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बर्बादी रोकी , छोटी-सी मुहिम चलाई ताकि चलती रहीं सांसें

डिजिटल डेस्क, नागपुर। कोरोना की दूसरी लहर में जब हर तरफ ऑक्सीजन की मारामारी मची थी और मरीजों की जान जा रही थी, उस समय मेयो ने अपने यहां सभी मरीजों को लगातार ऑक्सीजन उपलब्ध करवाते हुए 8 महीने में 16 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की बचत की। यह सब हुआ अक्टूबर 2020 से शुरू की गई मुहिम के कारण। एनेस्थेसिया विभाग की प्रमुख प्रा. डॉ. वैशाली शेलगांवकर ने एक टीम तैयार कर ऑक्सीजन टैंक से लेकर मरीज के बिस्तर तक होनेवाली ऑक्सीजन की बर्बादी रोकने के लिए हर पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया।
इन कारणों पर दिया गया ध्यान
पहली लहर के दौरान देखा गया कि मरीजों को जो ऑक्सीजन दी जा रही है, उसमें काफी बर्बाद भी हो रही है। जब मरीज भोजन करने जाता था, तो वह ऑक्सीजन मास्क निकाल देता है। इस दौरान 15 मिनट तक ऑक्सीजन बर्बाद होता है। मरीज जब टॉयलेट-बाथरूम जाता है इस दौरान भी ऑक्सीजन की बर्बादी होती थी। इस लापरवाही से 5 से 7 लीटर ऑक्सीजन की बर्बादी होती थी। ऑक्सीजन टैंक से लेकर मरीज के बेड तक ऑक्सीजन आपूर्ति के दौरान लीकेज होने से सर्वाधिक ऑक्सीजन बर्बाद होती थी। इस तरह हर दिन सैकड़ों लीटर ऑक्सीजन बर्बाद हो रही थी। उसके बाद ऑक्सीजन की बर्बादी रोकने की मुहिम शुरू की गई।
अक्टूबर से कर दी थी शुरुआत
मेयो अस्पताल में अक्टूबर 2020 से मई 2021 तक हर महीने 2 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की बचत की शुरुआत हुई। इन 8 महीने में 16 मीट्रिक टन ऑक्सीजन बचाई गई। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मार्च व अप्रैल में मेयो को हर दिन 22 टन ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ने लगी थी। उस समय यहां के मरीजों को बराबर ऑक्सीजन मिलती रही और कई मरीजों को जीवनदान मिला।
बचत का तरीका सिखाया
ऑक्सीजन बचाने के लिए डॉ. शेलगांवकर ने एक टीम तैयार कर मुहिम शुरू की। इसमें वेंटिलेटर्स के टेक्निशियंस व अन्य लोगों काे शामिल किया गया। डॉ. शेलगांवकर हर रोज राउंड पर उनके साथ जातीं और वेंटिलेटर्स तथा मॉनिटर के अलावा ऑक्सीजन आपूर्ति पर भी स्टाफ को ध्यान देने के िलए कहा। मरीजों का मार्गदर्शन कर उन्हें भी भोजन के लिए या बाथरूम जाते समय ऑक्सीजन आपूर्ति की बटन बंद करने के बारे में सिखाया गया। ऑक्सीजन से संबंधित हर उपकरणों की जांच की जाने लगी।
रोज चार्ट बनाया गया
ऑक्सीजन के लिए मरीजों का चार्ट बनाया गया। यदि किसी मरीज को 5 लीटर ऑक्सीजन दिया जा रहा है और अगले दिन उसका स्कोर 92-94 हुआ, तो ऐसे मरीजों को एक लीटर ऑक्सीजन कम दिया गया। उसकी हालत स्वस्थ व स्थिर बनी रही, तो यही प्रयोग अन्य मरीजों पर भी करते रहे। इस तरह उनका ऑक्सीजन आवश्यकतानुसार कम करते रहे। मरीजों का डेली चार्ट बनाया जाने लगा। उस अनुसार ऑक्सीजन की मात्रा निश्चित की जाती थी। पल्स ऑक्सीमीटर के बजाय ऑक्सीजन कम कर सुधार हो सकता है क्या, इस पर अधिक ध्यान दिया गया। सामान्य मास्क की जगह प्रेशराइज्ड मास्क का उपयोग किया गया। इससे 15 लीटर ऑक्सीजन के स्थान पर 10 लीटर से ही काम चल जाता था। इस तरह ऑक्सीजन की बचत होती रही है।
पहली लहर के साथ ही अध्ययन करना शुरू कर दिया
कोरोना में सबसे बड़ी समस्या ऑक्सीजन की कमी थी। हमने पहली लहर के साथ ही इस पर अध्ययन करना शुरू कर दिया था। ऑक्सीजन बर्बाद होने के जो भी कारण रहे, उन्हें ढूंढ़-ढूंढ़ कर ठीक किया गया। टेक्निशियंस, नर्सिंग स्टाफ और मरीजों को भी ऑक्सीजन बचत करने का तरीका बताया। ऑक्सीजन बचत मुहिम चलाई। इसका असर हुआ कि 8 महीने में 16 मीट्रिक टन ऑक्सीजन बचत की जा सकी। -डॉ. वैशाली शेलगांवकर, एनेस्थेसिया विभाग प्रमुख, इंदिरा गांधी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेयो)
Created On :   10 Aug 2021 2:58 PM IST