बातचीत आगे बढ़ाई। काफी कोशिश के बाद इन दोनों के मोबाइल नंबर मिले। उनसे संपर्क किया गया। नागपुर के मरीज की स्थिति का हवाला देते हुए उन्हें रक्तदान करने की गुहार लगाई गई। दोनों तुरंत रक्तदान करने को तैयार हो गए। बंगलुरु के लायन्स ब्लड बैंक से समन्वय कर वहां भेजा गया। पिछले हफ्ते दोनों ने वहां रक्तदान किया। इसके बाद कार्गो सेवा द्वारा बंगलुरु से रक्त नागपुर भेजा गया। रक्त नागपुर पहुंचते ही मेयो के डॉक्टरों को सौंपा गया। चार दिन पहले रक्त मिलते ही डॉक्टरों ने उसकी शल्यक्रिया की। मरीज अब वह स्वस्थ है।
एक साल में दूसरी घटना : पिछले एक साल में यह दूसरी घटना है। तीन महीने पहले गंगा पाचे नामक महिला को इसी रक्त समूह की आवश्यकता थी। उस समय भी बंगलुरु के रक्तदाताओं ने रक्तदान कर जान बचाई थी। मेयो के विकृतिशास्त्र विभाग प्रमुख डॉ. बाल कोवे के अनुसार, आपात स्थिति में डॉक्टर्स व पूरी टीम मरीज की जान बचाने की आखिरी दम तक कोशिश करते हैं। ऐसे में दुर्लभ रक्त समूह के मरीज होने पर बड़ी समस्या पैदा हो जाती है। इसके बावजूद कुछ लोग ऐसे मददगार बन जाते हैं कि वे कितनी भी दूर रहे, इंसानियत के नाते लोगाें की जान बचाने के लिए आगे आते हैं। आपात स्थिति में रक्तदान के माध्यम से अपरिचितों से खून का रिश्ता जुड़ जाता है। जरूरतमंदों को रक्त की समस्या न हो, इसलिए रक्तदान करना चाहिए।
Created On :   11 Jan 2022 4:08 PM IST