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वर्धा की तीन तहसीलों से शुरुआत, तकनीकी जानकारी से लैस होंगे किसान

डिजिटल डेस्क, नागपुर। आर्गेनिक कपास उत्पादन अभियान में इस साल वर्धा जिले की तीन तहसील देवली, आर्वी और समुद्रपुर के 1500 किसानों को शामिल किया गया है। 4 से 6 एकड़ जमीन पर आश्रित 1500 छोटे किसानों को आर्गेनिक कपास उत्पादन, मृदा संरक्षण, फसलों की सुरक्षा, बेहतर उत्पादन, बाजार में बिक्री समेत तकनीकी जानकारी दी जाएगी। इसके लिए तीनों संस्थाओं के प्रतिनिधियों की तकनीकी और कोर टीम को नियुक्त किया गया है। अभियान के तहत किसानों को प्रति एकड़ करीब 6 क्विंटल आर्गेनिक कपास उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
इस साल बुआई के लिए दक्षिण भारत की साऊथ इंडियन मिल्स एसोसिएशन के सहयोग से सूरज, सुरभि और पारटेक-25 किस्म के बीजों को मुहैया कराया जा रहा है। इसके साथ ही अार्गेनिक बीजों से बुआई के लिए तकनीकी मार्गदर्शन भी दिया जा रहा है। कपास उत्पादन होने पर किसानों को प्रचलित बाजार मूल्य से 10 फीसदी अधिक इन कन्वर्जन कॉटन सपोर्ट मूल्य भी दिया जाएगा। अगले तीन सालों तक तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन से लगातार उत्पादन करने के बाद साल 2021 में किसानों को आर्गेनिक कपास उत्पादक के रूप में प्रमाणपत्र भी प्रदान किया जाएगा।
ऐसे मिली प्रेरणा
देश भर में कई क्षेत्र में वेलस्पन उद्योग समूह कार्यरत है। इस समूह द्वारा पिछले कुछ सालों से दिल्ली-मेरठ-हाइवे के निर्माणकार्य किया जा रहा है। इस काम का निरीक्षण करने के लिए केन्द्रीय लोकनिर्माण मंत्री नितीन गडकरी अकसर जाया करते थे। इस निरीक्षण कार्य के दौरान समूह के आला अधिकारियों से सामाजिक कार्यों के लिए प्रयास करने को लेकर केन्द्रीय मंत्री गडकरी ने सलाह दी। इतना ही नहीं विदर्भ में कृषि व्यवस्था में आधारभूत सुविधा तैयार करने को लेकर भी चर्चा होती रही। चर्चा के दौरान विदर्भ के कपास उत्पादक किसानों की स्थिति, फसलों का व्यवस्थापन, कैशक्राप की समस्या पर वेलस्पन समूह को काम करने की भी सलाह केन्द्रीय मंत्री ने दी।
मंत्री गडकरी के लगातार आग्रह को देखते हुए वेलस्पन समूह ने अपने फाऊंडेशन के माध्यम से विदर्भ के किसानों के लिए अभिनव उपक्रम को आरंभ करने का आश्वासन दिया। वेलस्पन फाऊंडेशन को अपने काम का दायरा तैयार करने के प्रयास शुरू करने पर हालैंड की डेल्फ्टस यूनिवर्सिटी और सॉलिडरीडेड गैर सरकारी संस्था के अध्ययन का पता चला। इन संस्थानों के प्रयास को कैशक्राप से जोड़ने के लिए वेलस्पन फाऊंडेशन ने टेक्सटाइल यूनिट के लिए आर्गेनिक कपास की खरीदी का आश्वासन दिया है।
ऐसा होगा कार्यस्वरूप
