शिक्षकों के पैसों पर चल रही शालेय पोषण आहार योजना

School nutrition diet plan running on teachers money
शिक्षकों के पैसों पर चल रही शालेय पोषण आहार योजना
प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान शिक्षकों के पैसों पर चल रही शालेय पोषण आहार योजना

डिजिटल डेस्क, अमरावती।  राज्य सरकार की शालेय पोषण आहार योजना इन दिनों शिक्षकों की जेब के पैसों पर चल रही है। शालेय पोषण आहार योजना को चलाने के लिए जरूरी तेल, गैस व सब्जी आदि की व्यवस्था कर शिक्षकों को हजारों रुपए की व्यवस्था करनी पड़ती है। जिससे सरकार का आर्थिक नियोजन गड़बड़ा जाता है।  फिलहाल तेल और गैस के भाव काफी बढ़ गए हैं। एक व्यवसायिक गैस सिलेंडर लेने के लिए शालाओं को लगभग 2200 रुपए खर्च करने पड़ते है। साथ ही सोयाबीन तेल की एक बैग की कीमत 200 रुपए के करीब है। सब्जियों के दाम भी काफी बढ़ गए हैं। यह देख राज्य सरकार ने शालाओं को शालेय पोषण आहार के लिए आवश्यक वस्तुएं मुहैया कराने की बजाय उसे खरीदने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर सौंपी है। पहले शिक्षकों को पैसे खर्च करना पड़ता है और बाद में सरकार बिल देगी, फिलहाल यह योजना इस तरह से चल रही है। सरकार आमतौर पर 6-7 महीने बिल नहीं देती। इस कारण शिक्षकों को पोषण आहार की व्यवस्था करने पर अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते है। वर्तमान में शाला शुरू होकर दो महीने बीत गए हैं। 

जून, जुलाई के लिए दिया गया चावल, दाल, जीरा, राई, नमक आदि खत्म हो गया है। अगस्त महीना शुरू होने गया है, लेकिन अभी तक अगस्त महीने का चावल स्कूलों में नहीं पहुंचने से बच्चों को चावल कैसे देना यह सवाल शिक्षकों के सामने है। हर महीने माल पहुंचा यह रिकार्ड पर दिखाकर िबल उठानेवाले आपूर्तिदार प्रत्यक्ष में दो महीने का माल एक साथ देकर डीजल व यातायात खर्च की बचत करते हैं। दो महीने की दाल एक बार मिलने से कई बार दाल खराब हो जाती है। उसे फिर से साफ कर धूप में रखकर फिर काम में लाने की कसरत शिक्षकों को करनी पड़ती है। सरकार द्वारा भेजा गया माल अच्छी क्वॉलिटी का नहीं होने से यदि स्कूलों में वह माल नहीं उतारा तो आगे दो महीने गाड़ी नहीं आएगी। जिससे शिक्षकों को मजबूरन जिस तरह का माल स्कूलों में भेजा जाता है, उसे उतारकर पोषण आहार बच्चों को खिलाना पड़ता है और इसमें शिक्षकों का अधिकतर समय व्यतीत होता है। 

Created On :   1 Aug 2022 11:57 AM IST

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