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शोरगुल में खो गई है राजवाड़ों की शान माने जाने वाली सुरीली शहनाई

डिजिटल डेस्क, नागपुर। आज के समय में धूमधड़ाका सभी को ज्यादा पसंद आने लगा है। डीजे आने से शहनाई वादकों के पेट पर सीधे वार हुआ है। शहर में शहनाई वादकों की संख्या कुछ ही रह गई है। वक्त के अनुसार मांगलिक समारोहों से शहनाई लगभग गायब हो गई है। राजवाड़ों की शान माने जाने वाली शहनाई की मधुर धुन कम ही सुनाई पड़ती है। एक समय था, जब मांगलिक समारोह बिना शहनाई वादन के नहीं होते थे, पर अब शहनाई की गूंज थम सी गई है। धीरे-धीरे इस मधुर आवाज की जगह डीजे ने ली है। इससे शहनाई वादक भरण-पोषण के भी लाले पड़ गए हैं। इस संबंध में दैनिक भास्कर ने शहर के कुछ शहनाई वादकों से चर्चा की।
शहनाई वादक किशन उइके के मुताबिक पांच पीढ़ी से हमारे यहां शहनाई वादन किया जा रहा है। मेरे परदादा के पिताजी ने कई नेताओं, अभिनेताअों के घर शहनाई बजाई है, लेकिन आधुनिक समय में डीजे के साथ अन्य नई चीजें सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। हमारा व्यवसाय तो बंद होने की कगार पर है। जो मधुर धुन लोग सुनना पसंद करते थे, अब कान फोडू संगीत सभी को भाता है। शहर में नाममात्र के शहनाई वादक रह गए हैं। कमाई का अभाव होने के कारण उनके खाने के लाले पड़ गए हैं। पहले के समय न सिर्फ शादी-ब्याह, बल्कि हर उत्सव में शहनाई वादक होते थे, जो शहनाई की मधुर धुन सुनाते थे।
शहनाई छोड़ बैंड बजाना सीखा
शहनाई वादक अजीत उइके के मुताबिक पीढ़ियों से चल रहे शहनाई वादन के काम को बंद कर दूसरा काम करना पड़ रहा है। ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं होने से कहीं नौकरी भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए बैंड का काम सीख लिया है, ताकि बैंड बजाकर परिवार की आजीविका चलाई जा सके। अपने हुनर को डूबते देखकर बहुत दु:ख होता है। शहनाई वादन को जिंदा रखने के लिए महीने में दो-चार बार प्रैक्टिस कर खुश हो लेते हैं। भले ही मांगलिक अवसर पर शहनाई की धुन की पसंद न की जाती हो, लेकिन घरवालों को ही शहनाई की मधुर धुन सुनाकर अच्छा महसूस करते हैं। चार पीढ़ियों की शहनाई वादन की विरासत को संभाल कर रखे हैं। इसे बजाते-बजाते सीख गए, किसी से विशेष ट्रेनिंग लेने की जरूरत नहीं पड़ी।
विलुप्त होने की कगार पर
शहनाई वादक अवतार उइके का कहना है कि पहले के समय हर उत्सव पर शहनाई की गंूज होती थी। अब जिस तरह से इसका ट्रेंड खत्म हो रहा है, लगता है शहनाई विलुप्त ही हो जाएगी। हम शहनाई वादक कुछ बैंड वालों के साथ जुड़े हैं। पारंपरिक या राजघराने से जुड़े जो लोग हैं, उनके घर वर्ष में एक बार शहनाई बजाने के लिए बुलाया जाता है। पुराने लोग तो फिर भी शहनाई की धुन को थोड़ा-बहुत पसंद करते हैं, पर यंगस्टर्स को तो शहनाई की धुन बोरिंग लगती है। उन्हें धूमधड़ाका ज्यादा पसंद है, इसलिए उन्हें डीजे की धुन भाती है। यह हमारा पीढ़ियों का व्यवसाय हुआ करता था, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं, ताकि वे पढ़-लिख कर जॉब कर सकें।
Created On :   16 Sept 2018 6:46 PM IST