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कोई चमत्कार नहीं, मगर फिर भी टेढ़ी हो गई भगवान धन्वंतरि की मूर्ति

डिजिटल डेस्क, नागपुर। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है, इसलिए जब भी आयुर्वेद की बात होती है तो धन्वंतरि जी का नाम अवश्य लिया जाता है। आयुर्वेद अस्पतालाें और महाविद्यालयों में उनकी तस्वीर या प्रतिमाएं लगी होती हैं। जिस दिन से दीपावली का पर्व शुरू होता है, उसका प्रथम दिन धनतेरस कहलाता है। यह दिन धन्वंतरि काे समर्पित है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन नागपुर में भी निजी और सरकारी आयुर्वेद अस्पतालाें में भगवान धन्वंतरि को याद किया जाता है। सक्कदरा स्थित शहर के सबसे बड़े सरकारी आयुर्वेद अस्पताल में यही हालात नजर आते हैं। यहां धन्वंतरि की दो प्रतिमाएं हैं। दोनों में से एक का रखरखाव ठीक है, लेकिन दूसरी प्रतिमा टेढ़ी हो गई है। प्रतिमा अब गिरे कि तब गिरे की हालत में है। सालभर से यह उसी अवस्था में है, लेकिन अस्पताल प्रशासन को इसकी सुध लेने की फुर्सत नहीं है।
सरकारी अायुर्वेद अस्पताल में भगवान धन्वंतरि की दो प्रतिमाएं हैं। इनमें से एक निवासी स्वास्थ्य अधिकारी के चेंबर के पास है। इसे कांच के शोकेस में रखा गया है। इस कारण यह सुरक्षित है। दूसरी प्रतिमा औषधालय के पास एक ऊंचे स्थान पर स्थापित है। यह प्रतिमा यशवंत तितरमारे नामक सेवानिवृत्त कर्मचारी ने अस्पताल को भेंट दी थी। तीन फीट ऊंची यह प्रतिमा मिट्टी की है। 12 साल पहले 2006 में यह प्रतिमा औषधालय परिसर में स्थापित की गई थी। पहली ही नजर में प्रतिमा मन मोह लेती है लेकिन इसकी सुंदरता पर अब दाग लग रहे हैं। दरअसल अस्पताल प्रशासन इस प्रतिमा के रखरखाव को लेकर गंभीर नहीं है। लापरवाही के चलते यह प्रतिमा जहां स्थापित की गई है, वहां से कभी भी नीचे गिरकर चकनाचूर हो सकती है। प्रतिमा अपने नीचे के तल से उखड़ चुकी है। इस कारण यह एक ओर झुक गई है। प्रतिमा को जहां स्थापित किया गया है, वहां कांक्रीट की दीवार है। प्रतिमा का सिर उस दीवार से टिक गया है। इस कारण अब तक प्रतिमा गिरने से बची है लेकिन इस टेढ़ी हो चुकी प्रतिमा को सीधा करने का कभी प्रयास नहीं किया गया।
उतर गया रंगरोगन, जमने लगी धूल मिट्टी
प्रतिमा का रंगरोगन उतरने लगा है। धोती-दुपट्टा आदि का रंग खराब हो चुका है। अनेक स्थानों से रंग उखड़ गया है। प्रतिमा का सुनहरा मुकुट और आभूषणों का सोने का रंग उतर गया है। अब यह रंग काला दिखायी देता है। प्रतिमा खुली होने से उस पर धूल-मिट्टी जम चुकी है। इस संबंध में यहां के एक कर्मचारी से पूछने पर उसने कहा कि इसकी सफाई और रंगरोगन करना उनका काम नहीं है। इस बात का ध्यान रखना अस्पताल प्रशासन का काम है। उन्होंने चर्चा के दौरान इस बात का जिक्र किया है लेकिन इसका किसी पर कोई असर नहीं होता। इस अस्पताल के साथ ही आयुर्वेद कॉलेज भी संलग्न है। सूत्रों ने बताया कि यहां 200 से अधिक विद्यार्थी आयुर्वेद की शिक्षा ले रहे हैं। इसके अलावा दोनों के कर्मचारी व अधिकारियों को मिलाकर कुल संख्या लगभग 75 बतायी जा रही है लेकिन किसी को धन्वंतरि की प्रतिमा की सुध लेने की फुर्सत नहीं है। सूत्रों के अनुसार यहां हर दिन 100 मरीज आते हैं। लगभग 10 से 15 मरीज यहां उपचारार्थ भर्ती रहते हैं। इसके अलावा उनके परिचितों का आना-जाना लगा रहता है। यानि यहां 500 लोगों का आना-जाना होता है।
...इसलिए आराध्य हैं भगवान धन्वंतरि
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन ही भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। इसलिए इस तिथि को धनतेरस मनाया जाता है। धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे, तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। धन्वंतरि को हिन्दू धर्म में देवताओं का वैद्य माना जाता है। कहा जाता है कि वे महान चिकित्सक थे। उन्हें देव पद प्राप्त हुआ है। उन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी कहा जाता है। यह भी मान्यता है कि उनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से लोकार्पण हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
कहा जाता है कि इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था। उनके चार हाथ हैं। दो हाथों में शंख और चक्र धारण किये हुए हैं। जबकि दो अन्य हाथों में से एक में जलूका और औषधि तथा दूसरे में अमृत कलश लिये हुये हैं। उनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। उन्हें आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले वैद्य या आरोग्य का देवता कहते हैं। उन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास हुए, जिन्होंने ‘शल्य चिकित्सा’ का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत दुनिया के पहले सर्जन थे। इसलिए दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
Created On :   4 Nov 2018 6:00 PM IST