विदर्भ के दो जिलों में आर्गेनिक कपास उत्पादन की प्रक्रिया को आरंभ करने में हालैंड की डेल्फ्टस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर साकेत पांडे की महत्वपूर्ण भूमिका है। पिछले दो सालों से विदर्भ के किसानों की आत्महत्या पर प्रो. पांडे के मार्गदर्शन में दो छात्राएं शोध कर रही हैं। इन छात्राओं ने मराठवाड़ा और विदर्भ के किसानों, आत्महत्याग्रस्त किसानों के परिवारों और आधारभूत सुविधाओं को लेकर अपना शोध प्रबंध भी तैयार किया है। प्रो. पांडे के मार्गदर्शन में शोध और उपाययोजना को बेहतर रूप में योजनागत रूप में क्रियान्वयन के लिए हालैंड की एनजीओ साॅलिडरीडेड ने अनुकूल नेगी के नेतृत्व में अभियान शुरू किया है। दोनों जिलों में किसानों को आर्गेनिक कपास का उत्पादन, सिंचाई व्यवस्थापन, फसल सुरक्षा और वेलस्पन तक पहुंचाने का खाका एनजीओ साॅलिडरीडेड के जिम्मे होगा, जबकि आर्गेनिक कपास को बाजार के प्रचलित सर्वाधिक मूल्य पर खरीदी करने की जिम्मेदारी वेलस्पन टेक्सटाइल्स पूरा करेगी।
फसल उत्पादन के लिए सिंचाई व्यवस्थापन और स्रोत की खोज के लिए सिंचाई विभाग के अभियंता शिरीष आप्टे ने स्वैच्छिक जिम्मेदारी स्वीकारी है। इस पूरे अभियान में किसानों को बेहतर आर्गेनिक कपास के बीजों का चयन, बीज संगोपन और कीटनाशक की तकनीकी जानकारी केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्था के कृषिविज्ञान केन्द्र से मुहैया कराई जाएगी। फसलों की सिंचाई के लिए वर्धा जिले के पुलगांव-देवली क्षेत्र में लोअर वर्धा सिंचाई प्रकल्प और यवतमाल में बेंबला के वॉटर यूजर किसानों को जोड़ा गया है।
दो जिलों का चयन क्यों?
किसान आत्महत्या के ज्यादातर मामले में विदर्भ के अमरावती, अकोला, वाशिम, बुलढाणा, यवतमाल और वर्धा में सामने आते हैं। सरकारी एजेंसी और सरकार के जांच निष्कर्ष में इसके लिए सिंचाई व्यवस्था का अभाव सबसे महत्वपूर्ण कारण माना गया है। इसके अलावा जलसंचय व्यवस्था की कमी, जमीनी उर्वरकता में कमी और कृषि उत्पादों के वैश्विक स्तर पर दामों के तय होने से किसानों की स्थिति खराब हुई है। इसके अलावा उत्पाद का समुचित दाम नहीं मिल पाना और लागत के अनुपात में कम मुनाफा भी कर्जबाजारी को बढ़ा रहा है। हर ओर से निराश किसान अपनी स्थिति को बचाने के लिए निजी साहूकारों से कर्ज लेता है। और कर्ज को नहीं चुका पाने के चलते आत्महत्या को मजबूर हो जाता है। वर्धा एवं यवतमाल में सिंचाई संसाधनों को विकसित कर किसानों को नई राह दिखाने की कोशिश हो रही है।
सिंचाई के लिए जलसंपदा विभाग दे रहा सहायता
इस साल बरसात के देरी से आने से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। किसानों को बीजो की बुआई के लिए तत्काल सिंचाई की जरूरत थी। करीब 1500 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई देने के लिए कोई भी सहायता नहीं मिल पा रही थी। एेसे में अभियान के मार्गदर्शक शिरीष आप्टे की पहल पर लोअर वर्धा प्रोजेक्ट के कार्यकारी अभियंता दिगंबर बारापात्रे से चर्चा की गई। इस चर्चा के बाद अगले साल मार्च तक सिंचाई के लिए जल मुहैया कराने का आश्वासन दिया गया। इतना ही नहीं पिछले दो माह से सिंचाई के लिए जल भी मुहैया करा रहे है।
Created On :   1 July 2018 6:34 PM IST