पहले भी विद्रोह का सामना कर चुकी है शिवसेना

Shivsena has faced rebellion in the past too
पहले भी विद्रोह का सामना कर चुकी है शिवसेना
 चौथी बार बगावत  पहले भी विद्रोह का सामना कर चुकी है शिवसेना

विजय सिंह ‘कौशिक’, मुंबई । शिवसेना में एक बार फिर बड़ा विद्रोह सामने आया है। हालांकि पार्टी पहले भी इस तरह के विद्रोह का सामना कर चुकी है। फर्क यह है तब शिवसेना विपक्ष में थी जबकि इस बार सरकार में रहते पार्टी को बगावत का सामना करना पड़ा है। शिवसेना में हुई बगावत में एक समानता यह रहा है की विद्रोह का झंडा बुंलद करने वाले छगन भुजबल, नारायण राणे, राज ठाकरे और एकनाथ शिंदे सभी कट्टर शिवसैनिक रहे हैं। मुंबई के एक कालेज से मेकेनिकल इंजीनियर की डिग्री हासिल करने वाले नाशिक के छगन भुजबल 60 के दशक में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का एक भाषण सुन कर इतने प्रभावित हुए की वे शिव सैनिक बन गए। भुजबल ने शिव सेना के एक समर्पित कार्यकर्ता के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरूवात की और कुछ सालों में ही पार्टी के एक ताकतवर नेता बनकर उभरे। 1973 में भुजबल शिवसेना के टिकट पर मुंबई मनपा में नगरसेवक चुने गए। 1985 के विधान सभा चुनाव के बाद शिवसेना प्रमुख विपक्षी दल के रूप में सामने आई। इस विधानसभा में भुजबल मुंबई की मझगांव सीट से विधायक चुने गए थे। उन्हे उम्मीद थी की ठाकरे उनको विधान सभा में विपक्ष के नेता का पद सौंपेंगे पर ऐसा नहीं हुआ और बालासाहेब ने मनोहर जोशी को विपक्ष का नेता बना दिया। और भुजबल को राज्य की राजनीति से हटा कर मुंबई मनपा का महापौर का पद थमा दिया। भुजबल को यह बात नही भायी और वे नाराज हो गए। दिसंबर 1991 आते आते भुजबल के ठाकरे से मतभेद इतने बढ़ गए की भुजबल ने शिवसेना से विद्रोह कर दिया और शिवसेना के 18 विधायको के साथ अलग गुट बना लिया। बाद में वे अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। उस वक्त भुजबल काफी समय तक शिवसैनिको के निशाने पर थे।

उद्धव की वजह से राणे ने छोड़ी थी शिवसेना  
कभी शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के बेहद प्रिय रहे नारायण राणे ने भी वर्ष 2005 में पार्टी से विद्रोह कर दिया था। शिवसेना के मौजूदा प्रमुख उद्धव ठाकरे से मतभेद के चलते राणे शिवसेना से अलग हुए थे। राणे ने अपनी आत्मकथा ‘झंझावात' में लिखा है कि उद्धव ठाकरे किस तरह से शिवसैनिकों को परेशान किया करते थे? राणे के अनुसार ‘उस दिन उन्होंने मातोश्री जाकर बाला साहेब को बताया कि साहेब अब मैं शिवसेना छोड़ रहा हूं। उस वक्त साहेब कुछ नहीं बोले। पर दूसरे दिन उन्होंने मुझे फोन कर बुलाया। वह नहीं चाहते थे कि मैं शिवसेना छोड़ कर जाऊं, लेकिन जब यह बात उद्धव ठाकरे को पता चली तो उन्होंने साहेब को धमकी दी कि राणे को पार्टी में रोका गया तो वे घर छोड़ कर चले जाएंगे।’ शिवसेना छोड़ राणे कांग्रेस में शामिल हो गए थे। बाद में राणे ने 2017 में कांग्रेस छोड़ ‘महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष' का गठन किया था और कुछ समय बाद वे भाजपा में शामिल हो गए। फिलहाल राणे केंद्र में मंत्री हैं।

बाला साहेब के उत्तराधिकारी माने जाते थे राज ठाकरे
शिवसेना को सबसे बड़ा झटका तब लगा था जब शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ कर अपनी पार्टी बना ली थी। कभी बाला साहेब के करीबी रहे राज को ही उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था। तब उद्धव ठाकरे राजनीति में सक्रिय नहीं थे जबकि राज ठाकरे शिवसेना की छात्र शाखा विद्यार्थी सेना की कमान संभाल रहे थे। राज ठाकरे हर लिहाज से चाचा बाल ठाकरे गए प्रतिरूप माने जाते थे। चाल- ढाल, पहनावा, बातचीत, भाषण की शैली, इतना ही नहीं वह बाल ठाकरे की तरह ही बेहतरीन कार्टूनिस्ट भी हैं। पर बाद में उद्धव के राजनीति में सक्रिय होने के बाद पार्टी में राज के पर कतरे जाने लगे। 1997 के मुंबई मनपा चुनाव के दौरान चुनाव तैयारियों में राज ठाकरे के सक्रिय होने के बावजूद तमाम टिकट उद्धव ठाकरे की सहमति और मंजूरी से बांटे गए थे। इस बात से भी राज ठाकरे काफी आहत हुए। शिवसेना धीरे-धीरे कई खेमों में बंट रही थी। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना ने मुंबई मनपा का चुनाव जीत लिया। इसके बाद पार्टी संगठन में भी उद्धव ठाकरे की ताकत और पकड़ मजबूत होने लगी। अब तक शिवसैनिकों को भी यह बात समझ में आने लगी थी कि भविष्य में नेता उद्धव ठाकरे ही होंगे। इस बीच साल 2003 में महाबलेश्वर में आयोजित शिवसेना के अधिवेशन में खुद राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा था। जिसे तुरंत सर्वसम्मति से मंजूर कर लिया गया था। जिसके बाद उद्धव ठाकरे शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए थे। पर समय के साथ उद्धव व राज ठाकरे के बीच दूरी बढ़ती गई। शिवसेना क्यों छोड़ी के सवाल पर राज ठाकरे ने एक टॉक शो में बताया था, मैं धीरे-धीरे खुद को शिवसेना के कामकाज से दूर कर लिया था और शिवसेना छोड़ने के बाद पार्टी बनाने की कोई योजना नहीं थी पर कुछ लोगों की सलाह पर महाराष्ट्र का दौरा करने के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठन किया। राज ठाकरे ने 9 मार्च 2006 को शिवसेना से इस्तीफा दे दिया था।

उस दिन राऊत की कार पर उतरा था शिवसैनिकों का गुस्सा 
राज के शिवसेना छोड़ने के बाद बडी संख्या में शिवसेना कार्यकर्ता उनके साथ आए थे। उस वक्त शिवसेना हिल गई थी। जिस दिन राज ठाकरे ने अपने आवास पर शिवसेना छोड़ने का एलान किया, उस वक्त बड़ी संख्या में शिवसेना कार्यकर्ता उनके आवास पर जमा हुए थे। राज को मनाने पहुंचे शिवसेना नेता संजय राऊत के प्रति वहां जुटे शिवसैनिकों में इतना गुस्सा था कि उनके कार से उतरते ही लोगों ने राऊत की कार को चकनाचूर कर दिया था।    
 

Created On :   21 Jun 2022 7:34 PM IST

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