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धोती-कुर्ता पहन पगड़ी बांधेंगे स्टूडेंट्स, दीक्षांत समारोह के लिए ड्रेस कोड तय

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय ने आगामी दीक्षांत समारोह में ब्रिटिशकालीन कैप-गाऊन का इस्तेमाल नहीं करने का निर्णय लिया है। वीएनआईटी और संस्कृत विश्वविद्यालय के बाद अब नागपुर विश्वविद्यालय भी कैप और गाऊन को अलविदा कहने वाले संस्थानों की कड़ी में शामिल हो गया है। गुरुवार को संपन्न हुई मैनेजमेंट काउंसिल की बैठक में निर्णय लिया गया है। बता दें कि अब तक जारी परंपरा के अनुसार दीक्षांत समारोह में कुलगुरु, प्रकुलगुरु, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक और वित्त और लेखा अधिकारी समेत सभी प्राधिकरण के सदस्य कैप और गाऊन पहनतेते थे। आगामी दीक्षांत समारोह में कैप-गाऊन की जगह पारंपारिक जोधपुरी कोट इस्तेमाल किया जाएगा। काउंसिल के फैसले के अनुसार सर्वप्रथम मुख्य अतिथि के तौर पर टाटा समूह के रतन टाटा को बतौर मुख्य अतिथि निमंत्रित किया जा रहा है, अगर बात नहीं बनी तो रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी या केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को न्यौता भेजा जाएगा।
धोती-कुर्ता पहन पगड़ी बांधकर दीक्षांत समारोह में स्टूडेंट्स शामिल होंगे। कुलगुरू कालिदास संस्कृत महाविद्यालय ने 19 अक्टूबर को होने वाले दीक्षांत समारोह के लिए ड्रेस कोड तय किया है। बता दें कि दीक्षांत समारोह में काला गाउन पहनने का अभी भी कई विश्वविद्यालयों में चलन है, लेकिन कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय रामटेक ने दीक्षांत समारोह में नया ड्रेस कोड तय किया है। विश्वविद्यालय ने कैप और गाउन को बाय-बाय करने का फैसला लिया है। कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय रामटेक ने पारंरगत कैप और गाउन को अलविदा कर दिया है। दैनिक भास्कर से बातचीत में कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय रामटेक के कुलगुरु श्रीनिवास वरखेडी ने बताया कि इस वर्ष नई सोच को नया रूप दिया जाएगा। मूल निवासी संस्कृति को देखते हुए महाराष्ट्रीयन परिधान को दीक्षांत समारोह में ड्रेस कोड बनाया गया है, बेहतर होगा कि हम अपनी पहचान के अनुकूल दीक्षांत समारोह की ड्रेस निर्धारित करें। हालांकि वीसी कुलगुरु श्रीनिवास वरखेडी ने कहा कि हम गाउन और कैप के विरोधी नहीं हैं, परंतु हमें अपनी संस्कृति की गरिमा भी रखनी चाहिए।
बदले हैं नियम
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी गाउन नहीं, शेरवानी और अलीगढ़ी पायजामा पहना जाता है। आईआईटी बॉम्बे में पांच-छह साल पहले गाउन को अलविदा कहा गया और दीक्षांत समारोह में उत्तरीय (सफेद कुर्ता-पायजामा) और बैज पहनने की परम्परा शुरू की गई। औपनिवेशिक काल के अवशेष गाउन को अलविदा कह चुके हैं। राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ और शान्ति निकेतन में भी दीक्षांत समारोह के दौरान गाउन पहनने की परम्परा तोड़ी जा चुकी है।
दीक्षांत समारोह है तो परंपरा को प्रधानता कुलगुरु वरखेडी ने कहा कि दीक्षांत समारोह का मतलब होता है कि दीक्षा देना। साधक को दीक्षा देना। ये हमारे परंपरा का हिस्सा है। वेस्टर्न कैप और गाउन को बदलना चाहिए। दीक्षा में महाराष्ट्र का परंपरागत स्वरूप के परिधान हो ऐसा विचार किया गया है। हम भारतीय हैं हमें परंपरा का ध्यान रखना चाहिए। जब हम मंदिर जाते हैं तो हम एथनिक वेयर कैरी करते हैं तो जब हम दीक्षा ले रहे हैं तो यहां भी परंपरा को प्रधानता देना चाहिए। हालांकि कुलगुरु श्री वरखेड़ी का कहना है कि ये फैसला किसी दबाव में नहीं लिया गया है।
यूरोप में भी स्थानीय पहनावे को महत्व
कुलगुरु डॉ.श्रीनिवास वरखेडी के अनुसार हम वेस्टर्न वेयर का विरोध नहीं करते हैं, लेकिन भारतीय व महाराष्ट्रीयन परिधान पहनना हमारी संस्कृति है। यूरोप में भी दीक्षांत समारोहों में भी वे अपनी स्थानीय पहनावे को प्राथमिकता देते हैं। तो हम क्यों नहीं दे सकते हैं, हमारी संस्कृति में धोती कुर्ता पहना जाता है तो उसे दीक्षा लेते हुए पहना जा सकता है। महाराष्ट्रीयन पगड़ी और धोती-कुर्ते में इस बार दीक्षांत समारोह में पहनेंगे, इससे नेटिव कल्चर को बढ़ावा मिलेगा।
मंत्री ने भी ड्रेस कोड बदलने के लिए कहा ज्ञात रहे कि इस वर्ष वीएनआईटी ने भी अपने 16वें दीक्षांत समारोह में ड्रेस कोड बदल दिया था। हालांकि पिछले वर्ष केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने भी ड्रेस कोड बदलने के लिए कहा था।
ऐसे बनी परंपरा
दीक्षांत समारोह में गाउन पहनने की परम्परा 13वीं शताब्दी में उस समय पड़ी जब ब्रिटेन में पोप के प्रभाव से धार्मिक शिक्षा की शुरुआत हुई। सबसे पहले ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह में मैरून, गोल्ड, रेड और काले रंग का गाउन व बैज पहनने का प्रचलन शुरू हुआ। यह वहां के सर्द मौसम के अनुकूल था। जब अंग्रेजों ने भारत में यूनिवर्सिटी सिस्टम शुरू किया तो यह परंपरा भी चली आई।
Created On :   27 Sept 2018 12:20 PM IST